scriptMuharram 2019: इस्लाम जिन्दा होता है हर कर्बला के बाद, पढ़िए क्या हुआ था मुहर्रम की 10 तारीख को | Muharram today story of Karbala and martyrdom Hazrat Imam Hussain | Patrika News

Muharram 2019: इस्लाम जिन्दा होता है हर कर्बला के बाद, पढ़िए क्या हुआ था मुहर्रम की 10 तारीख को

locationआगराPublished: Sep 10, 2019 08:41:02 am

हज़रत इमाम हुसैन (अ.) ने सब्र करके जमाने को दिखाया कि किस तरह जुल्म को हराया जाता है।

Idrish ali

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हज़रत इमाम हुसैन (अ.) कर्बला अपना एक छोटा सा लश्कर लेकर पहुंचे थे। उनके काफिले में औरतें भी थीं। बच्चे भी थे। बूढ़े भी थे। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 2 मोहर्रम को कर्बला पहुंचे थे। 7 मोहर्रम को उनके लिए यजीद ने पानी बंद कर दिया था और वो हर हाल में उनसे अपनी स्वाधीनता स्वीकार कराना चाहता था। हज़रत इमाम हुसैन (अ.) किसी भी तरह उसकी बात मानने को राज़ी नहीं थे।
9 मोहर्रम की रात हज़रत इमाम हुसैन (अ.) ने रोशनी बुझा दी और अपने सभी साथियों से कहा कि मैं किसी के साथियों को अपने साथियो से ज़्यादा वफादार और बेहतर नहीं समझता। कल के दिन हमारा दुश्मनों से मुकाबला है। उधर लाखों की तादाद वाली फ़ौज है। तीर हैं। तलवार हैं और जंग के सभी हथियार हैं। उनसे मुकाबला मतलब जान का बचना बहुत ही मुश्किल है। मैं तुम सब को बखुशी इजाज़त देता हूं कि तुम यहां से चले जाओ, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं होगी, अंधेरा इसलिए कर दिया है कभी तुम्हारी जाने की हिम्मत न हो। यह लोग सिर्फ मेरे खून के प्यासे हैं। यजीद की फ़ौज उसे कुछ नहीं कहेगी, जो मेरा साथ छोड़ के जाना चाहेगा। कुछ देर बाद रोशनी फिर से कर दी गई, लेकिन एक भी साथी इमाम हुसैन का साथ छोड़ के नहीं गया।
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जब 10 मोहर्रम की सुबह हुई और कर्बला में अज़ान दी गई तो हज़रत इमाम हुसैन (अ.) ने नमाज़ पढ़ाई। यज़ीद की तरफ से तीरों की बारिश होने लगी। उनके साथी ढाल बनकर सामने खड़े हो गए और सारे तीरों को अपने जिस्म पर रोक लिया, मगर हुसैन ने नमाज़ पूरी की। इसके बाद दिन छिपने से पहले तक हज़रत इमाम हुसैन (अ.) की तरफ से 72 शहीद हो गए। इन 72 में हज़रत इमाम हुसैन (अ.) के अलावा उनके छह माह के बेटे अली असगर, 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे कासिम हज़रत हसन (अ.) के बेटे भी शामिल थे। इनके अलावा शहीद होने वालों में उनके दोस्त और रिश्तेदार भी शामिल रहे। हज़रत इमाम हुसैन (अ.) का मकसद था, खुद मिट जाएं लेकिन वो इस्लाम जिन्दा रहे, जिसको उनके नाना मोहम्मद साहब लेकर आए।
अली असगर (अ.) की शहादत को बड़े ही दर्दनाक तरीके की गई। जब हज़रत इमाम हुसैन (अ.) की फैमिली पर खाना पानी बंद कर दिया गया और यजीद ने दरिया पर फ़ौज का पहरा बैठा दिया, तो हुसैन के खेमों (जो कर्बला के जंगल में ठहरने के लिए टेंट लगाए गए थे) से प्यास, हाय प्यास…! की आवाजें गूंजती थीं। इसी प्यास की वजह से हज़रत इमाम हुसैन (अ.) के छह महीने का बेटा अली असगर बेहोश हो गया, क्योंकि उनकी मां का दूध भी खुश्क हो चुका था। हज़रत इमाम हुसैन (अ.) ने अली असगर (अ.) को अपनी गोद में लिया और मैदान में उस तरफ गए, जहां यज़ीदी फ़ौज का दरिया पर पहरा था।
हज़रत इमाम हुसैन (अ.) ने फ़ौज से मुखातिब होकर कहा कि अगर तुम्हारी नजर में हज़रत इमाम हुसैन (अ.) गुनहगार है तो इस मासूम ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। इसको अगर दो बूंद पानी मिल जाए तो शायद इसकी जान बच जाए। उनकी इस फरियाद का फ़ौज पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि यजीद तो किसी भी हालत में हुसैन (अ.) को अपने अधीन करना चाहता था। यजीद ने हुर्मला नाम के शख्स को हुक्म दिया कि देखता क्या है हज़रत इमाम हुसैन (अ.) के बच्चे को ख़त्म कर दे। हुर्मला ने कमान को संभाला। तीन धार का तीर कमान से चला और हुसैन की गोद में अली असगर की गर्दन पर लगा। छह महीने के बच्चे का वजूद ही क्या होता है, तीर गर्दन से पार होकर हज़रत इमाम हुसैन (अ.) के बाजू में लगा। बच्चा बाप की गोद में दम तोड़ गया।
71 शहीद हो जाने के बाद यजीद ने शिम्र नाम के शख्स से हुसैन (अ.) की गर्दन मुबारक़ को भी कटवा दिया। खंजर से हज़रत इमाम हुसैन (अ.) के सिर को जिस्म से जुदा किया, वो खंजर कुंद धार का था और ये सब उनकी बहन ज़ैनब के सामने हुआ। जब शिम्र ने उनकी गर्दन पर खंजर चलाया तो हज़रत इमाम हुसैन (अ.) का सिर सजदे में यानी नमाज़ की हालत में था।
हज़रत इमाम हुसैन (अ.) ने हर ज़ुल्म पर सब्र करके ज़माने को दिखाया कि किस तरह ज़ुल्म को हराया जाता है। हज़रत इमाम हुसैन (अ.) की मौत के बाद अली की बेटी ज़ैनब ने ही बाकी बचे लोगों को संभाला था, क्योंकि मर्दों में जो हज़रत इमाम हुसैन (अ.) के बेटे जैनुल आबेदीन जिंदा बचे थे। वो बेहद बीमार थे। यजीद ने सभी को अपना कैदी बनाकर जेल में डलवा दिया था। यज़ीद ने अपनी सत्ता को कायम करने के लिए हुसैन (अ.) पर ज़ुल्म किए।
कत्ले हुसैन असल में मरगे यज़ीद है,
इस्लाम जिन्दा होता है हर कर्बला के बाद।

प्रस्तुतिः इदरीश अली

जिलाध्यक्ष, एआईएमआईएम, आगरा

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