आगरा

लोकसभा चुनाव 2019: यूपी में भाजपा के गले की फांस बनेगा जाट आरक्षण

बृज की चार सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं जाट वोटर

आगराJul 05, 2018 / 04:05 pm

धीरेंद्र यादव

Jaat, Reservation

डॉ. भानु प्रताप सिंह/धीरेन्द्र यादव
आगरा। लोकसभा चुनाव 2019 में जाट आरक्षण भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगा। एक तरफ न्यायालय का डंडा तो दूसरी ओर जाट वोट बैंक। योगी आदित्यनाथ सरकार पूरी तरह इस मामले में फंस गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर रिट के बाद 2 मई, 2018 को सरकार ने सेवानिवृत्त जजों की चार सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया, जो आरक्षण पर बिंदुवार समीक्षा करेगी और जांच रिपोर्ट सौंपेगी। अब सरकार के सामने दो मुश्किल हैं। एक यह कि जाटों को आरक्षण नहीं देते हैं, तो वोट बैंक हाथ से फिसलेगा और न्यायालय की अवमानना होगी। जाट आरक्षण की वकालत सरकार करती है तथा अन्य पिछड़ी जातियां नाराज हो सकती हैं।
जाट आरक्षण में कब क्या हुआ
उत्तर प्रदेश में 10 मार्च, 2000 को जाटों को आरक्षण मिला था। इसके लिए आगरा के कुंवर शैलराज सिंह एडवोकेट ने पैरवी की थी। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्त ने उनके ज्ञापन के आधार पर यूपी में जाटों को आरक्षण देने की घोषणा की थी। यूपीए सरकार ने लोकसभा चुनाव 2014 से पूर्व 4 मार्च 2014 को नौ राज्यों के जाटों को आरक्षण की केन्द्रीय सूची में शामिल कर लिया था। दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान के भरतपुर और धौलपुर जिले, हरियाणा, हिमाचल के साथ उत्तर प्रदेश भी शामिल था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं प्रस्तुत की गईं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च, 2015 को जाट आरक्षण समाप्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि आरक्षण का आधार सामाजिक होना चाहिए न कि शैक्षणिक या आर्थिक।
अवमानना नोटिस के बाद यूपी सरकार ने बनाई कमेटी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर उत्तर प्रदेश में भी जाटों को आरक्षण देने के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीन रिट दायर हुईं, जिसमें मुख्य केस राम सिंह का रहा, जिसमें बताया गया कि ये आरक्षण नेशनल बैकवर्ड कमीशन (राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग) की रिपोर्ट के अनुसार न होने के कारण वैध नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम.के.गुप्ता ने जुलाई, 2016 में राजवीर व अन्य की अवमानना याचिका पर कहा कि जाट आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दो माह में निर्णय लें। इससे पूर्व कोर्ट ने एक दिसम्बर, 2015 को आदेश दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में आठ सप्ताह में निर्णय करें। इसका अनुपालन न करने पर याचिका अवमानना प्रस्तुत की गई थी। न्यायालय की तरफ से अवमानना नोटिस उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजीव कुमार के नाम दिया गया। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार जागी। मुख्य सचिव ने हाईकोर्ट में जवाब दिया कि दो मई, 2018 को चार सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया गया है। इसके बाद 5 मई, 2018 को जस्टिस मनोज कुमार ने कमेटी को एप्रूव कर दिया। अब इस कमेटी की रिपोर्ट का इन्तजार किया जा रहा है।
इन सीटों पर जाटों की निर्णायक भूमिका
आगरा, मथुरा, अलीगढ़, पीलीभीत के अलावा बुलंदशहर, नगीना, बिजनौर, कैराना, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, गाजियाबाद, बागपत, रामपुर, मुरादाबाद, गौतमबुद्धनगर, अमरोहा सीटों पर जाट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। आगरा जिले की बात करें तो आगरा लोकसभा सीट पर 1.20 लाख और फतेहपुर सीकरी सीट पर 2.20 लाख जाट वोट हैं। फतेहपुर सीकरी को तो जाटलैंट कहा जाता है। पीलीभीत में करीब तीन लाख जाट वोटर हैं, जिनमें बहुतायत जाट सिख हैं। मथुरा लोकसभा सीट पर जाट वोटर्स की संख्या चार लाख से अधिक अनुमानित है। अलीगढ़ लोकसभा पर 2.56 लाख वोटर जाट हैं। जाट आरक्षण विशेषज्ञ सेवानिवृत्त एडीशनल कमिश्नर दिनेश कुमार वर्मा का कहना है कि अगर जाट आरक्षण बनाए रखने के लिए यूपी सरकार ने कदम न उठाया तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान हो सकता है।
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