आगरा के वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना उन दिनों की याद को ताजा कर बताते हैं कि Kargil war के दौरान हर भारतीय के मन में बस एक ही चाह थी कि भारत पाकिस्तान को धूल चटा दे। छोटी दुकानों से लेकर गली, मोहल्ले और चौराहों पर लोगों के बीच कारगिल युद्ध की ही चर्चा चलती रहती थी। देशभर से न जाने कितनी बहनों ने बॉर्डर पर तैनात सिपाहियों को राखियां भेजकर उनकी रक्षा के लिए कामना की थी। लोग हर समय टीवी पर नजर गड़ा कर बैठे रहते थे। उस समय शहीदों के पार्थिव शरीर लाने के लिए पहली बार एयरकंडीशन ताबूतों का इस्तेमाल किया गया था। शहीदों के पार्थिव शरीर हवाई जहाज से आया करते थे। जब भी किसी जवान का शव उसके शहर या गांव पहुंचता, हजारों की संख्या में लोग उसे सलामी देने पहुंच जाते थे। हर शख्स के मन में देशभक्ति की ज्वाला धधक रही थी।
आगरा शहर की भूमिका को लेकर राजीव सक्सेना बताते हैं कि कारगिल युद्ध में आगरा ने भी अहम योगदान दिया था। उस समय आगरा डीआरडीओ ने ऐसे एरोस्टेट बनाए थे जिनमें कैमरे लगे हुए थे। युद्ध के समय इन्हें दुश्मन पर नजर रखने के लिए यहां से भेजा गया था। वहीं पैराब्रिगेड के कुछ ऑपरेशन आगरा से चले थे। भारतीय सेना की मदद के लिए आगरा के तमाम लोगों ने चंदा इकट्ठा करके भेजा था, वहीं नौकरीपेशा लोगों ने एक दिन की सैलरी सेना की मदद के लिए दान की थी।
26 जुलाई 1999 को भारत ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़कर अपनी सरजमीं को उनके चंगुल से छुड़ाया था और अपना तिरंगा फहराया था। उस समय लोगों के मन में देश की इस जीत की खुशी भी थी, लेकिन कहीं न कहीं अपने जाबांज जवानों को खोने का गम भी था। भारत की जीत के बाद आगरा के शहीद सपूतों की याद में शहीद स्मारक बनाया गया। नागरी प्रचारिणी सभा, तमाम स्कूलों व कॉलेजों में कई कार्यक्रम आयोजित हुए। तब से लेकर आज तक हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस को याद करके तमाम जगहों पर जवानों को श्रृद्धांजलि दी जाती है।