आगरा

अटल स्मृति: ताजमहल में प्रवेश करना भी पसंद नहीं करते थे पूर्व प्रधानमंत्री, विजिटर बुक में कमेंट करने से कर दिया था इंकार..जानिए वजह!

अटल बिहारी वाजपेयी ने ताजमहल की सच्चाई को अपनी कविता में उजागर किया है। अटल स्मृति में पढें वो कविता।

आगराDec 24, 2019 / 11:06 am

suchita mishra

Atal Bihari Vajpayee

आगरा। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मूलरूप से बटेश्वर के रहने वाले थे। इस कारण उनका आगरा समेत पूरे ब्रज प्रांत से खासा लगाव रहा है। ब्रज प्रांत से उनके तमाम ऐसे किस्से जुड़े हैं जो आज भी तरोताजा से नजर आते हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि वे अपने जीवन में ताजमहल सिर्फ एक बार ही आए, तब उन्हें बतौर विदेश मंत्री, ब्रिटिश प्रधानमंत्री को ताजमहल दिखाने के लिए आगरा भेजा गया था। इसके बाद वर्ष 2001 को पाकिस्तानी राष्ट्रपति रहे परवेज मुर्शरफ के साथ शिखर वार्ता के दौरान आगरा आए थे, लेकिन ताजमहल नहीं गए थे। कल यानी 25 दिसंबर को अटल जी की जयंती है। इस मौके पर जानते हैं ताजमहल को लेकर उनके जीवन से जुड़े एक अनकहे किस्से के बारे में।
42 वर्ष पुराना किस्सा
वर्ष 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी बतौर विदेश मंत्री ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन के स्वागत के लिए आगरा आए थे। उस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन ताजमहल का दीदार करने ताजनगरी आए थे। जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन ताजमहल के अंदर गए, तो उनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी ने ताजमहल के अंदर प्रवेश करने से मना कर दिया और रॉयल गेट पर एक कुर्सी डालकर बैठ गए। ताजमहल देखने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री दोनों ने विजिटर बुक के एक पेज पर अपने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन देशभर में अजूबा मानी जाने वाली इस बेश्कीमती इमारत पर कोई टिप्पणी नहीं की। उस समय एएसआई के एक अधिकारी ने अटल बिहारी वाजपेयी से ताजमहल को लेकर कुछ शब्द लिखने का आग्रह किया तो उन्होंने साफतौर पर इंकार कर दिया। इसके बाद मुस्कुराते हुए कहा कि ताज पर मेरी लिखी कविता पढ़ लेना।
कविता में किया है मजदूरों के दर्द का बखान
दुनियाभर से बेशक लोग ताजमहल की खूबसूरती को निहारने आते हों, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी खूबसूरती में दबे तमाम मजदूरों के दर्द को महसूस किया है। उन्होंने ताजमहल पर लिखी कविता में इसकी खूबसूरती का कोई जिक्र नहीं किया बल्कि मजदूरों का दर्द बयां करते हुए लिखा है…

‘यह ताजमहल, यह ताजमहल
यमुना की रोती धार विकल
कल कल चल चल
जब रोया हिंदुस्तान सकल
तब बन पाया ताजमहल
यह ताजमहल, यह ताजमहल’
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