जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।
कुंभकर्ण दुखी होकर अपने भाई रावण से बोला अरे मूर्ख तू ने जगत जननी सीता का हरण किया है। तू अपना कल्याण चाहता है। इसके बाद कुंभकर्ण अपने बड़े भाई रावण को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया कि वह श्री राम प्रभु से क्षमा याचना कर ले और उनकी पत्नी सीता को सकुशल उन्हें लौटा दे। ताकि भविष्य में राक्षस कुल का नाश होने से बच जाये। कुंभकर्ण के इतना समझाने के बाद भी लंकापति रावण नहीं माना।
कुंभकर्ण दुखी होकर अपने भाई रावण से बोला अरे मूर्ख तू ने जगत जननी सीता का हरण किया है। तू अपना कल्याण चाहता है। इसके बाद कुंभकर्ण अपने बड़े भाई रावण को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया कि वह श्री राम प्रभु से क्षमा याचना कर ले और उनकी पत्नी सीता को सकुशल उन्हें लौटा दे। ताकि भविष्य में राक्षस कुल का नाश होने से बच जाये। कुंभकर्ण के इतना समझाने के बाद भी लंकापति रावण नहीं माना।
जब कुंभकर्ण के समझाने पर भी रावण प्रभु श्री राम से युद्ध नहीं करने की बात को नहीं माना। तो कुंभकर्ण ने अपने बड़े भाई रावण का मान रखते हुए युद्ध के लिए तैयार हो गया। कुंभकर्ण जानता था कि श्रीराम साक्षात भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। और उन्हें युद्ध में पराजित कर पाना असंभव है। श्री रामचरित्र मानस के अनुसार कुंभकरण प्रभु श्री राम के द्वारा मुक्ति पाने के भाव मन में रखकर श्रीराम के समक्ष उनसे युद्ध करने गया था। उसके मन में श्री राम के प्रति अनन्य भक्ति थी। भगवान के बाण लगते हीं कुंभकर्ण ने अपना शरीर त्याग दिया। उसकी मृत्यु हो गई। उसका जीवन सफल हो गया।
प्रस्तुति
हरिहर पुरी
महंत, श्रीमनकामेश्वर मंदिर
हरिहर पुरी
महंत, श्रीमनकामेश्वर मंदिर