1992 में बनी थी सपा
समाजवादी पार्टी की स्थापना नवम्बर, 1992 में हुई थी। तब से लगातार मुलायम सिंह अध्यक्ष थे और उनकी हर बात आदेश की तरह होती थी। उन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है। उन्होंने 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। उनकी ताकत इतनी बढ़ गई कि सपा के कुनबे में मनमुटाव हो गया। अंततः एक जनवरी, 2017 को अखिलेश यादव को पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। मुलायम सिंह की संरक्षक बनाकर किनारे कर दिया गया। इस प्रक्रिया में प्रोफेसर रामगोपाल की अहम भूमिका रही। पांच अक्टूबर, 2017 को अखिलेश यादव को पुनः सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है।
समाजवादी पार्टी की स्थापना नवम्बर, 1992 में हुई थी। तब से लगातार मुलायम सिंह अध्यक्ष थे और उनकी हर बात आदेश की तरह होती थी। उन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है। उन्होंने 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। उनकी ताकत इतनी बढ़ गई कि सपा के कुनबे में मनमुटाव हो गया। अंततः एक जनवरी, 2017 को अखिलेश यादव को पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। मुलायम सिंह की संरक्षक बनाकर किनारे कर दिया गया। इस प्रक्रिया में प्रोफेसर रामगोपाल की अहम भूमिका रही। पांच अक्टूबर, 2017 को अखिलेश यादव को पुनः सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है।
यूं चला घटनाक्रम
इसके साथ ही माना जा रहा है कि अब मुलायम सिंह की कोई महत्ता नहीं रह गई है। शिवपाल तो पहले से ही बाहर हैं। मुलायम सिंह और शिवपाल दोनों ही अधिवेशन में नहीं आए हैं। ऐसा लगता है कि शिवपाल अब मुलायम सिंह से अपने मन की करा सकते हैं। ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि मुलायम सिंह को लखनऊ में प्रेसवार्ता के दौरान नई पार्टी के गठन की घोषणा करनी थी, लेकिन उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को आशीर्वाद दिया। प्रेसवार्ता में शिवपाल सिंह मौजूद नहीं थे। इसके बाद चार अक्टूबर को मान मनौवल का दौर चला। इसके बाद भी बात नहीं बनी। मुलायम सिंह यादव की अनुपस्थिति का समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। युवा कार्यकर्ता बार-बार अखिलेश यादव जिन्दाबाद के नारे लगाते रहे। हां, पुराने सपाइयों को जरूर मलाल रहेगा। सपा के पूर्व प्रदेश सचिव गिरीश यादव का कहना है कि उन्होंने नेताजी और शिवपाल से आग्रह किया था कि आगरा सम्मेलन में भाग न लें। खुशी है कि उनकी बात सुनी गई।
इसके साथ ही माना जा रहा है कि अब मुलायम सिंह की कोई महत्ता नहीं रह गई है। शिवपाल तो पहले से ही बाहर हैं। मुलायम सिंह और शिवपाल दोनों ही अधिवेशन में नहीं आए हैं। ऐसा लगता है कि शिवपाल अब मुलायम सिंह से अपने मन की करा सकते हैं। ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि मुलायम सिंह को लखनऊ में प्रेसवार्ता के दौरान नई पार्टी के गठन की घोषणा करनी थी, लेकिन उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को आशीर्वाद दिया। प्रेसवार्ता में शिवपाल सिंह मौजूद नहीं थे। इसके बाद चार अक्टूबर को मान मनौवल का दौर चला। इसके बाद भी बात नहीं बनी। मुलायम सिंह यादव की अनुपस्थिति का समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। युवा कार्यकर्ता बार-बार अखिलेश यादव जिन्दाबाद के नारे लगाते रहे। हां, पुराने सपाइयों को जरूर मलाल रहेगा। सपा के पूर्व प्रदेश सचिव गिरीश यादव का कहना है कि उन्होंने नेताजी और शिवपाल से आग्रह किया था कि आगरा सम्मेलन में भाग न लें। खुशी है कि उनकी बात सुनी गई।