मां ने रखा है व्रत
रामलाल वृद्धाआश्रम में कई ऐसी मां हैं, जिनके द्वारा पुत्र की लम्बी आयु के लिए व्रत रखा है। ये वे मां हैं, जिनको उनकी संतानों ने घर से बाहर निकाल दिया है। ऐसा नहीं है, कि इनकी संतानों पर किसी बात की कमी हो, कमी है, तो बस प्रेम की। जिन बच्चों को बचपन से पाल पोसकर बड़ा किया, अब उन बच्चों के दिलों में अपनी मां के लिए ही जगह नहीं है। वे अपने नए जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं, कि अपनी मां तक को भूल गए हैं। पर मां का दिल आज भी अपने बच्चों के लिए तड़पता है। भले ही बच्चों से वे दूर हैं, लेकिन बच्चों के सुखी जीवन के लिए उन्होंने व्रत रखा है।
आती है बच्चों की याद
पत्रिका टीम ने जब इन मांओं से बात, की तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। कहना बहुत कुछ चाहती थीं, लेकिन आवाज से पहले उनकी आंखों से छलकने वाले आंसू उनकी दर्द की कहानी को बयां कर रहे थे। परेशान थी, पुत्र की एक झलक पाने के लिए। हर वर्ष पुत्र की झलक देखकर व्रत खोलतीं थीं, लेकिन इस बार दर्द ये था, कि व्रत तो रखा है, लेकिन पुत्र का चेहरा नहीं देख पाएंगी।
पत्रिका टीम ने जब इन मांओं से बात, की तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। कहना बहुत कुछ चाहती थीं, लेकिन आवाज से पहले उनकी आंखों से छलकने वाले आंसू उनकी दर्द की कहानी को बयां कर रहे थे। परेशान थी, पुत्र की एक झलक पाने के लिए। हर वर्ष पुत्र की झलक देखकर व्रत खोलतीं थीं, लेकिन इस बार दर्द ये था, कि व्रत तो रखा है, लेकिन पुत्र का चेहरा नहीं देख पाएंगी।