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आगरा विश्वविद्यालय को कोई नहीं सुधार सकता, आज भी सिर पटक रहे छात्र और अभिभावक, देखें वीडियो

locationआगराPublished: Dec 09, 2019 03:54:44 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap

-कितने ही कुलपति आए और चले गए, विश्वविद्यालय का ढर्रा नहीं सुधरा
-अनेक घोटालों का जनक, बीएड घोटाला सर्वाधिक चर्चित, जिसमें शिक्षक हो रहे बर्खास्त
-अधिकांश मामलों में नहीं होती कोई कार्रवाई, विकृत मानसिक सोच का परिणाम भ्रष्टाचार

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आगरा। ये आगरा विश्वविद्यालय है, जिसे डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा कहा जाता है। विश्वविद्यालय का मुख्य काम समय पर प्रवेश, परीक्षा, परिणाम देने का होता है। विश्वविद्यालय सारे काम करता है, बस यही काम नहीं करता है। परिणाम यह है कि विश्वविद्यालय की चौखट पर रोजाना बड़ी संख्या में छात्र और अभिभावक सिर पटकते रहते हैं। समय पर अंकपत्र नहीं मिलता है तो नौकरी हाथ से चली जाती है। किसी अन्य विश्वविद्लाय में प्रवेश नहीं मिल पाता है। कितने ही कुलपति आए और चले गए, विश्वविद्यालय का ढर्रा नहीं सुधरा है। कहने को तो विश्वविद्यालय का उद्देश्य तमसो मा ज्योतिर्गमय (अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो) है, लेकिन हो रहा है इसके विपरीत। आगरा विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का तो पर्याय बन चुका है। बीएड घोटाला सबके सामने है। अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस (International Anti-Corruption Day) के बहाने जानते हैं विश्वविद्यालय में चल रहे तमाम ‘खेलों’ के बारे में।
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1927 में हुई थी स्थापना

आगरा विश्वविदयालय की स्थापना एक जुलाई, 1927 को हुई थी। प्रारंभ में संयुक्त प्रांत आगरा, मध्य भारत और राजपूताना के 14 कॉलेज संबद्ध थे। आर्ट, साइंस, कॉमर्स और विधि संकाय ही थे। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 24 सितम्बर, 1995 को आगरा विश्वविद्यालय का नाम बदलकर डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय (आगरा विश्वविद्यालय) कर दिया। विश्वविद्यालय के अधीन आगरा और अलीगढ़ मंडल हैं। इस समय विश्वविद्यालय से 200 कॉलेज, 15 आवासीय संस्थान, 4 आवासीय परिसर हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज, आगरा और यूपी के सभी होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज भी संबद्ध हैं। विश्वविद्यालय में सूरपीठ, गाँधी अध्ययन केन्द्र और डॉ. भीमराव आंबेडकर चेयर हैं। इनमें काम कुछ भी नहीं होता है।
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पूर्व छात्र

भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जैसी राजनीतिक हस्तियां आगरा विश्वविद्यालय की छात्र रही हैं। घोटाले करके विश्वविद्यालय ने इनके नाम पर भी बट्टा लगा दिया है।
घोटाले ही घोटाले

विश्वविद्यालय में सुरक्षा एजेंसी घोटाला, परीक्षा एजेंसी घोटाला, परीक्षा रिजल्ट में गड़बड़ी घोटाला, पंडाल घोटाला, ट्रांसफर यात्रा पर फर्जी घोटाला, सफाई कर्मचारी भुगतान घोटाला, विश्वविद्यालय फंड इन्वेस्टमेंट घोटाला, फर्नीचर घोटाला, कंप्यूटर खरीद घोटाला चर्चित रहे हैं। इनमें बिना टेंडर एक ही संस्था को काम दिए गए। फर्नीचर घोटाला में तत्कालीन कुलपति डीएन जौहर और तत्कालीन कुलपति मोहम्मद मुजम्मिल, तत्कालीन वित्त अधिकारी रामपटल सिंह और अमरचंद सिंह, तत्कालीन कुलसचिव वीके पांडेय, गृह विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. भारती सिंह के खिलाफ थाना हरीपर्वत में तीन सितम्बर, 2018 को मुकदमा पंजीकृत कराया गया था। घोटाला विजिलेंस ने पकड़ा था। इनके अलावा इतिहास विभाग के रीडर अमित वर्मा, सहायक कुलसचिव परीक्षा अनिल कुमार शुक्ला, भौतिकी विभाग के रीडर बीपी सिंह, उप कुलसचिव परीक्षा प्रभात रंजन, डिप्टी रजिस्ट्रार वित्त महेंद्र कुमार, वेबमास्टर अनुज अवस्थी, कार्यवाहक वित्त अधिकारी बालजी यादव, गृह विज्ञान प्रवक्ता डॉ. अनीता चोपड़ा, निदेशक राघव नारायण, माइंड लॉजिस्टिक लिमिटेड बेंगलुरु के प्रोजेक्ट मैनेजर शैलेंद्र टंडन, मीनाक्षी मोहन और बालेश त्रिपाठी के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज हुई थी।
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बीएड घोटाला

