यह था पूरा मामला
आगरा के डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय द्वारा दिसंबर 2019 में फर्जी प्रमाणपत्र वाले अभ्यर्थियों की सूची जारी कर उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया था। अपना पक्ष रखने वाले 814 अभ्यर्थियों को छोड़कर बाकी 2823 को सात फरवरी 2020 को फर्जी घोषित कर दिया गया। बेसिक शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालय की ओर से फर्जी घोषित किए गए अभ्यर्थियों की सूची में शामिल 24 शिक्षकों की 12 मई को सेवाएं समाप्त कर दीं। एक जुलाई 2020 को बीएसए की ओर से शाहगंज थाने में इन शिक्षकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। वेतन रिकवरी की प्रक्रिया शुरू होने से पहले बर्खास्त शिक्षक कोर्ट चले गए। बाद में कोर्ट के आदेश पर विश्वविद्यालय ने जिन 2823 अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्र फर्जी घोषित किए थे, वह आदेश स्थगित कर दिया।
आगरा के डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय द्वारा दिसंबर 2019 में फर्जी प्रमाणपत्र वाले अभ्यर्थियों की सूची जारी कर उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया था। अपना पक्ष रखने वाले 814 अभ्यर्थियों को छोड़कर बाकी 2823 को सात फरवरी 2020 को फर्जी घोषित कर दिया गया। बेसिक शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालय की ओर से फर्जी घोषित किए गए अभ्यर्थियों की सूची में शामिल 24 शिक्षकों की 12 मई को सेवाएं समाप्त कर दीं। एक जुलाई 2020 को बीएसए की ओर से शाहगंज थाने में इन शिक्षकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। वेतन रिकवरी की प्रक्रिया शुरू होने से पहले बर्खास्त शिक्षक कोर्ट चले गए। बाद में कोर्ट के आदेश पर विश्वविद्यालय ने जिन 2823 अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्र फर्जी घोषित किए थे, वह आदेश स्थगित कर दिया।
चार माह में देनी होगी रिपोर्ट
यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक डॉ. राजीव कुमार ने बताया कि अधिवक्ता के मुताबिक विश्वविद्यालय प्रशासन को अपना पक्ष रखने वाले 812 में से महज सात अभ्यर्थियों के साक्ष्य का परीक्षण फिर से करना है। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। वहीं, टेंपर्ड सूची में शामिल अभ्यर्थियों की जांच करके चार माह के अंदर रिपोर्ट देनी है। कोर्ट के आदेश का अध्ययन करके कोई कदम उठाया जाएगा।
यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक डॉ. राजीव कुमार ने बताया कि अधिवक्ता के मुताबिक विश्वविद्यालय प्रशासन को अपना पक्ष रखने वाले 812 में से महज सात अभ्यर्थियों के साक्ष्य का परीक्षण फिर से करना है। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। वहीं, टेंपर्ड सूची में शामिल अभ्यर्थियों की जांच करके चार माह के अंदर रिपोर्ट देनी है। कोर्ट के आदेश का अध्ययन करके कोई कदम उठाया जाएगा।