आज से चार दशक पहलै जा चंबल में डाकुअन कौ बोल बालौ ओ। चंबल में डाकुन की गोली और बोली दोनों ही गूंजती हती। जब तै चंबल के बीहड़ तै डकुन कौ नामौ निशान खत्म भऔ है़ तब तै लोगों के मन ते डाकुन को डर खतम है़ गओ है। आज वो ही चंबल पक्षिन की चैचाहट और घड़ियाल व मगरमच्छ की अटखेलिन तै गूंज रही है़। चंबल की सुंदरता देशी और विदेशी पर्यटक नै अपनी ओर आकर्षित कर रही है़। बड़ी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक जा चम्बिले देखबे आये रहे है़। जा सरकार तै हम सब गांव वाइन की सिर्फ एक ही गुजारिश है़ कै जा चंबल के बालू ए नदी के किनारे के गांव वाइनै पक्के घर बनाये वे के ले परमीशन दै दैनी चहिये।