आगरा

अक्षय तृतीया विशेषः परशुराम अपने पिता के साथ हिमालय से लेकर आए थे शिवलिंग, कैलाश में है स्थापित

अक्षय तृतीया विशेष महत्व रखती है, मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम का अवतार लिया था।

आगराApr 17, 2018 / 01:35 pm

धीरेंद्र यादव

Akshaya Tritiya 2018

आगरा। अक्षय तृतीया विशेष महत्व रखती है, मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम का अवतार लिया था। भगवान परशुराम ने आगरा में भगवान शिव के मंदिर की स्थापना की थी, जिसे आज कैलाश धाम के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की विशेषता ये है कि यहां एक नहीं, बल्कि दो शिवलिंग हैं, जो स्वंय भगवान शिव ने परशुराम और उनके पिता यमदग्नि ऋषि को दी थीं।
ये है कहानी
राष्ट्रीय राजमार्ग 2 मथुरा रोड पर रुनकता के पास रेणुका धाम है। इस जगह का नाम भगवान परशुराम की मां रेणुका के नाम पर है। बताया गया है कि करीब 10,500 वर्ष पहले भगवान परशुराम और उनके पिता यमदग्नि कैलाश मंदिर पर पूजा करने जाते थे। हजारों वर्ष की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने वरदान मांगने को कहा, तो भगवान परशुराम ने महादेव से कहा कि वे उनके साथ रेणुका धाम चलें। क्योंकि मां का स्वास्थ्य सही नहीं रहता है, यहां आने में काफी समय व्यर्थ होता है। यदि आप स्वयं हमारे साथ चलेंगे, तो मां भी आपकी आराधना कर सकेंगी। इस पर भगवान शिव ने कहा वे तो वनवासी हैं। इसलिये कैलाश पर्वत छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं, लेकिन इस पर्वत के कण कण में विराजमान हूूं, आप जिस भी कण को ले जायेंगे, उसमें मैं विराजमान रहूंगा।
कैलाश पर्वत से आये शिवलिंग
भगवान शिव की बात मानकर भगवान परशुराम और उनके पिता यमदग्नि ऋषि दो शिवलिंग लेकर चल दिये। रास्ते में संध्या वंदन का समय होने पर उन्होंने यमुना किनारे दोनों शिवलिंग को एक स्थान पर रख दिया। पूजन के बाद जब इन शिवलिंग को उठाने का प्रयास किया, तो शिवलिंग नहीं हिले। तभी आकाशवाणी हुई कि मैं अचलेश्वर हूं, जिस स्थान पर एक बार स्थापित हो जाता हूं, तो वहीं रहता हूं। इसलिये आप मेरी पूजा करने यहीं आया करें। इसके बाद समय बीतता गया और इन शिवलिंग पर मिट्टी के टीले जम गये।
ऐसे बना मंदिर
महंत महेश गिरी ने बताया कि आज से 1500 वर्ष पूर्व एक गाय का दूध स्वयं ही टीले पर निकलने लगता था। ग्वाले और गांववालों ने जब वहां खुदाई की, तो दोनों शिवलिंग प्रकट हुये। साथ में भगवान परशुराम द्वारा लिखित ताम्रपत्र मिला, जिसमें इन शिवलिंगों का इतिहास लिखा था। उसके बाद इस तीर्थ स्थान पर मंदिर की स्थापना हुई।
 

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