जानिए क्या है खरमास
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि खर मास प्रत्येक शुभ कार्यों के लिए पूरी तरह वर्जित माना जाता है। सूर्य देव मासिक राशि परिवर्तन के दौरान जब-जब देवगुरु बृहस्पति ग्रह की राशि धनु और मीन राशि पर प्रति वर्ष जब एक माह तक रहते हैं तब उसे वैदिक हिन्दू पंचांग के अनुसार खर मास कहा जाता है। प्रति वर्ष 15 दिसंबर से लेकर 14 जनवरी तक अर्थात मकर संक्रांति तक धनु खर मास होता है, इसके साथ ही दूसरा खर मास प्रति वर्ष देवगुरु बृहस्पति ग्रह की दूसरी राशि मीन पर जब सूर्य देव गोचरीय ग्रह चाल में एक माह तक रहते हैं। तब उसे मीन खर मास कहा जाता है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि खर मास प्रत्येक शुभ कार्यों के लिए पूरी तरह वर्जित माना जाता है। सूर्य देव मासिक राशि परिवर्तन के दौरान जब-जब देवगुरु बृहस्पति ग्रह की राशि धनु और मीन राशि पर प्रति वर्ष जब एक माह तक रहते हैं तब उसे वैदिक हिन्दू पंचांग के अनुसार खर मास कहा जाता है। प्रति वर्ष 15 दिसंबर से लेकर 14 जनवरी तक अर्थात मकर संक्रांति तक धनु खर मास होता है, इसके साथ ही दूसरा खर मास प्रति वर्ष देवगुरु बृहस्पति ग्रह की दूसरी राशि मीन पर जब सूर्य देव गोचरीय ग्रह चाल में एक माह तक रहते हैं। तब उसे मीन खर मास कहा जाता है।
खर मास में निषेध होते हैं सभी शुभ कार्य
वैदिक सूत्रम चेयरमैन भविष्यवक्ता पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि खर मास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत, विवाह या अन्य हवन कर्मकांड आदि तक का निषेध है। सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही खर मास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है। दिव्य आत्माओं का शरीर त्याग अगर खर मास के दौरान हो जाता है तो उसकी गणना सत्कर्मी में नहीं होती क्योंकि उसके मृत्युपरान्त संस्कार में न केवल परिजन बल्कि रिश्तेदार भी कडक ठंड में विचलित हो जाते हैं।
महाभारत में है इसकी पुष्टि
इस बात की पुष्टि महाभारत में होती है कि जब खर मास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से भेध दिया था। सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा।
इस बात की पुष्टि महाभारत में होती है कि जब खर मास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से भेध दिया था। सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा।