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कुष्ठ निवारण दिवसः देश का पहला अस्पताल जापान ने आगरा में बनवाया

locationआगराPublished: Jan 29, 2016 08:07:00 am

Submitted by:

Ruchi Sharma

30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बलिदान दिवस है। इसे राष्ट्रीय कुष्ठ निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है

आगरा. 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बलिदान दिवस है। इसे राष्ट्रीय कुष्ठ निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश का पहला कुष्ठ रोग चिकित्सालय जापान की मदद से आगरा में बना। टोकियो (जापान) के एक स्वैच्छिक संगठन जापनीज लैप्रोसी मिशन फॉर एशिया (जालमा) द्वारा चलाए गए एक अभियान के तहत 1966 में आगरा में ताजमहल के पूर्वी गेट के निकट इसकी स्थापना की गई थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू के सहयोग से इस संस्थान को चलाने के लिए एक बड़ा भूखंड संस्थान को मिला। यह संस्थान अंतराष्ट्रीय स्तर पर मानवीय संबंध एवं एकदूसरे के प्रति लगाव का उत्कृष्ट उदाहरण भी है।

तीन बार बदला नाम


जालमा का 10 वर्ष का गोल्डन टाइम रहा। यह वो समय था, जब जापनीज चिकित्सकों द्वारा यहां पर सेवाएं दी जाती थीं। यहां की सभी व्यवस्थाएं जापान की इस स्वैच्छिक संगठन द्वारा ही की जाती थीं। एक अप्रैल 1976 को यह संस्थान अस्तित्व में आया, जब इंडिया सेंटर ऑफ जालमा को आधिकारिक रूप से भारत सरकार को सौंपा गया और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद को हस्तांतरित किया गया। इस प्रकार 1976 में इसका नामकरण केन्द्रीय जालमा कुष्ठ रोग संस्थान के रूप में हुआ। वर्ष 2005 में विशाल शोध क्षेत्र के कारण इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय जालमा कुष्ठ एवं अन्य माइक्रोबैक्टीरियल रोग संस्थान रखा गया।

मूल उद्देश्य से भटका संस्थान

जालमा के पूर्व निदेशक डॉ. वेद भारद्वाज का कहना है कि जिस उद्देश्य के लिए जालमा की स्थापना की गई थी, उस पर अब फोकस नहीं रहा है। जापानी संस्था ने कुष्ठ रोग के उन्मूलन के लिए रोग का निदान एवं उपचार करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की थी। वर्ष 1976 में भारत सरकार के अधीन आने पर इसके मूल उद्देश्यों में कुष्ठ रोग के निदान, उपचार के साथ साथ इस रोग पर गंभीर शोध कार्य भी शामिल किया गया।

कुष्ठ रोग प्रबन्धन की मानक तकनीकियां तय करते हुए राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम में अपना योगदान देना रहा है, इसके बाद कुष्ठ रोग के क्षेत्र में योगदान के अतिरिक्त क्षय रोग, एचआईवी एवं फाइलेरियासिस को भी शामिल कर लिया गया। इन सबके सम्मलित होने से संस्थान ने अपना मूल उद्देश्य खो दिया है।
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