scriptभारत में 71 प्रतिशत लड़कियां अपनी ये बात नहीं जानतीं | 71 girls dont know about first menstrual cycle in India latest news | Patrika News

भारत में 71 प्रतिशत लड़कियां अपनी ये बात नहीं जानतीं

locationआगराPublished: Sep 15, 2018 03:39:13 pm

नाइन मूवमेंट ने पंचवर्षीय योजना तैयार की है ताकि हर आयु वर्ग के महिला और पुरुषों में जागरूकता पैदा की जा सके।

Girls school

Girls school

आगरा। संस्था नाइन मूवमेंट और फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिकल एंड गायनेलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (फोग्सी)। दोनों संस्थाओं की ओर से आगरा में मासिक धर्म स्वच्छता पर अभियान चलाया जा रहा है। इसी के तहत होटल रेडिसन ब्ल्यू में कार्यशाला हुई। इसमें उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्य ने भी शिरकत की। 30 स्कूलों को सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीनें वितरित की गईं। इस मौके पर मासिक धर्म के बारे में खुलकर चर्चा की गई।
यह भी पढ़ें – मासिक धर्म क्या अपराध होता है?

नहीं जानतीं कि मासिक धर्म होता क्या है
नाइन मूवमेंट की हैड ऑफ ऑपरेशन डॉ. सुजाता नायडू ने कहा कि विडंबना है कि आज भी हम या हमारा समाज माहवारी को एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया के तौर पर समझने में नाकाम है। नतीजा आज भी महिलाएं पीढ़ियों से चली आ रही सामाजिक वर्जनाओं और रूढ़ियों को ढोने के लिए मजबूर हैं। वे अपने पिता, पति या पुरुष मित्रों से इस बारे में चर्चा करना तो दूर आपस में बात करने से भी कतराती हैं, मानो यह कोई बहुत बड़ा अपराध हो, जो हर महीने वे जान-बूझ कर किया करती हैं। आखिर क्यों, भूख, प्यास, सांस लेने या पाचन की तरह हम इसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में नहीं अपनाते। उन्होंने कहा कि यह कितना हैरान करने वाला तथ्य है कि भारत में 71 प्रतिशत लड़कियां अपने पहले मासिक धर्म से पहले यह नहीं जानतीं कि मासिक धर्म होता क्या है। नाइन मूवमेंट ने पंचवर्षीय योजना तैयार की है ताकि हर आयु वर्ग के महिला और पुरुष में मासिक धर्म के प्रति जागरूकता पैदा की जा सके।
यह भी पढ़ें – ‘स्कूली मासिक धर्म आपातकाल’ तोड़ने के लिए सबसे बड़ा काम

50 फीसदी लड़कियां स्कूल नहीं जातीं
फोग्सी के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. नरेंद्र मल्होत्रा और फोग्सी की संयुक्त सचिव डॉ. निहारिका मल्होत्रा स्मृति संस्था का नेतृत्व करते हुए आगरा में इस विषय पर लम्बे समय से काम कर रहे हैं। अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक आंकड़े के अनुसार आज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जाती हैं, महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है, जबकि आधे से ज्यादा को तो ये लगता है कि मासिक धर्म कोई अपराध है। लेकिन फिर मौजूदा आंकड़े इस ओर इशारा कर रहे हैं कि इस चीज के प्रति अब लोगों की सोच बदल रही है। व्यापक स्तर पर भले ही ना हो, लेकिन फिर भी आज की लड़कियां अब उन मुश्किल दिनों के बारे में अपनों के बीच में खुलकर बातें करने लगी हैं, जो कि एक सकारात्मक संदेश है। यह भी स्मृति संस्था द्वारा चलाई जा रही उनकी ‘बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ’ मुहिम का ही एक अंग है। स्मृति संस्था द्वारा किए जा रहे प्रयासों से प्रभावित होकर अब शहर के तमाम संगठन भी मुहिम से जुड रहे हैं और स्मृति की सदस्यता ग्रहण कर रहे हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो