यह घटना 1962 की है, आगरा के एक स्टेडियम में पंडित जवाहर लाल नेहरू एक सभा रखी गई थी। हवाई अड्डे से स्टेडियम तक भीड़ थी। वाहन चल नहीं पा रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू अल्लाबक्श चौराहे से घोड़े पर सवार हो गए और स्टेडियम पहुंचे। इसी दौरान अजीब घटना हुई। एक व्यक्ति अपनी बेटी का सिर काटकर ले आया। वह इसे नेहरू जी को भेंट करना चहता था। उसका कहना था कि वह Jawaharlal Nehru के लिए कुछ भी कर सकता है। उसके लिए सबसे प्रिय बेटी है और उसी का सिर नेहरू जी के चरणों में समर्पित है। बाद में उसे पुलिस ने पकड़ लिया और जेल भेज दिया। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. हर्षदेव का कहना है कि बेटी का सिर काटने वाले को गुदड़ी मंसूर खां में पकड़ लिया गया था। वह सभास्थल तक पहुंच नहीं पाया था।
आगरा से था गहरा लगाव
शशि शिरोमणि ने बताया कि नेहरू जी का आगरा से गहरा लगाव था। वे यहां के लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानते थे। कई बार आगरा आए। नेहरू जी के पिताजी मोतीलाल नेहरू तो आगरा के माईथान में रहते थे। कुछ समय तक वे वजीरपुरा (पीली कोठी के पास) भी रहे हैं। तब आगरा में हाईकोर्ट हुआ करता था। बैलगाड़ी से लड़ामदा गए थे। 1958 में आरबीएस कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य ड़ॉ. आरके सिंह के साथ नेहरू जी बिचपुरी विकास खंड के गांव लड़ामदा में आए थे। उन्हें कॉलेज के बिचपुरी कैम्पस से लड़ामदा तक बैलगाड़ी में लाया गया था। उनके साथ अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति आइजनहाबर भी थे। उनका स्वागत तत्कालीन ब्लॉक प्रमुख टीकम सिंह की चौपाल पर किया गया था।
आगरा के प्रगतिशील किसान ठाकुर रामबाबू सिंह (बरारा) ने बताया कि उस समय वे बहुत छोटे थे। नेहरू जी को देखने लड़ामदा गए थे। नेहरू जी को पर्यटन गांव बरारा आना था, लेकिन अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने सुरक्षा कारणों से जाने से रोक दिया था। इसी कारण लड़ामदा में कार्यक्रम हुआ था। नेहरू जी ने गांव का भ्रमण भी किया था।
1953 में आगरा में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई थी। इसमें जवाहर लाल नेहरू पूरे समय उपस्थित रहे। रामलीला मैदान में सभा हुई थी। सभा में भीड़ उमड़ पड़ी थी। लाउडस्पीकर फेल हो गए थे। सभा ने नेहरूजी ने पहली बार शेर कहा था- चले, चलकर गिरे, गिरकर उठे, उठकर चले..। सभा में हुई अव्यवस्थाओं पर नेहरू जी ने टिप्पणी की थी कि लगता है आगरा वाले बड़ी सभा करना भूल गए हैं।
जवाहर लाल नेहरू ने यमुना पर बने जवाहर पुल का उद्घाटन 1963 में किया था। यह पुल आज भी यथावत चल रहा है। अपनी मूर्ति पर माला पहनाने के आग्रह पर नाराज वरिष्ठ पत्रकार डॉ. हर्षदेव के मुताबिक, महावीर दिगम्बर जैन इंटर कॉलेज, हरीपर्वत में एक कांग्रेस नेता ने नेहरू जी की मूर्ति स्थापित की थी। उसने नेहरू जी से आग्रह किया था कि इस पर माल्यार्पण कर दें। इस पर नेहरू जी ने नाराजगी प्रकट की और पैर पटकते हुए चले गए थे। कांग्रेसी नेता ने माफी मांगी, लेकिन बाद में कांग्रेस में बदलाव हुआ था। यह नेहरू जी की नाराजगी का परिणाम था।
नेहरू जी 1958 में सेन्ट जॉन्स कॉलेज में हुई ऑल इंडिया सांइस कांग्रेस में भाग लेने आए थे। डॉ. अशोक शिरोमणि ने नेहरू जी को माला पहनाई। बाद में नेहरू जी ने वही माला डॉ. शिरोमणि के गले में पहना दी। मुंशी गनेशी लाल एम्पोरियम में गए थे। सैनिकों का मनोबल बढ़ाने आए थे। 1962 में चीन से युद्ध के दौरान आगरा हवाई अड्डे पर सैनिकों का मनोबल बढ़ाने आए थे। प्रत्यक्षदर्शी शशि शिरोमणि का कहना है कि तब नेहरू जी बहुत हताश दिखाई दे रहे थे। युद्ध का परिणाम भारत के हित में नहीं गया था। इस युद्ध ने नेहरूजी को तोड़कर रख दिया था।