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जानिए : क्रिसमस क्या है और 25 दिसम्बर को क्यों मनाया जाता है

क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है।

लखनऊDec 25, 2017 / 10:37 am

Mahendra Pratap

लखनऊ. क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व हर साल 25 दिसम्बर को पड़ता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व में इस पर्व पर अवकाश भी रहता है। प्रभु यीशु के जन्मदिन के मौके पर हर साल 25 दिसम्बर को भारत समेत पूरी दुनिया में क्रिसमस पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 25 दिसम्बर का पूर्वाह्न होते ही ‘हैप्पी क्रिसमस-मेरी क्रिसमस’ से बधाइयों का सिलसिला जारी हो जाता है और सभी लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं।

क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। 25 दिसम्बर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है और लगता है कि इस तिथि को एक रोमन पर्व या मकर संक्रांति (शीत अयनांत) से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है। आधुनिक क्रिसमस की छुट्टियों मे एक दूसरे को उपहार देना, चर्च मे समारोह और विभिन्न सजावट करना शामिल है। इस सजावट के प्रदर्शन मे क्रिसमस का पेड़, रंग बिरंगी रोशनियां, बंडा, जन्म के झांकी आदि शामिल हैं।

ईसाई होने का दावा करने वाले कुछ लोगों ने बाद में जाकर इस दिन को चुना था क्योंकि इस दिन रोम के गैर ईसाई लोग अजेय सूर्य का जन्मदिन मनाते थे और ईसाई चाहते थे की यीशु का जन्मदिन भी इसी दिन मनाया जाए। (द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका) सर्दियों के मौसम में जब सूरज की गर्मी कम हो जाती है तो गैर ईसाई इस इरादे से पूजा पाठ करते और रीति- रस्म मनाते थे कि सूरज अपनी लम्बी यात्रा से लौट आए और दोबारा उन्हें गरमी और रोशनी दे। उनका मानना था कि दिसम्बर 25 को सूरज लौटना शुरू करता है। इस त्योहार और इसकी रस्मों को ईसाई धर्म गुरुओं ने अपने धर्म से मिला लिया औऱ इसे ईसाइयों का त्योहार नाम दिया यानि (क्रिसमस-डे)। ताकि गैर ईसाईयों को अपने धर्म की तरफ खींच सके।

क्रिसमस को सभी ईसाई लोग मनाते हैं और आजकल कई गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्म निरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान प्रदान, सजावट का सामन और छुट्टी के दौरान मौज मस्ती के कारण यह एक बड़ी आर्थिक गतिविधि बन गया है और अधिकांश खुदरा विक्रेताओं के लिए इसका आना एक बड़ी घटना है।

जुलियन कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर में है 13 दिनों का अन्तर
दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसम्बर को ही जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं। ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसम्बर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।

सांता क्लॉज
सांता क्लॉज को बच्चे-बच्चे जानते हैं। इस दिन खासकर बच्चों को इनका इंतजार रहता है। संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में हुआ था। बचपन में माता पिता के देहांत के बाद निकोल को सिर्फ भगवान जीसस पर यकीं था। बड़े होने के बाद निकोलस ने अपना जीवन भगवान को अर्पण कर लिया। वह एक पादरी बने फिर बिशप, उन्हें लोगों की मदद करना बेहद पसंद था। वह अर्धरात्री को गरीब बच्चों और लोगों को गिफ्ट दिया करते थे।

क्रिसमस ट्री
जब भगवान ईसा का जन्म हुआ था तब सभी देवता उन्हें देखने और उनके माता पिता को बधाई देने आए थे। उस दिन से आज तक हर क्रिसमस के मौके पर सदाबहार फर के पेड़ को सजाया जाता है और इसे क्रिसमस ट्री कहा जाता है। क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत करने वाला पहला व्यक्ति बोनिफेंस टुयो नामक एक अंग्रेज धर्मप्रचारक था। यह पहली बार जर्मनी में दसवीं शताब्दी के बीच शुरू हुआ था।

कार्ड देने की परंपरा
दुनिया का सबसे पहला क्रिसमस कार्ड विलियम एंगले द्वारा 1842 में भेजा गया था। अपने परिजनों को खुश करने के लिए। इस कार्ड पर किसी शाही परिवार के सदस्य की तस्वीर थी। इसके बाद जैसे की सिलसिला सा लग गया एक दूसरे को क्रिसमस के मौके पर कार्ड देने का और इस से लोगो के बीच मेलमिलाप बढ़ने लगा।

दरअसल, इसके पीछे एक दिलचस्प बड़ी कहानी है। दुनिया में चौथी शताब्दी से पहले ईसाई समुदाय इस दिन को त्योहार के रुप में नहीं मनाते थे। मगर, चौथी शताब्दी के बाद इस दिन ईसाईयों का प्रमुख त्योहार मनाया जाने लगा। माना जाता है कि यूरोप में गैर-ईसाई समुदाय के लोग सूर्य के उत्तरायण के मौके पर त्योहार मनाते थे। इस दिन सूर्य के लंबी यात्रा से लौट कर आने की खुशी मनाई जाती है, इसी कारण से इसे बड़ा दिन भी कहा जाता है।

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