ये बोले किसान
कल्याणपुर के किसान उमेश ने बताया कि उनकी धनौली में जमीन है। उनके आस पास की जमीन को प्रशासन ने आगरा सिविल टर्मिनल के लिए अधिग्रहीत कर लिया है, लेकिन उनकी जमीन को छोड़ दिया गया है। उन्होंने बताया कि सिविल टर्मिनल बनने के बाद उनकी जमीन के लिए रास्ता समाप्त हो जाएगा, इसके बाद न तो वे उस जमीन पर खेती कर सकते हैं और नाहीं घर बना सकते हैं। ऐसे में वे इस जमीन के टुकड़े का क्या करेंगे।
कल्याणपुर के किसान उमेश ने बताया कि उनकी धनौली में जमीन है। उनके आस पास की जमीन को प्रशासन ने आगरा सिविल टर्मिनल के लिए अधिग्रहीत कर लिया है, लेकिन उनकी जमीन को छोड़ दिया गया है। उन्होंने बताया कि सिविल टर्मिनल बनने के बाद उनकी जमीन के लिए रास्ता समाप्त हो जाएगा, इसके बाद न तो वे उस जमीन पर खेती कर सकते हैं और नाहीं घर बना सकते हैं। ऐसे में वे इस जमीन के टुकड़े का क्या करेंगे।
ये है मांग
एक दो नहीं, ऐसे कई किसान हैं, जिनकी जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाया है। ये किसान परेशान हैं। इन किसानों का कहना है कि या तो प्रशासन उनकी जमीन का अधिग्रहण करें और यदि उनकी जमीन नहीं ली जाती है, तो सिविल टर्मिनल की जमीन से उन्हें अपनी जमीन तक आने जाने का रास्ता दिया जाए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो उनकी लाखों रुपये की जमीन बेकार हो जाएगी। वे न तो इस जमीन पर खेती कर पाएंगे और नाहीं मकान ही बना पाएंगे।
एक दो नहीं, ऐसे कई किसान हैं, जिनकी जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाया है। ये किसान परेशान हैं। इन किसानों का कहना है कि या तो प्रशासन उनकी जमीन का अधिग्रहण करें और यदि उनकी जमीन नहीं ली जाती है, तो सिविल टर्मिनल की जमीन से उन्हें अपनी जमीन तक आने जाने का रास्ता दिया जाए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो उनकी लाखों रुपये की जमीन बेकार हो जाएगी। वे न तो इस जमीन पर खेती कर पाएंगे और नाहीं मकान ही बना पाएंगे।
गले की फांस बना मुआवजा
धनौली और उसके आस पास आवासीय भूमि है। इसी कारण से किसान मुआवाज आवासीय और कॉमर्शियल रेट का मुआवाजे की डिमांड कर रहे हैं। अब प्रशासन के सामने दिक्कत ये आ रही है कि अगर चार हेक्टेयर के लिए मुआवजा कॉमर्शियल रेट से दिया गया, तो एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो रेट होना गले की फांस बन सकता है। कृषि दर पर मुआवजा ले चुके किसान फिर से मुआवजे की मांग कर सकते हैं।
धनौली और उसके आस पास आवासीय भूमि है। इसी कारण से किसान मुआवाज आवासीय और कॉमर्शियल रेट का मुआवाजे की डिमांड कर रहे हैं। अब प्रशासन के सामने दिक्कत ये आ रही है कि अगर चार हेक्टेयर के लिए मुआवजा कॉमर्शियल रेट से दिया गया, तो एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो रेट होना गले की फांस बन सकता है। कृषि दर पर मुआवजा ले चुके किसान फिर से मुआवजे की मांग कर सकते हैं।