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इस समाज के लिए विश्वविद्यालय ने तैयार किया शिक्षा का प्लॉन

locationआगराPublished: Nov 28, 2017 04:36:16 pm

डॉ.भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय कराएंगा लोहापीटा समाज को शिक्षित

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आगरा। ‘महाराणा प्रताप के वंशज’ मानने वाले लोहपीटा समुदाय के बच्चों के लिए डॉ.भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय ने पहल की है। भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय ने सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में इस काम को शामिल किया है। विश्वविद्यालय प्रशासन 2018 में परियोजना शुरू करने की तैयारी कर रहा है।
डॉ.भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रवक्ता गिरजाशंकर शर्मा ने बताया कि कुलपति अरविंद कुमार दीक्षित ने लौहपीटा समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने की पहल की है। ये समाज विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये लोग राजस्थान में मेवाड़, छत्तीसगढ़ के महाराणा प्रताप के वंशज हैं। मुगल सम्राट अकबर ने 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा को पराजित करके मेवाड़ की उपजाऊ पूर्वी तट पर कब्जा कर लिया था। उनके वंश की गौण, खानाबदोश लुहपिटस एक जीवित रहने के लिए लोहे के सरल औजार बनाने के लिए जगह से आगे बढ़ते हैं। हालांकि गरीब, वे भीख मांगने में विश्वास नहीं करते।
सर्वे के बाद मॉडल स्कूल में पढ़ने जाएंगे बच्चे
उन्होंने बताया कि इस समुदाय के बच्चों की कुल संख्या जानने के लिए एक सर्वेक्षण किया जा रहा है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट आने के बाद एक पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया जाएगा, जिसमें विश्वविद्यालय परिसर में स्थित मॉडल स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाएगी। अगर कोई नौजवान मिल जाता है, जो कक्षा बारावी पास होता है, तो ऐसे एक छात्र को कॉलेजों में पंजीकृत करने में भी मदद करेंगे। समुदाय के बच्चों को मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य है। परियोजना के तहत, यूनिवर्सिटी के कर्मचारी वकील माता-पिता को सलाह देंगे और अध्ययन करने के लिए अपने बच्चों को अपने बच्चों को भेजने के लिए प्रेरित करेंगे।
नहीं है योजनाओं का पता
सिकंदरा बोदला रोड स्थित खानाबदोश जीवन यापन करने वाले परिवार से पत्रिका ने बात की। यहां महिलाओं ने कहा कि उन्हें सरकारें उनके लिए क्या कर रही हैं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं हैं। जीवन यापन करने के लिए कभी सिकंदरा, तो कभी लोहामंडी या फिर किसी दूसरे शहर में अपना ठिकाना कुछ दिनों बाद बदलना पड़ता है। जहां डेरे डालते हैं, वहां से पुलिस और अन्य लोग कुछ दिनों बाद उन्हें हटा देते हैं, ऐसे में बच्चों की पढ़ाई कहां होगी, वे नहीं जानती हैं।
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