अपनी रक्षा का हवाला देते हुए तमाम बहनों ने बॉर्डर पर तैनात जवानों को राखी भेजी थी। युद्ध के दौरान सैकड़ों जवान शहीद हुए थे। हर वक्त न्यूज चैनलों पर लोगों की निगाह टिकी रहती थी और जैसे ही किसी जवान का शव पहुंचता तो भारी भीड़ उसे सलामी देने के लिए उमड़ पड़ती थी। 26 जुलाई वो दिन था जब भारत ने इस युद्ध पर जीत हासिल की थी। तब से हर साल इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में याद किया जाता है। आज 19वां कारगिल विजय दिवस है। इस मौके पर हम आपको उस किस्से के बारे में बताएंगे जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
युद्ध की जीत में आगरा का विशेष योगदान
आगरा के वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना के मुताबिक कि कारगिल के युद्ध की जीत में आगरा का विशेष योगदान रहा। युद्ध में मदद के लिए आगरा डीआरडीओ से एरोस्टेट बनाकर भेजे गए थे जिनमें कैमरे लगे हुए थे। युद्ध के दौरान ये ऐरोस्टेट सीमा पार दुश्मनों पर नजर रखते थे। इसके अलावा पैरा ब्रिगेड जो एक स्पेशल फोर्स है, इसके कुछ ऑपरेशन आगरा से चले थे। वहीं आर्थिक सहायता के लिए स्थानीय लोगों ने चंदा इकट्ठा करके भेजा था। कई नौकरीपेशा लोगों ने अपने एक दिन की सैलरी सेना की मदद के लिए दान की थी।
पहली बार हुआ था एयरकंडीशन ताबूत का प्रयोग
राजीव सक्सेना बताते हैं कि उस समय लोग हर छोटी—छोटी गतिविधि पर नजर रखी जाती थी। शहीदों के पार्थिव शरीर हवाई जहाज के जरिए आते थे। आगरा के लोग हवाई जहाज की आवाजाही पर नजर बनाए रखते थे। उस समय पहली बार शहीदों के पार्थिव शरीर लाने के लिए एयर कंडीशन ताबूतों का प्रयोग किया गया था।
जीत के बाद थोड़ी खुशी और थोड़ा गम
राजीव सक्सेना के मुताबिक कि कारगिल युद्ध को जीतने के बाद लोगों को एक तरफ दुश्मनों को धूल चटा देने की खुशी थी तो वहीं अपने तमाम जवानों की शहादत का गम भी था। उन शहीदों की याद में आगरा में युद्ध स्मारक बनाया गया। इसके बाद शहीद स्मारक में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नागरी प्रचारिणी सभा में कई कार्यक्रम हुए। वहीं स्कूलों में इस मुद्दे पर कई प्रोग्राम, भाषण और वाद—विवाद जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए। अब भी हर साल कारगिल विजय दिवस को याद करके तमाम जगहों पर जवानों को श्रृद्धांजलि दी जाती है।
आगरा के वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना के मुताबिक कि कारगिल के युद्ध की जीत में आगरा का विशेष योगदान रहा। युद्ध में मदद के लिए आगरा डीआरडीओ से एरोस्टेट बनाकर भेजे गए थे जिनमें कैमरे लगे हुए थे। युद्ध के दौरान ये ऐरोस्टेट सीमा पार दुश्मनों पर नजर रखते थे। इसके अलावा पैरा ब्रिगेड जो एक स्पेशल फोर्स है, इसके कुछ ऑपरेशन आगरा से चले थे। वहीं आर्थिक सहायता के लिए स्थानीय लोगों ने चंदा इकट्ठा करके भेजा था। कई नौकरीपेशा लोगों ने अपने एक दिन की सैलरी सेना की मदद के लिए दान की थी।
पहली बार हुआ था एयरकंडीशन ताबूत का प्रयोग
राजीव सक्सेना बताते हैं कि उस समय लोग हर छोटी—छोटी गतिविधि पर नजर रखी जाती थी। शहीदों के पार्थिव शरीर हवाई जहाज के जरिए आते थे। आगरा के लोग हवाई जहाज की आवाजाही पर नजर बनाए रखते थे। उस समय पहली बार शहीदों के पार्थिव शरीर लाने के लिए एयर कंडीशन ताबूतों का प्रयोग किया गया था।
जीत के बाद थोड़ी खुशी और थोड़ा गम
राजीव सक्सेना के मुताबिक कि कारगिल युद्ध को जीतने के बाद लोगों को एक तरफ दुश्मनों को धूल चटा देने की खुशी थी तो वहीं अपने तमाम जवानों की शहादत का गम भी था। उन शहीदों की याद में आगरा में युद्ध स्मारक बनाया गया। इसके बाद शहीद स्मारक में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नागरी प्रचारिणी सभा में कई कार्यक्रम हुए। वहीं स्कूलों में इस मुद्दे पर कई प्रोग्राम, भाषण और वाद—विवाद जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए। अब भी हर साल कारगिल विजय दिवस को याद करके तमाम जगहों पर जवानों को श्रृद्धांजलि दी जाती है।