अब नहीं बची गांव-गांव में बिखरी बृज की लोक सम्पदा
आगराPublished: Oct 19, 2019 04:20:23 pm
साहित्य उत्सव में बृज साहित्य संस्कृति और लोक सम्पदा पर हुई चर्चा, पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने लिया भाग
आगरा। कभी गांव-गांव में बिखरी बृज की लोक सम्पदा अब नहीं बची है। बृज की संस्कृति और लोक सम्पदा को बचाए रखने के नाम पर कई सरकारी योजनाएं बनी, करोड़ों रुपए आए, लेकिन कहा खर्च हुए नहीं पता। टीवी, फिल्मों के कारण हमारे सभी लोक गीत समाप्त होते जा रहे हैं। यह कहना था पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया का। वह आगरा कॉलेज मैदान में आयोजित साहित्य उत्सव एवं राष्ट्रीय पुस्तक मेले में बृज संस्कृति और लोक सम्पदा विषय पर आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि बृज के लोक गीतों और संस्कृति में बहुत सम्पदा छुपी हुई है। गीतों का जो संकलन मैंने किया वह अब गांव में भी नहीं गाए जाते। बृज के लोग गीतों में पेड़-पौधों, पर्यावरण, पारीवारिक सम्बंधों, जल संरक्षण, धर्म जैसे हर विषय समाहित थे। जन्म से लेकर विदाई तक के गीतों में हास परिहार है। बृज से अब बृज भाषा भी विलुप्त हो रही है। गांव में बृज भाषा नहीं बोलते। उनके संकलित गीतों को डॉ. सीमा मोरवल ने स्वर दिए तो सभी श्रोत्रा तालिया बजाए बिना नहीं रह सके। निबरिया के मोटे-मोटे पात…, उठो-उठो री सुहागिन नार, बुहारी देलो अंगना…, सुनो बराती वेदन में एक अचरज पायो है… जैसे गीत गाए। जलगांव महाराष्ट्र की प्रियंका सोनी व राज बहादुर राज ने बृज के साहित्य व परम्पराओं के महत्व पर प्रकाश डाला। संचालन दीपक सरीन व धन्यवाद अमी आधार निडर ने दिया।