वर्ष 2005 में अलीगढ़ के विद्यार्थी सुनील को बीएड जो मार्कशीट मिली थी, उसमें उसे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण दर्शाया गया था। जब उसे डिग्री दी गई तो उसमें तृतीय श्रेणी दिखाई गई। इस पर छात्र सुनील ने न्यायालय की शरण ली। न्यायालय ने इस मामले में जांच कराई, तो पता चला कि बिना प्रवेश के ही सैकड़ों लोगों की मार्कशीट और डिग्री जारी कर दी गई हैं। राज्य सरकार ने विशेष जांच दल (एसआईटी) को जांच सौंपी तो सारा भ्रष्टाचार उजागर हो गया। इसमें विश्वविद्यालय के 20 कर्मचारियों को दोषी पाया गया। कुछ कर्मचारी जेल में हैं। आगरा विश्वविद्यालय द्वारा जारी फर्जी बीएड की डिग्री के आधार पर शिक्षक की नौकरी पाने वाले उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के सैकड़ों शिक्षक बर्खास्त किए जा चुके हैं। उनसे वेतन वसूल भी किया जाना है। सबसे पहले तत्कालीन कुलपति प्रो. मोहम्मद मुज्जमिल के आग्रह पर इलाहाबद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने की थी। बाद में जांच एसआईटी को सौंपी गई। कुल मिलाकर बीएड के पांच हजार अंकपत्र संदेह के घेरे में हैं।
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छात्र नहीं थे, लेकिन अंकपत्र दिए गए

बीएड सत्र 2004-05 के लिए 82 महाविद्यालयों में 9000 सीटों की मान्यता थी। परीक्षाफल तैयार करने वाली एजेंसी इण्टीग्रेटेड साफ्टवेयर सिस्टम महानगर लखनऊ ने 8930 छात्रों का परीक्षा परिणाम आगरा विश्वविद्यालय आगरा को भेजा। विश्वविद्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों ने पूरे टेबुलेशन चार्ट को बदल कर लगभग 12,000 छात्रों को अंकपत्र दिए गए। उनके नाम भी दर्ज कर लिए गए। 3000 ऐसे विद्यार्थी थे, जो कहीं छात्र थे ही नहीं। उन्हें 86 फीसदी तक अंक देकर उत्तीर्ण किया गया। तृतीय श्रेणी से प्रथम श्रेणी किया गया।
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क्या कहते हैं मदन मोहन शर्मा

आगरा विश्वविद्यालय के कई घोटालों से पर्दा उठाने वाले डॉ. मदन मोहन शर्मा का कहना है कि अधिकांश मामलों में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। कार्रवाई कराने के लिए धरना तक देना पड़ा है। बीएड घोटाले के सभी दोषी अभी तक जेल में नहीं हैं। शिक्षक बर्खास्त किए गए हैं, लेकिन असली दोषी तो विश्वविद्यालय के अधिकारी और कर्मचारी हैं।
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विकृत मानसिक सोच

आखिर क्यों होता है भ्रष्टाचार, सवाल पर समाजशास्त्री डॉ. वेद त्रिपाठी कहते हैं कि यह हमारी विकृत मानसिक सोच का परिणाम है। हर व्यक्ति बिना मेहनत के अमीर बनना चाहता है। पैसे कमाने के लिए सरल तरीके सोचने लगते हैं। यहीं से भ्रष्टाचार का जन्म होता है। सरकारी पदों पर बैठे लोगों को तो भ्रष्टाचार किए बिना रोटी हजम नहीं होती है।
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