निर्विरोध चुनाव जीते राकेश बघेल
आगरा में पिछले साल जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट रिक्त हुई थी। यहां पर समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष का तख्ता पलट हुआ था। इसके बाद यहां चुनाव की तारीख घोषित हुई। सोमवार को नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई तो यहां पर सिर्फ प्रबल प्रताप सिंह उर्फ राकेश बघेल ने अपना नामांकन किया। तय समय में और किसी द्वारा नामांकन न किए जाने पर प्रबल प्रताप को निर्विरोध अध्यक्ष घोषित किया गया। इसके बाद उनके समर्थकों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। आगरा में हुए तख्ता पलट के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि सपा से भारतीय जनता पार्टी समर्थित दावेदार को कड़ी टक्कर मिलेगी। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका।
आगरा में पिछले साल जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट रिक्त हुई थी। यहां पर समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष का तख्ता पलट हुआ था। इसके बाद यहां चुनाव की तारीख घोषित हुई। सोमवार को नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई तो यहां पर सिर्फ प्रबल प्रताप सिंह उर्फ राकेश बघेल ने अपना नामांकन किया। तय समय में और किसी द्वारा नामांकन न किए जाने पर प्रबल प्रताप को निर्विरोध अध्यक्ष घोषित किया गया। इसके बाद उनके समर्थकों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। आगरा में हुए तख्ता पलट के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि सपा से भारतीय जनता पार्टी समर्थित दावेदार को कड़ी टक्कर मिलेगी। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका।
भाजपा नेता पहुंचे कलेक्ट्रेट परिसर
कलेक्ट्रेट परिसर में नामांकन दाखिल होने थे। सोमवार को निर्विरोध चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने नए जिला पंचायत अध्यक्ष को बधाईयां दी। कई भाजपा नेता कलेक्ट्रेट परिसर पहुंचे। इस चुनाव के लिए भाजपा का एक खेमा प्रबल प्रताप के लिए पूरी फंडिंग कर रहा था।
कलेक्ट्रेट परिसर में नामांकन दाखिल होने थे। सोमवार को निर्विरोध चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने नए जिला पंचायत अध्यक्ष को बधाईयां दी। कई भाजपा नेता कलेक्ट्रेट परिसर पहुंचे। इस चुनाव के लिए भाजपा का एक खेमा प्रबल प्रताप के लिए पूरी फंडिंग कर रहा था।
सदस्यों को किया था शहर से बाहर
इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा समर्थित दावेदार ने पंचायत सदस्यों को शहर से दूर रखा था। सदस्यों को टूर पर भेजा गया था, ताकि कोई सदस्य दूसरे गुट में न चला जाए। चुनाव वाले दिन ही उन्हें शहर में लाने की योजना बनाई गई थी।
इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा समर्थित दावेदार ने पंचायत सदस्यों को शहर से दूर रखा था। सदस्यों को टूर पर भेजा गया था, ताकि कोई सदस्य दूसरे गुट में न चला जाए। चुनाव वाले दिन ही उन्हें शहर में लाने की योजना बनाई गई थी।