संतान को संस्कार न देने का परिणाम, पढ़िए सबसे अच्छी सीख देने वाली ये कहानी
आगराPublished: Jul 19, 2018 07:04:37 am
संतान को बड़ा अफसर बनाने के साथ संस्कारवान बनाना जरूरी है।
सन्तोष मिश्रा जी के यहाँ पहला लड़का हुआ तो पत्नी ने कहा, “बच्चे को गुरुकुल में शिक्षा दिलवाते है, मैं सोच रही हूँ कि गुरुकुल में शिक्षा देकर उसे धर्म ज्ञाता पंडित योगी बनाऊंगी।”
सन्तोष जी ने पत्नी से कहा, “पाण्डित्य पूर्ण योगी बना कर इसे भूखा मारना है क्या। मैं इसे बड़ा अफसर बनाऊंगा ताकि दुनिया में एक कामयाबी वाला इंसान बने।”
संतोष जी सरकारी बैंक में मैनेजर के पद पर थे। पत्नी धार्मिक थी और इच्छा थी कि बेटा पाण्डित्य पूर्ण योगी बने, लेकिन सन्तोष जी नहीं माने।
दूसरा लड़का हुआ, इस बार पत्नी की जिद के आगे सन्तोष जी हार गए और अंततः उन्होंने गुरुकुल में शिक्षा दीक्षा दिलवाने के लिए वहीं भेज ही दिया ।
अब धीरे धीरे समय का चक्र घूमा, अब वो दिन आ गया जब बच्चे अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो गए, पहले लड़के ने मेहनत करके सरकारी नौकरी हासिल कर ली।
एक दिन की बात है सन्तोष जी पत्नी से बोले, “अरे भाग्यवान ! देखा, मेरे बड़ा बेटा सरकारी पद पे हो गया, अच्छी कमाई भी कर रहा है, उसकी जिंदगी तो अब सेट हो गयी, कोई चिंता नहीं रहेगी। लेकिन अफसोस मेरा छोटा बेटा गुरुकुल का आचार्य बन कर घर घर यज्ञ करवा रहा है, प्रवचन कर रहा है। जितना वह छह महीने में कमाएगा उतना मेरा बड़ा बेटा एक महीने में कमा लेगा, अरे भाग्यवान ! तुमने अपनी मर्जी करवा कर बड़ी गलती की, तुम्हें भी आज इस पर पश्चाताप होता होगा।
पत्नी ने कहा, “हममें से कोई एक गलत है, और ये आज दूध का दूध पानी का पानी हो जाना चाहिए, चलो अब हम परीक्षा ले लेते है।”
दूसरे दिन शाम के वक्त पत्नी ने बाल बिखरा, अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर और चेहरे पर एक दो नाखून के निशान मार कर आंगन में बैठ गई और पतिदेव को अंदर कमरे में छिपा दिया ..!!
बड़ा बेटा आया पूछा, “मम्मी क्या हुआ ?”
माँ ने जवाब दिया, “तुम्हारे पापा ने मारा है !”
बेटा :- “बुड्ढा, सठिया गया है क्या ? कहां है ? बुलाओ तो जरा।।”
माँ ने कहा, “नहीं है , बाहर गए है !”
बेटा -“क्या पगला गए है इस बुढ़ापे में, उनसे कहना चुपचाप अपनी बची खुची गुजार ले, आगबबूला हो बोला, “इस बुढ़ापे में अपनी औलादों के हाथ से जूते खाने वाले काम कर रहे हैं। इसने तो मर्यादा की सारी हदें पार कर दीं।”
यह कर वह अपने कमरे मे चला गया ।
संतोष जी अंदर बैठे बैठे सारी बाते सुन रहे थे, ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो, और उसके आंसू नहीं रुक रहे थे,जिसकी तमाम गलतियों को मैंने नजरअंदाज करके आगे बढ़ाया ! और ये ऐसा बर्ताव , अब तो बर्दाश्त ही नहीं हो रहा…..
इतने मे छोटा बेटा घर मे ओम् ओम् ओम् करते हुए अंदर आया।
माँ को इस हाल में देखा तो भागते हुए आया, पूछा, तो माँ ने अब गंदे-गंदे शब्दों में अपने पति को बुरा भला कहा तो बेटे ने माँ का हाथ पकड़ कर समझाया कि “माँ आप पिताजी की प्राण हो, वो आपके बिना अधूरे हैं, अगर पिता जी ने आपको कुछ कह दिया तो क्या हुआ, मैंने पिता जी को आज तक आपसे अभद्रता से बात करते हुए नहीं देखा, वो आपसे हमेशा प्रेम से बातें करते थे, जिन्होंने इतनी सारी खुशियां दीं, आज नाराजगी से पेश आए तो क्या हुआ, हो सकता है आज उनको किसी बात को लेकर चिंता रही हो। हो ना हो माँ आप से कही गलती जरूर हुई होगी, अरे माँ, पिता जी आपका कितना ख्याल रखते है, याद है न आपको, छह साल पहले जब आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, तो पिता जी ने कितने दिनों तक आपकी सेवा की थी, वही भोजन बनाते थे, घर का सारा काम करते थे, कपड़े धोते थे, तब आपने फोन करके मुझे सूचना दी थी कि मैं संसार की सबसे भाग्यशाली औरत हूँ, तुम्हारे पिता जी मेरा बहुत ख्याल करते हैं।”
इतना सुनते ही बेटे को गले लगाकर फफक-फफक कर रोने लगी, सन्तोष जी आँखों में आंसू लिए सामने खड़े थे।
“अब बताइये क्या कहेंगे आप मेरे फैसले पर”, पत्नी ने संतोष जी से पूछा।
सन्तोष जी ने तुरन्त अपने बेटे को गले लगा लिया।
सीख संतान को बड़ा अफसर बनाने के साथ संस्कारवान बनाना जरूरी है। प्रस्तुतिः हरिहरपुरी, मठ प्रशासक, श्रीमनकाममेश्वर मंदिर, आगरा