scriptSC ST Act: दलितों की पंचायत में लिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला | Dalit Mahapanchayat in Agra For Arakshan and Rights of Dalits | Patrika News

SC ST Act: दलितों की पंचायत में लिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला

locationआगराPublished: Sep 05, 2018 11:34:31 am

सपोर्ट इंडिया के अध्यक्ष एडवोकेट सुरेश चंद्र सोनी की अध्यक्षता में हुई दलित समाज की महापंचायत, दलितों का शैक्षणिक और राजनैतिक आरक्षण तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया जाए।

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आगरा। एक ओर जहां सवर्ण और ओबीसी एससी एसटी एक्ट के विरोध में सरकार पर हल्ला बोल रहे हैं। वहीं दूसरी ओर दलितों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए कवायद तेज हो रही हैं। आगरा में दलित समाज की महापंचायत हुई। ये महापंचायत सपोर्ट इंडिया के अध्यक्ष सुरेश चंद सोनी एडवोकेट की अध्यक्षता में हुई। जिसका संचालन प्रवक्ता रामवीर सिंह कर्दम ने किया।
पंचायत में लिया गया ये फैसला
पंचायत में सर्वसम्मति से फैसला किया गया कि दलितों का शैक्षणिक और राजनैतिक आरक्षण तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया जाए। बाबा साहब डॉ. अंबेडकर को 1932 में पृथक निर्वाचन के अधिकार को बहाल किया जाए और डॉ. अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच यरवदा जेल में हुए पूना पैक्ट को भी तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए। तब आरक्षण विरोधियों की समझ में आएगा कि दलितों को 100 प्रतिशत मिलने वाला हिस्सा महात्मा गांधी ने मात्र 10 प्रतिशत पर रहने दिया जो दलितों के साथ 1932 में लम्बे पैमाने पर धोखा था। अगर आरक्षण समाप्त करना हैं तो पूना पैक्ट को भी समाप्त करना होगा।
परेशान किया जा रहा है दलित
देश में हरिजन एक्ट, आरक्षण और दलित आरक्षण के नाम पर राजनीति की जा रही है। एडवोकेट सुरेश चंद्र सोनी का कहना है कि दलितों आरक्षण के नाम पर परेशान किया जा रहा है। पिछले कुछ सालों से दलितों को बेवजह सताया जा रहा है। 1932 में पृथक निर्वाचन के अधिकार में दलितों को प्रथम निर्वाचन का अधिकार था। उसमें दलित को दो वोट देने का अधिकार था। जिसमें एक वोट में दलित दलित को चुनेगा जिसमें सवर्ण का एक भी वोट नहीं होगा। वहीं दूसरे वोट में दलित सवर्ण को भी चुनेगा। यदि ये अधिकार जारी होता तो आज लोकसभा, राज्य सभा, विधानसभा और विधानपरिषद में दलितों के प्रतिनिधि होते। दलितों के बिना देश में कोई नया एक्ट लागू नहीं होता। पूना पैक्ट को रद्द करने के समय डॉ.आंबेडकर ने कहा था कि संगीनों के साए में हस्ताक्षर कराए गए है। वहीं उस समय ये कहा गया था कि दलितों के लिए सहूलियतें बढ़ाई जाएंगी और उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आरक्षण दिया जाएगा। पूना पैक्ट दलितों के साथ धोखा था। इसलिए दलितों का आरक्षण संवैधानिक अधिकार है।
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