यह भी पढ़ें विशेष: पैतृक गांव बटेश्वर में हर सरकार ने किया अटल जी का ‘सपना’ चकनाचूर, आज भी नहीं किसी का ध्यान जब मेयर चुनी गईं मेयर पद की मतगणना आगरा-कानपुर हाईवे पर मंडी समिति परिसर में हुई थी। मतपत्र से वोट पड़े थे। गिनती करने में बहुत समय लगता था। मैं उस समय आगरा के प्रसिद्ध अखबार में बतौर रिपोर्टर काम कर रहा था। अंतिम परिणाम घोषित होने तक मैं मतगणना स्थल पर था। जैसे ही विजयी होने की घोषणा की गई, बेबीरानी मौर्य की आँखों से अश्रुधार बह निकली। उन्होंने सबसे पहले अपने श्वसुर के चरण स्पर्श किए।
यह भी पढ़ें वीडियो: मीट बनाने का विरोध करना पड़ा भारी, पिता—चाचा और भाई ने युवती को दी ऐसी खौफनाक सजा जिसे सुनकर कांप जाएगी आपकी रूह आज भी उनमें गृहणी वाली बात सब सोचते थे कि मेयर बन गई हैं तो अब तेजतर्रार हो जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उन्होंने गृहणी वाली बात कभी नहीं छोड़ी। शायद, यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। वे भाजपा की कार्यकर्ता हैं, लेकिन सत्ता आए या जाए, उनका सबसे व्यवहार एक सा ही है। साधारण कार्यकर्ता की तरह ही रहती हैं। मीडिया में छपने का शौक उन्हें कतई नहीं है। इसी कारण बहुत से मीडियाकर्मी उनके बारे में अधिक नहीं जानते हैं। वे आगरा की ऐसी पहली दलित महिला हैं, जिन्हें राज्यपाल बनाया गया है।
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विधानसभा का चुनाव लड़ा मुझे याद है कि उन्होंने एत्मादपुर विधानसभा क्षेत्र से दो बार टिकट मांगा। क्षेत्र में जाकर चुनाव लड़ने की तैयारी की। भाजपा ने टिकट नहीं दिया। इसके बाद भी उन्होंने पार्टी के खिलाफ बगावत नहीं की। पार्टी के लिए कोई विपरीत प्रतिक्रिया नहीं दी। फिर भाजपा ने एत्मादपुर से टिकट दिया, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। चुनाव हार गईं। इसके बाद अचानक खबर आई कि उन्हें राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य बना दिया गया है। इसके साथ ही उनका पूरे देश में नाम हो गया। फिर भी उन्होंने घरेलू व्यवहार नहीं छोड़ा। इसके बाद कई साल से उन्हें पार्टी ने कोई प्रमुख पद नहीं दिया। भाजपा राष्ट्रीय परिषद की सदस्य हैं वे। फिर भी कोई चिन्ता नहीं। पार्टी ने जिस काम में लगाया, लग गईं। किसी से कोई शिकायत नहीं। लगता है इसी का प्रतिफल उन्हें राज्यपाल के रूप में मिला है।
विधानसभा का चुनाव लड़ा मुझे याद है कि उन्होंने एत्मादपुर विधानसभा क्षेत्र से दो बार टिकट मांगा। क्षेत्र में जाकर चुनाव लड़ने की तैयारी की। भाजपा ने टिकट नहीं दिया। इसके बाद भी उन्होंने पार्टी के खिलाफ बगावत नहीं की। पार्टी के लिए कोई विपरीत प्रतिक्रिया नहीं दी। फिर भाजपा ने एत्मादपुर से टिकट दिया, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। चुनाव हार गईं। इसके बाद अचानक खबर आई कि उन्हें राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य बना दिया गया है। इसके साथ ही उनका पूरे देश में नाम हो गया। फिर भी उन्होंने घरेलू व्यवहार नहीं छोड़ा। इसके बाद कई साल से उन्हें पार्टी ने कोई प्रमुख पद नहीं दिया। भाजपा राष्ट्रीय परिषद की सदस्य हैं वे। फिर भी कोई चिन्ता नहीं। पार्टी ने जिस काम में लगाया, लग गईं। किसी से कोई शिकायत नहीं। लगता है इसी का प्रतिफल उन्हें राज्यपाल के रूप में मिला है।
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यह चमत्कार भाजपा में ही जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा था, अचानक ही भाजपा के युवा नेता अश्वनी वशिष्ठ का फोन आ गया। बेबीरानी मौर्य को राज्यपाल बनाए जाने पर कहा कि इस तरह का चमत्कार भाजपा में ही हो सकता है। साधारण कार्यकर्ता भी राज्यपाल बन सकता है। आगरा के लिए इससे बड़ी सौगात नहीं हो सकती है।
यह चमत्कार भाजपा में ही जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा था, अचानक ही भाजपा के युवा नेता अश्वनी वशिष्ठ का फोन आ गया। बेबीरानी मौर्य को राज्यपाल बनाए जाने पर कहा कि इस तरह का चमत्कार भाजपा में ही हो सकता है। साधारण कार्यकर्ता भी राज्यपाल बन सकता है। आगरा के लिए इससे बड़ी सौगात नहीं हो सकती है।