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मायावती-अखिलेश की साझेदारी पर भी भाजपा भारी, यहां गठबंधन की राह नहीं आसाना

locationआगराPublished: Jan 12, 2019 03:14:18 pm

अखिलेश यादव से हाथ मिलाने के बाद भी ब्रज की एक सीट पर मायावती की स्थिति बहुत मजबूत होती नहीं दिख रही है।

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मायावती – अखिलेश की साझेदारी पर भी भाजपा भारी, यहां गठबंधन की राह नहीं आसाना

आगरा। अखिलेश यादव से हाथ मिलाने के बाद भी ब्रज की एक सीट पर मायावती की स्थिति बहुत मजबूत होती नहीं दिख रही है। बीते दस वर्षों से इस लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कब्जा है हालांकि दोनों बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कड़ी टक्कर दी। बीते लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो गठबंधन के बावजूद यहां भाजपा को उखाड़ फेंकना सपा-बसपा के लिए आसान नहीं है।
आकड़ों पर गौर करें तो गठबंधन हो जाने के बाद भी ब्रज की आगरा लोकसभा सीट पर भाजपा मजबूत है। आगरा लोकसभा सीट सुरक्षित है, दलितों की राजधानी कहा जाता है यह शहर। यहां सबसे अधिक वोट मुस्लिम और दलितों के हैं बावजूद भाजपा सपा बसपा से इस सीट को छीनने में कामयाब रही है। हालांकि आगरा पर दो बार सपा का कब्जा रहा है। सपा की तरफ से 1999 व 2004 में राजब्बर ने जीत दर्ज की थी लेकिन राजबब्बर के अलग होते ही सपा यहां टक्कर में भी नहीं आ पाई। इससे साफ है कि दोनों बार राज बब्बर अपने दम पर जीते। अब 2009 और 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की तरफ से राम शंकर कठेरिया ने जीत दर्ज की लेकिन बसपा उम्मीदवार ने कड़ी टक्कर दी। दोनों पार्टियों का वोटर प्रतिशत जोड़कर भी अभी भाजपा से कम रह रहा है।
किसकी कितनी ‘साझेदारी’

आगरा लोकसभा सीट- बीते 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान यहां भाजपा उम्मीदवार रामशंकर कठेरिया को 542716 यानि कि कुल वोट के 54.53 प्रतिशत वोट मिले। दूसरे नंबर पर बसपा प्रत्याशी नारायण सिंह सुमन 283453 यानि की 26.48 प्रतिशत वोट हासिल हुए। सपा के महाराज सिंह धनगर 134708 (12.58 प्रतिशत) वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर रहे। आंकड़ों पर नजर डालें तो मोदी लहर के बावजूद बसपा 26.48 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रही। गठबंधन के बाद सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो होता है 39.06 प्रतिशत। इस लिहाज से मायावती और अखिलेश का गठबंधन भी भाजपा के वोट प्रतिशत के करीब नहीं जा रही है। अभी भी भाजपा के कुल 54.53 प्रतिशत से सपा-बसपा का 15.47 प्रतिशत वोट कम है।
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