सोमवार को प्रशासन ने 10 वार्डों में ये व्यवस्था शुरू की। आठ बजे 3600 पैकेट 15 वाहनों से भेजे गए। लेकिन सिर्फ 900 पैकेट ही बिके। 2,500 वापस हो गए। वहीं मंगलवार को 12 वार्ड और बढ़ा दिए गए। बिक्री के लिए 18 वाहनों से 3060 पैकेट भेजे गए, लेकिन सिर्फ 840 पैकेट की बिक्री हुई, 2,200 पैकेट वापस लौटाए गए। पैकेट बेचने के लिए प्रशासन ने सब्जी विक्रेताओं के पास भी अमान्य कर दिए। सब्जी का पैकेट हाथ में लेकर कर्मचारी घर घर जाकर पूछते रहे, लेकिन लोगों ने रुचि नहीं दिखायी। लोगों का कहना है कि पैकेटबंद व्यवस्था से हर वर्ग लाभान्वित नहीं हो सकेगा। गरीब और जरूरतमंंद लोग 50 रुपए की सब्जी से काम चला सकते हैं, तो 100 रुपए वे क्यों खर्च करेंगे। प्रशासन को इसमें हर वर्ग का ध्यान रखना चाहिए था।
इस मामले में सुनीता अग्रवाल का कहना है कि पैकेट की सब्जियों में ग्राहक कोई चुनाव नहीं कर सकता। पैकेट में जो दिया जा रहा है, वही खरीदना पड़ेगा। इसके अलावा सब्जी ताजी है या खराब है, बंद पैकेट में इसका पता ही नहीं चलता। ऐसे में कोई इस पैकेट को क्यों खरीदेगा।
वहीं नमिता कालरा का कहना है कि प्रशासन या तो अपने वाहन से सब्जी भेजें और इच्छानुसार लेने का विकल्प दे, या फिर सब्जी वालों पर प्रतिबंध लगाने की बजाय उनकी जांच कराए और जिनकी रिपोर्ट नेगेटिव आए उन्हें पास जारी करे। उनके लिए मास्क व ग्लव्स पहनना अनिवार्य करे। पैकेटबंद वाली व्यवस्था नहीं चल पाएगी। जो गिने चुने लोग आज पैकेट ले भी रहे हैं, वे भी कब तक एक तरह की सब्जी खाएंगे।