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देवउठनी एकादशी से फिर से शुरू हो जाएंगे विवाह, मुहूर्त निकलवाने से पहले जरूर समझ लें ये नियम ताकि वर-वधू के जीवन में न आए कोई परेशानी

locationआगराPublished: Nov 02, 2018 05:12:19 pm

Submitted by:

suchita mishra

ज्योतिषाचार्य से जानें कुछ ऐसी बातें विवाह से पूर्व जिन्हें ध्यान रखना जरूरी है।

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विवाह किसी भी स्त्री और पुरुष नए जीवन यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। पुरुष का बायां व स्त्री का दाहिना भाग मिलाकर एक-दूसरे की शक्ति को पूरक बनाने की क्रिया को विवाह कहा जाता है। भगवान शिव और पार्वती को अर्द्धनारीश्वर की संज्ञा देना इसी बात का प्रमाण है। 19 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। इस दिन से एक बार फिर से विवाह की शुरुआत हो जाएगी। ऐसे में जरूरी होता है कि विवाह को शुभ समय में किया जाए ताकि भविष्य में किसी तरह की समस्या न आए। ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानते हैं कुछ ऐसी बातें विवाह करने से पूर्व जिन्हें ध्यान रखना जरूरी है।
1. 27 नक्षत्रों में से 10 नक्षत्रों को विवाह कार्य के लिये नहीं लिया जाता है। इसमें आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, स्वाती आदि नक्षत्र आते हैं। इन दस नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो व सूर्य़ सिंह राशि में गुरु के नवांश में गोचर कर तो विवाह करना सही नहीं रहता है।
2. जन्म मास, जन्मतिथि व जन्म नक्षत्र में इन तीनों समयावधियों में अपनी बड़ी सन्तान का विवाह करना सही नहीं रहता है। जन्म नक्षत्र व जन्म नक्षत्र से दसवां नक्षत्र, 16वां नक्षत्र, 23वां नक्षत्र का त्याग करना चाहिए।
3. शुक्र पूर्व दिशा में उदित होने के बाद तीन दिन तक बाल्यकाल में रहता है। इस अवधि में शुक्र अपने पूर्ण रूप से फल देने में असमर्थ नहीं होता है। इसी प्रकार जब वह पश्चिम दिशा में होता है। 10 दिन तक बाल्यकाल की अवस्था में होता है। शुक्र जब पूर्व दिशा में अस्त होता है। तो अस्त होने से पहले 15 दिन तक फल देने में असमर्थ होता है व पश्चिम में अस्त होने से 5 दिन पूर्व तक वृ्द्धावस्था में होता है। इन सभी समयों में शुक्र की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है। गुर किसी भी दिशा मे उदित या अस्त हों, दोनों ही परिस्थितियों में 15-15 दिनों के लिये बाल्यकाल में वृ्द्धावस्था में होते हैं।
उपरोक्त दोनों ही योगों में विवाह कार्य संपन्न करने का कार्य नहीं किया जाता है। शुक्र व गुरु दोनों शुभ है। इसके कारण वैवाहिक कार्य के लिये इनका विचार किया जाता है।
4. चन्द्र को अमावस्या से तीन दिन पहले व तीन दिन बाद तक बाल्य काल में होने के कारण इस समय को विवाह कार्य के लिये छोड़ दिया जाता है। ज्योतिषशास्त्र में यह मान्यता है कि शुक्र, गुरु व चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह बाल्यकाल में हो तो वह अपने पूर्ण फल देने की स्थिति में न होने के कारण शुभ नहीं होता है। इस अवधि में विवाह कार्य करने पर इस कार्य की शुभता में कमी होती है।
5. विवाह कार्य के लिये वर्जित समझा जाने वाला एक अन्य योग है जिसे त्रिज्येष्ठा के नाम से जाना जाता है। इस योग के अनुसार सबसे बड़ी संतान का विवाह ज्येष्ठा मास में नहीं करना चाहिए। इस मास में उत्पन्न वर या कन्या का विवाह भी ज्येष्ठा मास में करना सही नहीं रहता है। ज्येष्ठ लडका, ज्येष्ठ लडकी तथा ज्येष्ठा मास ये तीनों ज्येष्ठ मिले तो त्रिज्येष्ठा नामक योग बनता है। एक ज्येष्ठा अर्थात केवल मास या केवल वर या कन्या हो तो यह अशुभ नहीं होता।
4. एक लड़के से दो सगी बहनों का विवाह नहीं किया जाता है। साथ ही दो सगे भाइयों का विवाह दो सगी बहनों से भी नहीं करना चाहिए। इसके अलावा दो सगे भाइयों या बहनों का विवाह भी एक ही मुहूर्त समय में नहीं करना चाहिए। जुड़वां भाइयों का विवाह जुड़वा बहनों से नहीं करना चाहिए। लेकिन सौतेले भाइयों का विवाह एक ही लग्न समय पर किया जा सकता है। विवाह की शुभता में वृ्द्धि करने के लिये मुहूर्त की शुभता का ध्यान रखा जाता है।
9. पुत्री का विवाह करने के 6 सूर्य मासों की अवधि के अन्दर सगे भाई का विवाह किया जाता है। लेकिन पुत्र के बाद पुत्री का विवाह 6 मास की अवधि के मध्य नहीं किया जा सकता है। ऐसा करना अशुभ समझा जाता है। यही नियम उपनयन संस्कार पर भी लागू होता है। पुत्री या पुत्र के विवाह के बाद 6 मास तक उपनयन संस्कार नहीं किया जाता है ।दो सगे भाइयों या बहनों का विवाह भी 6 मास से पहले नहीं किया जाता है।

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