प्रकाशकों से आग्रह आगरा कॉलेज के खेल मैदान पर चल रहे पुस्तक मेला में आयोजित संगोष्ठी में श्री त्रिपाठी ने बताया कि इंदीवर ट्रेन में गाकर किताबें बेचते थे। ट्रेन से वे मुंबई पहुंच गए और फिल्मी गीतकार हो गए। हरिओम पंवार और निर्भय हाथरसी कवि सम्मेलनों में अपनी किताबें ले जाते थे। वे मंच पर खूब जमते थे और फिर उनकी किताबें बिकती थीं। यह भी पुस्तकों के प्रसार का एक माध्यम है। उन्होंने प्रकाशकों से आग्रह किया कि पुस्तकों के प्रसार का रास्ता निकालें। रचनाकार ऐसी आग पैदा करें कि देश जगमगाए।
चुराकर साहित्य लिखने की प्रवृत्ति मुख्य अतिथि श्रीमनःकामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी ने इधर-उधर से चुराकर साहित्य लिखने की प्रवृत्ति पर प्रहार किया। यह भी कहा कि रचनाकार आनंदमय स्थित में आकर लेखन करेंगे तो तुलसी , मीरा और सूर की तरह लिख पाएंगे। वॉट्सऐप पर अपनी रचनाएं डालें, अगर दम हुआ तो लोग पढ़ेंगे।
साहित्य पैसे कमाने के लिए नहीं जाने-माने गजलकार अशोक रावत ने सवाल किया कि तकनीक के आने से पुस्तकें ही संकट में क्यों हैं? फिर उन्होंने कहा कि साहित्य कोई करियर बनाने और पैसे कमाने के लिए नहीं है। उन्होंने आगरा के एक लेखक को पद्मश्री देने पर सवाल उठाया।
पुस्तक को कई बार पढ़ा जा सकता है भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने कहा कि जो सामग्री कभी पुस्तकों में मिलती थी, आज वह अखबारों में मिल जाती है। अखबार को दोबारा नहीं पढ़ सकते हैं, लेकिन पुस्तक को कई बार पढ़ा जा सकता है। उन्होंने पुस्तकों की खरीद में कमीशनखोरी रोकने के लिए अभियान चलाने की बात कही।
पुस्तकें न बिकने पर चिन्ता अध्य़क्षता शिक्षाविद और प्रकाशक डॉ. महेश भार्गव ने किया। बाल लेखिका शशि गोयल ने विचार रखे। विषय प्रवर्तन किया ऑथर्स गिल्ड आगरा चैप्टर के समन्वय डॉ. अमी आधार निडर ने। उन्होंने पुस्तकें न बिकने पर चिन्ता प्रकट की। साथ ही कहा कि आनंदमय स्थिति में आकर लेखन करें, सफलता जरूर मिलेगी। मंच से ‘फिर मांडी रंगोली’ कविता संग्रह का लोकार्पण भी किया गया। रानी सरोज गौरिहार ने कविता सुनाई। कवयित्री श्रुति सिन्हा ने संचालन किया।