तांतपुर की कहानी
आगरा से करीब 70 किलोमीट दूर राजस्थान की सीमा से सटा तांतपुर का जीवन बेहद साधारण है। 60 फीसद से अधिक आबादी गरीब श्रमिकों की है, जो पत्थर खदान का काम करते हैं। साफ शब्दों में कहा जाए, तो यहां पत्थर के अलावा लोगों के पास कोई अन्य रोजगार नहीं है। इस क्षेत्र में पत्थर के पहाड़ हैं। बस यही रोजगार बन गया यहां के लोगों का। पत्थर के क्रैशर लगे हुए हैं, जिनमें लोगों को रोजगार मिलता है। गरीब श्रमिक पत्थर खदान में काम करके अपना जीवन यापन करते हैं।
आगरा से करीब 70 किलोमीट दूर राजस्थान की सीमा से सटा तांतपुर का जीवन बेहद साधारण है। 60 फीसद से अधिक आबादी गरीब श्रमिकों की है, जो पत्थर खदान का काम करते हैं। साफ शब्दों में कहा जाए, तो यहां पत्थर के अलावा लोगों के पास कोई अन्य रोजगार नहीं है। इस क्षेत्र में पत्थर के पहाड़ हैं। बस यही रोजगार बन गया यहां के लोगों का। पत्थर के क्रैशर लगे हुए हैं, जिनमें लोगों को रोजगार मिलता है। गरीब श्रमिक पत्थर खदान में काम करके अपना जीवन यापन करते हैं।
चुन रहे अपनी मौत
ये गरीब श्रमिक रोजगार की आड़ में अपनी मौत को चुन रहे हैं। ये हम नहीं, बल्कि यहां के लोगों का ही कहते हैं। दरअसल पत्थर खदान में काम करने वाले श्रमिकों को सिलोकोसिस नाम की गंभीर बीमारी हो जाती है। इस बीमारी के कारण यहां के श्रमिकों की उम्र भी औसतन 40 से 45 वर्ष की रह गई है।
यहां की महिलाओं का दर्द
तांतपुर की बात करें, तो यहां पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक है। आंकड़ों के अनुसार महिलाओं की संख्या 10 फीसद अधिक है। वहीं उम्र की बात करें, तो पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की उम्र भी 40 फीसद तक अधिक है। बड़ी बात तो ये है कि इन महिलाओं का सुहाग कम उम्र में छिन जाता है और फिर इनके पास जीने का कोई सहारा नहीं होता। लंबी उम्र को या तो अपनी छोटी सी संतान या फिर ये अकेले ही गुजारती हैं।
खुशी कहीं गम
तांतपुर में ऐसा नहीं है कि करवाचौथ का व्रत नहीं रखा जाता है। सुहागन महिलाएं इस व्रत को रखती हैं, और मां करवा से पति की दीर्घआयु के लिए कामना भी करती हैं। लेकिन सुहागिनों के इस उत्सव में दर्द उन महिलाओं का छलकता है, जो कम उम्र में विधवा हो चुकी हैं।