होलिका दहन का बेहद शुभ नक्षत्र (shubh muhurat and time ki full jankari)
इस बार होलिका दहन पूर्वा फाल्गुन नक्षत्र में होगा। ये नक्षत्र शुक्र का माना जाता है और खुशी, उत्सव, ऐश्वर्य का प्रतीक है। हालांकि 20 मार्च की सुबह 10:45 बजे से रात 8:58 बजे तक भद्रा काल रहेगा। लिहाजा इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य वर्जित रहेंगे।
इस बार होलिका दहन पूर्वा फाल्गुन नक्षत्र में होगा। ये नक्षत्र शुक्र का माना जाता है और खुशी, उत्सव, ऐश्वर्य का प्रतीक है। हालांकि 20 मार्च की सुबह 10:45 बजे से रात 8:58 बजे तक भद्रा काल रहेगा। लिहाजा इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य वर्जित रहेंगे।
उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में मनेगी होली (Holi ka shubh muhurat)
वहीं इस बार होली उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में मनायी जाएगी। उत्तर फाल्गुनी सूर्य का नक्षत्र है और आत्मसम्मान, प्रकाश और उन्नति का कारण माना जाता है। इसके कारण हर किसी के ऊपर सालभर सूर्य देव की कृपा बनी रहेगी।
वहीं इस बार होली उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में मनायी जाएगी। उत्तर फाल्गुनी सूर्य का नक्षत्र है और आत्मसम्मान, प्रकाश और उन्नति का कारण माना जाता है। इसके कारण हर किसी के ऊपर सालभर सूर्य देव की कृपा बनी रहेगी।
ऐसे करें पूजन (Pujan Vidhi)
सबसे पहले माता होलिका की विधिवत तथा शास्त्रवत पूजा होती है। भक्त प्रहलाद की कथा होती है। सम्मत में शुद्ध हवन सामग्री भी डाली जाती है। कपूर तथा चंदन की कुछ समिधा यानी लकड़ी भी होती है। इसके बाद सामूहिक गीत गाकर होलिका माता की पूजा की जाती है। इस दिन अपनी किसी एक न एक बुराई को दहन अर्थात समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए। फिर सामूहिक फाल्गुन गीत होता है। अबीर तथा गुलाल लगा के एक दूसरे से गले मिलते हैं।
सबसे पहले माता होलिका की विधिवत तथा शास्त्रवत पूजा होती है। भक्त प्रहलाद की कथा होती है। सम्मत में शुद्ध हवन सामग्री भी डाली जाती है। कपूर तथा चंदन की कुछ समिधा यानी लकड़ी भी होती है। इसके बाद सामूहिक गीत गाकर होलिका माता की पूजा की जाती है। इस दिन अपनी किसी एक न एक बुराई को दहन अर्थात समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए। फिर सामूहिक फाल्गुन गीत होता है। अबीर तथा गुलाल लगा के एक दूसरे से गले मिलते हैं।
ये है होली की भक्त प्रहलाद कथा (Bhakt Prahlad Katha)
हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की है। प्राचीन काल में अत्याचारी हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था। उसने ब्रह्मा से वरदान में मांगा था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके। वरदान पाते ही वह निरंकुश हो गया। उस दौरान परमात्मा में अटूट विश्वास रखने वाला प्रहलाद जैसा भक्त पैदा हुआ। प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसे भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि प्राप्त थी। हिरण्यकश्यप ने सभी को आदेश दिया था कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे लेकिन प्रहलाद नहीं माना। प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का प्रण लिया। प्रहलाद को मारने के लिए उसने अनेक उपाय किए लेकिन वह हमेशा बचता रहा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की मदद से आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। और होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी। हुआ यूं कि होलिका ही आग में जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा ।
हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की है। प्राचीन काल में अत्याचारी हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था। उसने ब्रह्मा से वरदान में मांगा था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके। वरदान पाते ही वह निरंकुश हो गया। उस दौरान परमात्मा में अटूट विश्वास रखने वाला प्रहलाद जैसा भक्त पैदा हुआ। प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसे भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि प्राप्त थी। हिरण्यकश्यप ने सभी को आदेश दिया था कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे लेकिन प्रहलाद नहीं माना। प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का प्रण लिया। प्रहलाद को मारने के लिए उसने अनेक उपाय किए लेकिन वह हमेशा बचता रहा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की मदद से आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। और होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी। हुआ यूं कि होलिका ही आग में जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा ।