करेलीÐ नगर में घूम रहे पशुओं के लिए उनकी मौत की सामग्री खुले में फेंकी जा रही है, जिसे खाकर वे या तो बीमार हो जाते हैं या फिर उनकी मौत हो जाती है। नगर में सार्वजनिक या निजी तौर पर किए जा रहे कार्यक्रमों के दौरान आयोजित भोज में उपयोग की जा रही पॉलीथिन, पानी के खाली पाउच आदि सड़कों के किनारे खुले में ही फेंक दिए जाते हैं, जिसे नगर में घूमने वाले मूक पशु खा रहे हैं।
पॉलीथिन से निर्मित ये बस्तुएं अघुलनशीन एवं पशुओं के पेट में भी अपचनीय होती हैं। जिससे यह पॉलीथिन कई दिनों तक उनके पेट से बाहर नहीं निकल पाती है। जिससे पशु बीमार हो जाते है और यदि समय पर इन्हे चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नही हो पाती तो उस स्थिति में इन पशुओं की मौत भी हो जाती है।
लोगों का कहना है कि नागरिक जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं जहां-तहां नगर में मूक पशु आवारा हालात में घूम रहे हैं। उन्हे जहां भी खाने की वस्तु दिखती है वे वहां झुण्ड में पहुंच जाते हैं, लेकिन नागरिक कार्यक्रमों के दौरान भोज का आयोजन करते हैं जिसमें खाने के लिए उपयोग की जाने वाली दोना पत्तल एवं पीने के पानी के पाउच आदि में पॉलीथिन आदि का उपयोग किया जाता है।
नागरिकों में जागरुकता के अभाव में वे कार्यक्रमों के दौरान पॉलीथिन से निर्मित इन वस्तुओं का उपयोग करने के बाद एकांत में या ऐसे स्थानों पर जहंा मूक पशु न पहुंच पाते हों ना डालकर खुले में एवं सड़क के किनारे ही फेंक रहे हैं। इन पॉलीथिन के साथ ही इनमें शेष बचे भोजन के साथ ही मूक पशुओं द्वारा इन पॉलीथिन को भी खा लिया जाता है। जिससे उनकी पेट में ही फंस कर रह जाती है और इन पशुओं का उत्सर्जन तंत्र काम नही कर पाते हैं जिससे पेट फूलने की बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं।
पॉलीथिन का उपयोग प्रतिबंधित
उच्चन्यायालय के निर्देशानुसार पॉलीथिन का उपयोग प्रतिबंधित हैं फिर भी नगरपालिका प्रशासन की उदासीनता के चलते नागरिकों को कार्यक्रमों के दौरान इनके उपयोग पर रोक नहीं लग पा रही है। इन पर रोक लगाए जाने के संबंध में सीएमओ एवं तहसीलदार को ज्ञापन दिया जाएगा।
– भागीरथ तिवारी, मानद पशु कल्याण अधिकारी, करेली
पशुओं द्वारा पॉलीथिन खाने से उसके पेट के रीवन में वह गोल-गोल घूमते हुए गेंदनुमा आकृति बन जाती है, जिससे पाचन-तंत्र में जगह कम होते जाने से पाचनतंत्र मे रुकावट आ जाती है और ऐसे में मवेशी की मौत हो जाती है। लोगों को खुले में पॉलीथिन आदि नही फेंकना चाहिए क्योंकि इसे खाकर मूक पशु असमय मौत का शिकार हो जाते हैं।
– डॉ. आरएस रघुवंशी, वरिष्ठ चिकित्सक, पशु चिकित्सालय, करेली