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केंद्र और राज्य सरकार चुनाव में हार झेलने को हो जाए तैयार

locationआगराPublished: Oct 27, 2017 04:27:37 pm

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोषणाओं पर खरा नहीं उतरता ये विभाग, न्यूनतम मजदूरी के मामले में किसी को नहीं दिखता आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का मानदेय

Anganwadi Karyakatri

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आगरा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शिक्षामित्रों के लिए सरकारों ने कोई कदम नहीं उठाए। शिक्षामित्रों में इस बात से खासा आक्रोश व्याप्त है। वहीं अब सरकार की मंशाओं पर पानी फेरने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्री भी तैयार हैं। आंगनबाड़ी कार्यकत्री लगातार आंदोलन कर रही हैं लेकिन, सरकारें न तो उनका मानदेय बढ़ा रही हैं और नहीं उन्हें स्थाई कर रही हैं। आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का कहना है कि उन पर कार्य का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। पहले वे सिर्फ बच्चों को पोषण आहार देने के लिए काम करती थीं, लेकिन, आज वे स्वास्थ्य से लेकर तमाम काम करती है।
मानदेय बढ़ाने से लेकर ये हैं मांगें
देश से कुपोषण मिटाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन्हीं योजनाओं में आंगनबाड़ी कार्यकत्री कार्यरत हैं। अखिल भारतीय आंगनबाड़ी कर्मचारी महासभा की जिलाध्यक्ष मंजूवाला सिनसिनवार का कहना है कि आंगनबाड़ियों को शासकीय कर्मचारी घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकत्री पोषाहार पंजीरी और गर्भवती महिलाओं के लिए काम करती हैं। कुपोषण मिटाने वाली योजनाओं में काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकत्री को महज एक दिन का सौ रुपया मानदेय मिलता है। उनका कहना है कि जब वो एक दिन के न्यूनतम वेतन से कम रुपये पाती हैं, तो उन्हें गरीबी रेखा की श्रेणी में घोषित क्यों नहीं किया जाता है।
ये हैं आंगनबाड़ी कार्यकत्री की मांगें
आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की मांग है कि मुख्य सेविकाओं के सभी रिक्त पदों पर सभी आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को योग्यता के आधार पर मुख्य सेविका के पद पर नियुक्त किया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकत्री को 18 हजार रुपये, सहायिकाओं को नौ हजार रुपये प्रतिमाह दिया जाए। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के 28.4.1995 के शासनादेश में है कि दस वर्ष की सेवा पूरी करने पर बिना किसी शर्त के मुख्य सेविका के पद पर उनका प्रमोशन किया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की बीएलओ निर्वाचन और गैर आईसीडीएस कार्यों में डयूटी न लगाई जाए। वहीं केंद्रों पर भी प्राथमिक विद्यालय की भांति ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाश घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकत्री और सहायिकाओं की मृत्यु के बाद उनके परिवार की आश्रित महिला को योग्यता के अनुसार नियुक्त किया जाए। कार्य दिवस के समय मृत्यु होने पर दस लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। जिलाधिकारी से बाल विकास सचिव के आदेश का पालन कराया जाए। प्रदेश सरकार इन नियमों को तोड़मरोड़कर मैरिट व्यवस्था लागू कर नियुक्तियां कर रही है। उनका कहना है कि सरकारों ने उनका साथ नहीं दिया है। इसलिए सरकारें अब निकाय चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव में हार के लिए तैयार रहें।
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