आगरा

आबूरोड : सांसों में घुलते जहर का बढ़ता दायरा

शहरवासियों की सांसों में जहर घुलने का दायरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। चाहे वह शहर का भीतरी इलाका हो या शहर से सटा इलाका या फिर अम्बाजी और पालनपुर रोड। लोगों की सांसों में कभी कूड़े-करकट को जलानेे से उठते धुएं तो कभी हवा के साथ उड़ती मार्बल स्लरी के रूप में जहर घुल रहा है। जिम्मेदार लोग बेखबर है।

आगराFeb 20, 2017 / 10:55 am

rajendra denok

Increased scope of dissolving poison in breath

शहरवासियों की सांसों में जहर घुलने का दायरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। चाहे वह शहर का भीतरी इलाका हो या शहर से सटा इलाका या फिर अम्बाजी और पालनपुर रोड। लोगों की सांसों में कभी कूड़े-करकट को जलानेे से उठते धुएं तो कभी हवा के साथ उड़ती मार्बल स्लरी के रूप में जहर घुल रहा है। जिम्मेदार लोग बेखबर है। जहां तक शहर का सवाल है तो सॉलिड वेस्ट के निस्तारण की व्यवस्था करने का जिम्मा पालिका प्रशासन पर है, जबकि स्लरी व अन्य औद्योगिक कचरे के निस्तारण की व्यवस्था करने का जिम्मा रीको प्रबंधन का है, पर दोनों में से एक भी शहर की इस समस्या पर ध्यान नहीं दे रहा है। लगातार बढ़ती आबादी और औद्योगिक इकाइयों के मद्देनजर स्थिति पर काबू पाकर इसे नियंत्रित करने के ठोस उपाय नहीं किए गए तो निकट भविष्य में ही सांस की बीमारियों से पीडि़तों की संख्या में इजाफा होना लाजिमी है।
डम्पिंग यार्ड महज एक, उड़ेलने के स्थल कई
इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले पच्चीस-तीस साल से आबूरोड का औद्योगिक विकास तेज रफ्तार से हुआ है। शहर में रीको के दो इंडस्ट्रीयल एरिया (अर्बुदा व अम्बाजी) व दो ग्रोथ सेन्टर (फेज प्रथम व द्वितीय) है। इनमें अधिकतर इकाइयां मार्बल व ग्रेनाइट की है। मार्बल इकाइयों से निकलने वाली स्लरी के निस्तारण के लिए रीको ने अम्बाजी रोड पर डम्पिंग यार्ड के लिए भूमि आवंटित कर रखी है, पर सभी इकाइयों की स्लरी वहीं ले जाकर डम्प नहीं की जाती है। अम्बाजी इंडस्ट्रीयल एरिया में चंद्रावती हनुमान मंदिर के पीछे, चंद्रावती स्थित रीको आवासीय कॉलोनी की बगल में और कई निजी खाली पड़े भूखण्डों में बगैर किसी हिचकिचाहट के धड़ल्ले से स्लरी उड़ेली जा रही है। पूर्व में चंद्रावती की सेवरणी नदी के इस ओर फोरलेन व रेलवे पटरी के बीच भी लोगों ने स्लरी डालनी शुरू कर दी थी, लेकिन पिछले कुछ अर्से से वहां डालनी बंद कर दी गई है।
अब चंद्रावती नदीं के आगे नया स्पॉट
पिछले कुछ अर्से से मार्बल इकाइयों ने स्लरी डालने के लिए एक नई जगह और खोज ली ही। पालनपुर मार्ग पर चंद्रावती नदी पुल से आगे बड़े मोड पर फोरलेन से सटकर ही स्लरी उड़ेलनी शुरू कर दी है। गीली स्लरी उड़ेली जाती है, जो बाद में सूख कर महीन पाउडर बनकर हवा के साथ उड़ती रहती है। रीको इंडस्ट्रीयल एरिया में फोरलेन से सटकर स्थित कई निजी खाली पड़े प्लॉटों का भी यही हाल है। जब हवा के साथ यह स्लरी उड़ती है तो बवंडर सा दिखाई देता है। वहां से गुजरने वाले राहगीरों व वाहनचालकों की सांसों में यह स्लरी घुलती रहती है। कमोबेश यही हाल अम्बाजी इंडस्ट्रीयल एरिया व अम्बाजी रोड का है, जहां यह स्लरी उड़ेली जाती है। लोग आपत्ति भी उठाते है, पर सुनने वाला कोई नहीं है। आबूरोड मार्बल एसोसिएशन डम्पिंग यार्ड के लिए भूमि आवंटन की रीको प्रबंधन से मांग कर रहा है, पर जिम्मेदार नींद से नहीं जाग रहे हैं।
शहर में हालात है और विकट
शहर में हालत यह है कि सफाईकर्मी सफाई के बाद अलग-अलग जगह ढेर लगाकर उसमें आग लगा देते है। इन ढेरों में से धुआं उठता रहता है। फिर जो कचरा पालिका कार्यालय के पीछे बनास नदी के किनारे उड़ेला जाता है, उसमें भी कई बार आग लगाने से आसपास के इलाकों में सुबह-शाम धुआं फैलता रहता है। राहगीरों, वाहन चालकों व आसपास रहने वाले लोगों की सांसों में यह धुआं घुलता रहता है। कई बार तो बड़े-बुजुर्गों व सांस की तकलीफ वालों के लिए सांस लेना दूभर हो जाता है। यही सिलसिला कुछ साल और जारी रहा तो शहर में सांस की बीमारी से पीडि़तों की संख्या में इजाफा होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। विडम्बना तो यह है कि कई निजी अस्पतालों का बॉयो वेस्ट भी जूनी खराड़ी में जलदाय विभाग के कुएं के पास व पालिका कार्यालय के पास नदी किनारे उड़ेला जा रहा है, पर रोकने वाला कोई नहीं है।
संसर्ग में आने से इन रोगों की आशंका
मार्बल स्लरी के संसर्ग में आने व यह सांसों के साथ फेफड़ों में जाने से कई बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है। आमतौर पर सिलिकोसिस, आंखों में जलन, चमड़ी की जलन, दाद, खुजली, एलर्जी, अस्थमा, डस्ट न्यूमोनिया सरीखी बीमारी हो सकती है। सांस लेने में भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
बचाव के लिए यह करना है जरूरी
अम्बाजी इंडस्ट्रीयल एरिया व ग्रोथ सेन्टर में स्लरी के अलग-अलग डम्पिंग यार्ड बनाना अत्यावश्यक है। सूखने के बाद इसे हवा के साथ उडऩे से बचाना जरूरी है। शहर में सॉलिड वेस्ट के मैनेजमेन्ट के लिए प्लांट लगाकर प्रदूषण की समस्या पर पाया जा सकता है काबू। प्लांट नहीं बनने तक शहर का कचरा डम्प करने के लिए शहर से बाहर डम्पिंग यार्ड बनाना जरूरी है।

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