संदेश भी छिपा आगरा की नगला पदी निवासी श्रीमती मिथलेश राघव पत्नी गोपाल सिंह राघव गेहूं और चने की लड़ाई का वर्णन बखूबी करती हैं। इस लोकगीत के अंत में एक सुंदर संदेश भी छिपा हुआ है। उन्होंने पत्रिका के लिए गेहूं और चने में हुई लड़ाई का गीत सुनाया। आप वीडियो के माध्यम से सुनेंगे तो आनंद आएगा।
पूरा लोक गीत इस प्रकार है बहुत दिनों की बात याद है आज हमें एक आई, गेहूं और चने में एक दिन होने लगी लड़ाई। गेहूं लगा चने से कहने तू है बड़ा गंवार,
मेरे पास न आया कर तू बार-बार बेकार। बुरा चने को लगे किन्तु वह बोले डरते-डरते, आखिर तो हम भाई दोनों गर्व किसलिए करते। काला-काला भौंड़ाभाडा पड़ा कहीं रहता है, मुझ जैसे सुंदर और कोमल को भाई कहता है।
कहा चने ने मत भूलो तुम मेरे हो लघु भ्राता और काले गोरे होने से क्या टूट जाएगा नाता। सुंदर हो तो भी क्या है गुण मुझसे कम रखते हो, सृष्टि कहां समता मेरी भी तुम कब कर सकते हो।
रोष चढ़ा गेहूं को और लाली आँखों मे छाई, हुआ घोर संग्राम छुपा सूरज पृथ्वी थर्राई। कहें सृष्टि की क्या कि स्वयं अंतर्यामी घबराए, व्याकुल हुए गरुण वाहन तज नंगे पैरों धाए।
देख आगमन प्रभु का दोनों खड़े हुए सकुचाए, किया प्रणाम तभी दनों ने खड़े हुए शरमाए। गेहूं बोला यह गंवार समता मेरी करता है, मुझको छोटा कहै बड़ा भाई मेरा बनता है।
खाते मुझको बड़े-बड़े खाते हैं मुझको राजा, इसको खाएं गंवार और ये है घोड़ों का खाजा। किसे नहीं रुचिकर है मेरी हलवा पूरी और मिठाई, स्वयं आपको तो भी भाती मेरी बालूशाही।
भला चना भी इतना सुनकर कैसे रहता मौन, आखिर तो बतलाइए, बतलाए यह कौन। पैदा होते ही मेरी पत्ती का साग बनाते, कच्चा मुझको खाएं, भूनकर के मुझको खाते। पकने पर नाना प्रकार के काम अधिक हैं आते,
निर्धन और धनवान सभी हैं मुझे प्रेम से खाते। फिर ये कैसे बड़ा न्याय जो स्वयं आप ही कर दें मैं तो छोटा बन जाऊं जो आज्ञा आप अगर दें। सुनी चने की बात ईश्वर ने कहा विहंसकर भाई,
इस झगड़े का कारण है बस मिथ्या मान बड़ाई। छोटा बड़ा नहीं कोई है अन्नदेव के नाती, पोषण करो जगत का जगती दोनों के गुण गाती। हो दोनों ही बड़े आज से भेदभाव को छोड़ो,
रहो परस्पर मिलकर के तुम झगड़े से मुख मोड़ो। गेहूं कोमल है सुस्वाद है पर बड़े बड़ों को भाता, तो छोटे-छोटों को है सिर्फ चना मिल पाता। इतना कहकर देवाजन हो गए अंतरध्यान,
हुआ चने को हर्ष और गेहूं का टूटा मान। फूल खुशी से चना गया फिर अपनी नोक बढ़ा ली, तो उधर उदर से गेहूं ने एक पैनी छुरी निकाली। किया कलेजा चाक आज तक घाव नहीं भर पाया,
उसकी दशा देखकर गणपति का भी दिल भर आया। जब से गेहूं पेट चिरा और चना नोक वाला है, आँखों देखी बात न इसमें तनिक फर्क डाला है। आपस की होती है मित्रो कलह बहुत दुखदायी,
शिक्षा देती यही चने गेहूं की हमें लड़ाई।