रामरतन लवानियां का जन्म 23 अक्टूबर 1882 को अकोला में हुआ था। शिक्षा समाप्त करने के बाद सन् 1908 में रामरतन लवानियां ताजगंज की प्राइमरी पाठशाल में अध्यापक नियुक्त हुए। यहां पर ब्रज कोकिल पंडित सत्यनारायण कविरत्न से संपर्क हुआ। यहीं से उनके मन में मां भारती की सेवा करने का अंकुर प्रस्फुटित हुआ। सन् 1915 में राजा बलवंत सिंह राजपूत कॉलेज में हिन्दी अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गए। उ नके निवास ब्लंट की बंगलिया मदिया कटरा राष्ट्रीय और क्रांतिकारी हलचलों का केन्द्र बिंदु बन गया।
रामरतन लवानियां का घर क्रांतिकारियों की तपोभूमि थी। आपके पास रामप्रसाद बिस्मिल, देवनारायन भारती तथा गेंदालाल दीक्षित आदि बलिदानी वीरों ने क्रांति की आराधना की थी। आगरा के सर्वमानय नेता स्व. श्रीकृष्णदत्त पालीवाल भी रामरतन लवानियां को अपना राजनैतिक गुरु स्वीकार करते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए रात में उनके द्वारा गुप्त बैठकें की जाती थीं। उनके निवास से ही मैनपुरी और औरैया ष्ज्ञड़यंत केस की योजना बनी थी, जिसके नायक गेंदालाल दीक्षित थे। इस मामले में अंग्रेजों ने रामरतन लवानियां और उनके शिष्यों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उनसे कुछ भी उगलवा नहीं सके, जिसके बाद विवश होकर छह माद बाद जेल से उन्हें छोड़ दिया।
इस पुस्तक की बिक्री पर लगाया था प्रतिबंध
रामरतन लवानियां का साफ कहना था कि विदेशी हुकूमत हाथ जोड़ने से समाप्त नहीं होती, इसके लिए देश को सशस्त्र क्रांति की आवश्यकता है। आपकी पुस्तक अमरीका को आजादी कैसे मिली परोक्ष रूप से भारतीय स्वतंत्रता का ही एक घोषणा पत्र और संदेश था। ब्रिटिश सरकार की पैनी निगाह से यह पुस्तक नहीं बच सकी और ब्रिटिश सरकार ने प्रकाश के कुछ दिन बाद ही इस पुस्तक को जब्त करके इसकी बिक्री संग्रह तथ पठन पाठन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था।
लोकमान्य तिलक को आगरा लाने का निश्चय किया गया। एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने गया, लेकिन समय नहीं मिल सका। इसके बाद लोकमान्य तिलक देहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की बैठक के समाप्त हो जाने पर ट्रेन से पूना जा रहे थे। पता लगने पर रामरतन लवानियां सहयोगियों के साथ आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पहुंच गये। लोकमान्य तिलक के जयघोषों से सारे वातावरण को कौतूहलपूर्ण बना दिया। इस बीच ट्रेन से उतरकर लोकमान्य तिलक नीचे आये और उन्होंने आगरा रुककर भाषा देने में असमर्थता जताई, इस पर सभी ने उन्हें घेर लिया और ट्रेन में उन्हें चढ़ने नहीं दिया गया।
इसके बाद लोकमान्य तिलक को जुलूस बनाकर सिटी स्टेशन पर ले जाया गया, जहां उन्होंने भाषण दिये। अंग्रेजों को लोकमान्य तिलक का इतना भय था कि उनकी सभा में भाग लेने पर दंडित किया जाता था। तिलक जी की सभा कराने व भाग लेने के कारण प्रशासनिक अधिकारियों ने उनके स्कूल की प्रबंध समिति के सदस्यों पर दबाव डाला कि वे इस अपराध में अध्यापक रामरतन से जबाव तलब करें और उन्हें उचित दंड दें। यह देखकर रामरतन जी ने पहले ही अपनी सेवाओं से त्यागपत्र दे दिया।