scriptजिनके नाम है ये दिवस उन्हें ही नहीं इसका पता | Those whose names are these days do not know them only | Patrika News

जिनके नाम है ये दिवस उन्हें ही नहीं इसका पता

locationअगार मालवाPublished: May 01, 2019 12:32:46 am

Submitted by:

Ashish Sikarwar

देश में गरीबी व बेरोजगारी खत्म होती नजर नहीं आ रही है। आज भी लोग रोजी-रोटी के जुगाड़ में घर-परिवार को छोड़कर शहरों में रोजगार के लिए भटक रहे हैं।

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देश में गरीबी व बेरोजगारी खत्म होती नजर नहीं आ रही है। आज भी लोग रोजी-रोटी के जुगाड़ में घर-परिवार को छोड़कर शहरों में रोजगार के लिए भटक रहे हैं।

सुसनेर. देश में गरीबी व बेरोजगारी खत्म होती नजर नहीं आ रही है। आज भी लोग रोजी-रोटी के जुगाड़ में घर-परिवार को छोड़कर शहरों में रोजगार के लिए भटक रहे हैं। हालात ये हैं कि मशीनीकरण के युग में अब इंसानों के लिए रोजगार की संभावनाएं कम होती जा रही हैं। बढ़ती महंगाई के चलते लोगों को पर्याप्त मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है। आज 1 मई को पूरे देश में मजदूर दिवस मनाया जाएगा। आज भी ईंट भ_ों, भवन निर्माण में कारीगरों के साथ व मंडी तथा नगरीय क्षेत्र में पेयजल योजना के लिए डाली जा रही है पाइप लाइन में दो वक्त की रोटी के लिए मेहनत करते हुएं मजदूरों को देखा जा सकता है। सरकार ने मजदूरों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अधिकतर मजदूरों को इसका पता तक नहीं है। इसलिए उनको योजनाओं का लाभ तक नहीं मिल पाता है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर हमने मंगलवार को शहर में मजदूरी कर परिवार चलाने वाले कुछ मजदूरों से चर्चा कि तो सामने आया कि तपती धूप में जबकि इन दिनों तापमान 42 डिग्री से ऊपर चल रहा है ऐसी स्थिति में वे ये मजदूर मेहनत मजदूरी कर परिवार का पेट पालने का जुगाड़ करते हैं। क्षेत्र के मजदूरों की स्थिति आज भी एक दशक पुरानी जैसी ही है। मजदूर आज भी दिनभर काम करने के बाद शाम को परिवार को दो वक्त की रोटी खिलाने के लिए मालिका का मुंह ताकता है। जब शाम को रोटी मिल जाती है तो रात को अगले दिन की चिंता सताने लगती है। न तो इन मजदूरों को सरकारी नौकर की तरह छुट्टी मिलती है और न ही अन्य सुविधाएं। खास बात यह है कि 1 मई का दिन मजदूर दिवस के रूप में घोषित है, लेकिन इनको इसके बारे में पता ही नहीं है, इसलिए यह दिन भी इनके लिए सामान्य दिनों की तरह ही गुजरता है।
यहां ज्यादा मजदूरी मिलती है इसलिए आ गए
पेयजल योजना के तहत डाली जा रही पाइप लाइन की खुदाई कार्य में मजदूरी कर रहे एक मजदूर से हमने पूछा। तो राकेश भील ने बताया कि वह झाबुआ का रहने वाला है। पत्नी, भाई व परिवार के अन्य सदस्य भी सुसनेर आए हैं। ऐसा क्यों पूछे जाने पर बताया झाबुआ में मजदूरी कम मिलती है। यहां ज्यादा मिल रही है इसलिए यहां काम कर रहे हैं। मंगलवार को यह परिवार हमें सुसनेर में डाक बंगला रोड के समीप नर्मदा-झाबुआ बैंक की गली में पाइप लाइन के खुदाई कार्य में गेंती चलाते मिला। खुदाई कार्य करने में राकेश के भाई राजेश के हाथ में छाले पड़ जाने से खून भी निकलता दिखाई दे रहा था। राजेश ने कहा अब तो इनकी आदत हो गई है साहब।
एक महीने का मानदेय तक नहीं मिला, कैसे चलाएं परिवार
मंडी में पहुंंचकर हम्मालों से चर्चा कि तो अजीज भाई, सलीम, इरफान, गणपत, गिरधर आदि ने बताया समर्थन मूल्य पर जब से खरीदी हुई है तब से मंडी में बनाए गए खरीदी केंद्र पर मजदूरी कर रहे है। काम करते-करते एक महीना हो गया, लेकिन आज तक मानदेय नहीं मिला। हम जब रोज शाम को घर जाते हैं तो बच्चे वस्तुओं की मांग करते हैं, लेकिन मजदूरी नहीं मिलने के कारण हम उन्हें कुछ दिला भी नहीं पाते। 40 मजदूर ऐसे मिले जिन्हें एक महीने से मजदूरी नहीं मिली।

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