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निर्बन्ध : शिथिलता

locationआगराPublished: Jan 31, 2017 11:49:00 am

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धर्मराज किसी प्रकार भी शांत नहीं हो पा रहे थे, तुम्हारा रथ विश्वकर्मा का बनाया हुआ है, उसके धुरे से कोई अप्रिय शब्द नहीं होता। उस पर वानर ध्वजा फहराती है।

आप स्वयं सोचें, युद्ध न करने का संकल्प करके भी आपको व्यग्र होकर पितामह से युद्ध करने के लिए रथ से कूदना पड़ा। क्यों? अर्जुन की इस शिथिलता का क्या अर्थ है, क्यों वह अपने शत्रुओं से इतना प्रेम करता है? क्यों उनके प्रति मोह है उसके मन में? क्यों भयभीत है वह उनसे? 
गांडीव धारण करने वाले के लिए क्या ऐसा व्यवहार शोभनीय है? जाने आप इस प्रकार क्यों सोच रहे हैं। अर्जुन खीजकर बोला, अपने बंधु से इस प्रकार बोल रहे हैं। मेरे स्नेह का यह प्रतिदान है। जो आपत्ति में पड़े मनुष्य को संकट से छुड़ा देता है, वही बंधु है और वही स्नेही सुहृद। 
सतयुग तक जलती रहेगी मां ज्वाला की यह ज्योति, जिसने झुकाया शीश, पूरी हुई मुराद

धर्मराज किसी प्रकार भी शांत नहीं हो पा रहे थे, तुम्हारा रथ विश्वकर्मा का बनाया हुआ है, उसके धुरे से कोई अप्रिय शब्द नहीं होता। उस पर वानर ध्वजा फहराती है। ऐसे शुभलक्षण रथ पर आरूढ़ हो, स्वर्णजटित खंग और चार हाथ के श्रेष्ठ गांडीव धनुष को लेकर और भगवान् श्रीकृष्ण जैसा सारथि पाकर भी तुम कर्ण से भयभीत हो कैसे भाग आए? 
अच्छा होता तुम गांडीव श्रीकृष्ण को दे देते और स्वयं उनके सारथि बन जाते। धिक्कार है तुम्हारे गांडीव को व तुम्हारी बलिष्ठ भुजाओं को। धिक्कार है तुम्हारे बाणों को और धिक्कार है तुम्हारे इस रथ को। 
अर्जुन के शब्द जैसे उसके कंठ में ही जम गए। मस्तिष्क जड़ हो गया। जो स्वयं तो युद्ध से भागकर एक कोस दूर आ बैठा है, उसे क्या अधिकार है कि वह उसे इस प्रकार धिक्कारे। भीमसेन को फिर भी ऐसी निन्दा का अधिकार हो सकता है। वे अकेले सारे शत्रुओं से जूझ रहे हैं। ये यहां शैया पर बैठे-बैठे मेरा अपमान कर रहे हैं। 
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निष्ठुर! स्त्री, पुत्र, जीवन और यह शरीर लगाकर अर्जुन जिसका प्रिय करने के लिए सदा प्रयत्न करता रहा, वह अपने वाग्बाणों से उसके प्राण ले रहा है। जिस व्यक्ति से जीवन में कभी किसी को कोई सुख नहीं मिला, जो स्वयं पांडवों की सारी समस्याओं का कारण था, वही उसे इस प्रकार धिक्कार रहा है। 
नरेंद्र कोहली के प्रसिद्ध उपन्यास से 

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