सास के हाथ से सरगी लेने की विशेष मान्यता है। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को मिठाई और सुहाग का सामान देती हैं। करवाचौथ के व्रत के पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। इसलिए सरगी में ऐसी मिठाई दी जाती हैं जो बहू के लिए उपयोगी होती है। सरगी को सूरज निकलने से पहले दिया जाता है। कई स्थानों पर मान्यता है कि रात बारह बजे से पहले सरगी ली जाती है। सरगी के लिए जिन महिलाओं की सास नहीं होती वे अपनी बड़ी ननद या जेठानी से सरगी लेती हैं। इसके बाद पूरा दिन का निर्जल उपवास रखा जाता है और चांद निकलने पर ही पानी लिया जाता है।
पुरानी रीति रिवाज वैज्ञानिक तरीकों से चलती थी। सरगी में दूध और सिवाईयों का मिश्रण होता है। सरगी में इस भोजन का बहुत महत्व होता है। सेहत के लिए ये महत्वपूर्ण होती है। दूध और सिवाईयों की ये डाइट प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा श्रोत मानी जाती हैं,इसे खाने के कई घंटे तक भूख नहीं लगती हैं और शरीर में एनर्जी का लेबल बना रहता है। इसलिए सरगी का बहुत महत्व माना जा है।