scriptआगरा के ‘काबुल’ में ‘जैन’ ने 1530 में बनवाई थी मस्जिद, इस स्थान को कहा जाता था स्वर्ग से सुंदर | Agra old Humayun masjid built by jain in 1530 near tajmahal latest new | Patrika News

आगरा के ‘काबुल’ में ‘जैन’ ने 1530 में बनवाई थी मस्जिद, इस स्थान को कहा जाता था स्वर्ग से सुंदर

locationआगराPublished: Jul 13, 2019 07:05:16 pm

-Humayun के राज्याभिषेक के समय स्वर्ग से सुंदर था यह स्थान और आज है बुरा हाल-ताजमहल के पीछे कछपुरा गांव में बाबर के मित्र ने बनवाई थी ये मस्जिद-अतिक्रमण से घिरी, इसके बाद एएसआई द्वारा संरक्षित किया गया ये स्मारक

Humayun masjid

Humayun masjid

आगरा। 1530 ई. में मुगल शासक हुमायूं के समय स्वर्ग से सुंदर दिखने वाले स्थान यमुना किनारे पर मस्जिद का निर्माण कराया गया। इस मस्जिद का निर्माण बाबर के मित्र शेख जैन श्वाफी ने अपने खर्चे पर कराया था। मस्जिद के पीछे कलकल बहती युमना और इस मस्जिद के चारों ओर का हराभरा वातावरण इस स्थान पर स्वर्ग की अनुभूति कराता था, लेकिन आज ये स्थान अतिक्रमण के चलते घिर गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को भी इस स्मारक की याद तब आई, जब इस मस्जिद की हालत बेहद खस्ता हो गई। यह मस्जिद 489 साल पुरानी है। आगरा की सबसे पुरानी मस्जिद है।
आगरा के ‘काबुल’ में ‘जैन’ ने 1530 में बनवाई थी मस्जिद, इस स्थान को कहा जाता था स्वर्ग से सुंदर
मस्जिद का ये है इतिहास
यह मस्जिद हुमायूं के आदेश से उसके राज्याभिषेक के वर्ष 1530 ई. में बनी। इसमें एक फारसी शिलालेख है, जिसमें इस बात के साथ यह भी अभिलेखित है, कि इसे शेख जैन श्वाफी ने अपनी खर्चे पर बनवाया था। वह एक कवि था और बाबर का मित्र था। इस मस्जिद की संरचना मुगलों की धार्मिक आवश्यकता की पूर्ति स्वरूप हुई, जिन्होंने इस क्षेत्र में बाग लगाए थे और घर बनाकर यहां बस गए थे। इस जगह को स्थानीय लोग काबुल कहते थे। अपनी आत्मकथा में स्वयं बाबर ने यह बात लिखी है। इसे हुमायूं की मस्जिद भी कहा जाता है।
इस तरह की है मस्जिद की संरचना
यह एक पंचमुखी मस्जिद है जो ईंट और चूने की बनी है। इसके ऊपर श्वेत प्लास्टर किया गया था, इसके मध्य में मुख्य कदा की मुखार पर एक भव्य ईवान बना है, जो इतना ऊंचा है कि उसके पीछे गुम्बद छिप गया है, जैसा दिल्ली की मुहम्मद बिन तुगलक की बेगमपुरी मस्जिद और जौनपुर की शर्की वंश की मस्जिदों में हुआ था। प्रत्येक पार्श्व में दो श्रंखलाओं में दुहरे कक्ष हैं यानि दोनों ओर चार-चार कक्ष हैं, जिनके उपर अर्धवृत्ताकार लघु गुम्बद है। अब दक्षिणी भाग गिर गया है, इसमें बाहर की ओर चीनी टाइलों से अलंकरण किया गया था। इसमें पत्थर का काम नहीं है और स्पष्ट ही यह पूर्ववर्ती लोदी शैली में बनी है। हुमायूं की ज्योतिष यंत्रशाला भी इसके समीप ही नदीं के किनारे बनी थी। अब वह खंडहर हो गई है और वहां केवल एक बड़ी बाड़ी और एकाश्म शिला रह गई है, जिसमें 12 सीढ़ियां बनी है। अब इसे ग्याहर सिड्ढी कहते हैं।
बताया क्यों कहते थे इसे स्वर्ग
हमायूं मस्जिद पर रहने वाले शाजिद अहमद ने बताया कि ये सत्य है इसे स्थान को जन्नत कहा जाता है। कारण है कि इसके आस पास बेहद सुंदर फुलवारी हुआ करती थी। स्वच्छ यमुना इस मस्जिद के पास से ही बहती है, लेकिन अब अतिक्रण के चलते यमुना से मस्जिद की दूरी भी अधिक हो गई है।
ये कहते हैं यहां के सेवादार
हमायूं मस्जिद पर रहने वाले शाजिद अहमद ने बताया कि इस स्मारक पर करीब 10 वर्ष पूर्व एएसआई ने नजर रखना शुरू की। इससे पहले यहां की हालत बेहद खराब थी। अब इसका रखरखाव एएसआई द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मस्जिद का आकार पहले बहुत बड़ा हुआ करता था, लेकिन धीरे धीरे यहां की जमीन घिरती गई। मस्जिद के पास कब्रिस्तान की जमीन बताई गई, लेकिन अब तो यहां घनी आबादी रहती है। वहीं मस्जिद में काम करने वाले चिरागुद्दीन ने बताया कि पहले मस्जिद के चारों तरफ बहुत खाली जगह थी, लेकिन अब तो इसके आस पास पैर रखने तक की जगह नहीं है।
कौन था हुमायूं
17 मार्च 1508 को काबुल में जन्मा हुमायूं मुगल शासक था। पिता बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूं 1530 में भारत की गद्दी पर बैठा। उसकी आठ बेगम थीं। 1530 से 1540 और 1555 से 1556 तक हुमायूं ने शासन किया। 47 साल की उम्र में चार मार्च 1556 को हुमायूं की मृत्यु दिल्ली में हुई। दिल्ली में हुमायूं का मकबरा है, जहां हुमायूं को दफन किया गया। हुमायूँ के बेटे का नाम जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर था। हुमायूं की मृत्यु के समय अकबर कलानौर (पंजाब) में था। हुमायूं की मृत्यु के तत्काल बाद अकबर को शासक घोषित कर दिया गया।
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