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दस में से एक महिला पीसीओडी से ग्रस्त, जानिए कारण, लक्षण और उपाय

locationआगराPublished: Feb 22, 2020 01:45:19 pm

Submitted by:

suchita mishra

 
पीसीओडी को लाइफस्टाइल डिजीज के तौर पर देखा जाता है। इसमें अंडेदानी में छोटी छोटी गांठें बन जाती हैं।

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आजकल हर दस में से एक महिला पॉलीसिस्टिक ओवरी डिसआर्डर यानी पीसीओडी से ग्रसित है। ये एक हार्मोनल समस्या है जिसमें महिलाओं के पीरियड अनियमित हो जाते हैं और उनमें चिड़चिड़ापन, मोटापा बढ़ता है, साथ ही मां बनने की क्षमता कम हो जाती है। इन दिनों ये समस्या तेजी से बढ़ रही है। जानते हैं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. शमिता राठौर से इसके कारण, लक्षण और उपाय के बारे में।
समझें क्या है पीसीओडी
पीसीओडी यानी पॉलीसिस्टिक ओवरी डिसआर्डर को पीसीओएस भी कहा जाता है। उनका कहना है सिंड्रोम शब्द जुड़ जाने से ही स्पष्ट हो जाता है कि इसके सही कारणों का अभी पता नहीं चला है। आमतौर पर इसे लाइफस्टाइल डिजीज के तौर पर देखा जाता है। इसमें अंडेदानी में छोटी छोटी गांठें बन जाती हैं जिसके कारण कई तरह की हार्मोनल परेशानियां होने लगती हैं।
ये लक्षण सामने आते हैं
पीसीओडी के दौरान कई तरह के लक्षण सामने आ सकते हैं जैसे मोटापा बढ़ना, माहमारी अनियमित होना, मुहासे, डैंड्रफ, पेट दर्द, शरीर पर या चेहरे पर बाल आना आदि। शादी के बाद महिलाओं को गर्भधारण करने में परेशानी हो सकती है या गर्भपात भी हो सकता है। आजकल किशोरावस्था में ही लड़कियों में ये समस्या देखने को मिल रही है।
सोनोग्राफी से होती पहचान
डॉ. शमिता राठौर बताती हैं कि लक्षणों को देखकर उनकी सोनोग्राफी कराई जाती है। जरूरत पड़ने पर ब्लड टैस्ट और कुछ हार्मोनल जांचें भी कराई जाती हैं। रिपोर्ट के आधार पर पीसीओडी की पुष्टि होती है।
ये होता है रिस्क
दरअसल पेन्क्रियाज जो इंसुलिन बनाता है उससे शरीर रेजिस्टेंट हो जाता है। उससे ओवरकम करने की वजह से पेन्क्रियाज और इंसुलिन बनाता है। इससे बहुत सारा इंसुलिन बनता है और अंडेदानी में सिस्ट बननी शुरू हो जाती है। ऐसे में पेन्क्रियाज भी थक जाता है और काम करना बंद कर देता है। ऐसे में इंसुलिन की कमी होने से डायबिटीज की समस्या भी हो सकती है। इसके अलावा इंफर्टिलिटी की समस्या का सबसे ज्यादा खतरा होता है। पीसीओडी अंडेदानी के कैंसर का खतरा भी कुछ फीसदी तक बढ़ाता है।
बचाव के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव जरूरी
पीसीओडी को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए लाइफस्टाइल में सुधार जरूरी है। इसके लिए हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई फैट और हाई कार्बोहाइड्रेट डाइट से परहेज करें। नियमित व्यायाम करें और समय से दवाएं लें। इससे पीसीओडी को नियंत्रित किया जा सकता है।
12 से 18 महीने का इलाज
इसका इलाज लंबा चलता है। हार्मोनल ट्रीटमेंट कम से कम 12 से 18 महीने तक तो देना पड़ता है। बीच बीच में थोड़े थोड़े अंतराल के बाद भी इलाज देना पड़ता है। ऐसे में मरीज को वजन बढ़ना, गैस, एसिडिटी जैसी समस्या हो सकती है।
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