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एक ऐसा किसान नेता जिसने 800 करोड़ का अंतरराज्यीय घोटाला खोला, अफसर दूर से ही कर लेते हैं नमस्कार

locationआगराPublished: Sep 23, 2019 09:51:15 am

किसान नेता श्याम सिंह चाहर से पत्रिका की विशेष बातचीत

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आगरा। श्याम सिंह चाहर (Shyam singh chahar)। किसान नेता। सामान्य से भी कम कदकाठी। कई विभागों में इनके नाम का खौफ है। किसानों (Farmers) के लिए कभी घुटनों के बल चलकर तो कभी लेटकर चलते हुए प्रदर्शन कर चुके हैं। किसान दिवस (Kisan diwas) में ये बोलते हैं और बाकी सब सुनते हैं। अधिकारी नहीं सुनते हैं तो उसके नाम से मुंडन करा लेते हैं। अधिकारी इनसे दूर से ही नमस्ते करना श्रेयस्कर समझते हैं। इसका कारण यह है कि नहर सफाई घोटाला (Canal Scam), ट्रैक्टर घोटाला (Tractor scam) , पंचायत घर घोटाला खोला है। अनेक अधिकारी फंसे हुए हैं। अब इनर रिंग रोड (Inner Ring Road) भूमि अधिग्रहण घोटाला (Land acquisition scam) उजागर किया है। इसमें कमिश्नर से लेकर चपरासी तक 100 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी फंसे हुए हैं। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), राजस्थान (Rajasthan), महाराष्ट्र (Maharashtra) तक इस घोटाले के तार जुड़े हुए हैं। घोटाले में दोषियों के नाम उजागर करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बीच उन्हें दो करोड़ रुपये में खरीदने का प्रयास किया गया, लेकिन डिगे नहीं। पत्रिका (Patrika) के विशेष कार्यक्रम पर्सन ऑफ द वीक (Person of the week) के अंतर्गत उन्होंने बातचीत में किसानों से जुड़े मुद्दों पर आगामी रणनीति का खुलासा किया।
2012 में नहर घोटाला खोला
श्याम सिंह चाहर ने बताया कि 2012 में नहर और माइनर की सफाई को लेकर आंदोलन शुरू किया। आगरा में 620 किलोमीटर का नहर, माइनर और रजवाह है। शासन से तली झाड़ खुदाई और सफाई के लिए पैसा आया था, लेकिन सिर्फ झाड़ियां हटाई जा रही थीं। इसके खिलाफ आवाज उठाई। काम बंद कराया। नहर में धरना दिया। तीन बार भूख हड़ताल की। कोई कार्रवाई न हुई तो 10 दिसम्बर, 2013 को बड़ा आंदोलन हुआ। जेल गए। इसके बाद एसडीएम स्तर से जांच हुई। जांच में मौका मुआयना से पहले ही नहर में पानी छोड़ दिया। तकनीकी जांच हुई तो फिर पानी छोड़ दिया। संयुक्त विकास आयुक्त राम आसरे वर्मा ने जांच की। तीन माह बाद खुलासा हुआ कि करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई है। तीन साल से एक ही स्थान पर काम दिखाया जा रहा था। लिंक रोड और हाईवे के एक-एक किलोमीटर में नहर की सफाई की गई। 14 अधिकारी दोषी पाए गए। इनके खिलाफ कोर्ट के माध्यम से थाना सदर में रिपोर्ट दर्ज कराई है। कार्रवाई कुछ नहीं हुई है। अब हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत करने जा रहे हैं कि जांच में क्या हुआ।
इनर रिंग रोड के लिए भूमि अधिग्रहण
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस और यमुना एक्सप्रेस वे को जोड़ने के लिए इनर रिंग रोड बना है। इनर रिंग रोड पर सभी किसानों को एक समान मुआवजा देने की मांग को लेकर दो बार आंदोलन किया। रेलवे ट्रैक जाम किया। 10 दिसम्बर, 2013 को ताजमहल घेराव के लिए प्रस्थान किया। पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। 22 किसान जेल गए। फिर ग्वालियर रोड स्थित रोहता पर किसानों की महापंचायत हुई। इसमें भारतीय किसान यूनियन (Bhartiya kisan union) के राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) आए। चेतावनी के बाद 14 दिसम्बर, 2013 को किसानों को बिना शर्त रिहा कर दिया गया। वादा किया था कि कोई मुकदमा नहीं लगाया जाएगा, फिर भी दो मुकदमे कायम कर दिए। फिर से मुकदमा वापसी का आदेश हुआ है।
इनर रिंग रोड में 648 रुपये प्रति वर्गमीटर का रेट क्यों
7 फरवरी, 2014 को रोहता से इनररिंग रोड, बमरौली कटारा, फतेहाबाद से फिरोजाबाद तक 30 गावों में पैदल गए। आगरा में नगला दलेल में किसानों की महापंचायत के बाद पैदल मार्च का समापन हुआ। हमने मांग की कि लखनऊ एक्सप्रेस वे या यमुना एक्सप्रेस का मानक मानकर इनर रिंग रोड की भूमि का भुगतान करें। लखनऊ एक्सप्रेस वे में सर्किल रेट का चार गुना मुआवजा दिया जबकि इनर रिंग रोड में 648 रुपये प्रति वर्गमीटर का रेट तय किया। हमने घोटाले की बात कही, लेकिन नहीं सुनी गई।
इस तरह किया घोटाला
इनर रिंग रोड के लिए 2009 में जमीन का अधिग्रहण शुरू किया। जेपी ग्रुप ने किसानों से करार करा लिया। उसमें न रेट है और न ही डेट है। 2011 में अधिग्रहण हो गया। इसके बाद घोटाला हुआ। अधिकारियों से मिलकर अधिगृहीत भूमि से आगरा विकास प्राधिकरण (एडीए) का नाम हटाकर फिर से किसानों के नाम कर दिया। राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के लोगों के नाम किसानों से बैनामे कराए गए। उत्तर प्रदेश के तो सभी 75 जिलों के लोगों ने बैनामे कराए। बैनामे में जमीन को रोड और आबादी से दूर दिखाया गया। मुआवजा लिया रोड के सहारे जमीन दिखाकर। यह काम 2013, 2014 और 2015 में हुआ। चार रेट तय कि गए 648, 1057, 1486 और 1902 रुपये प्रति वर्गमीटर। 1486 और 1902 रुपये प्रति वर्गमीटर वाले सभी बैनामे मुख्य सड़क से दूर हैं, लेकिन मुआवजा निकट का लिया। किसानों को नोटिस भेजे गए कि कि आपकी जमीन पट्टे की है, खादर की है, आप बैनामा कर दो नहीं तो कुछ नहीं मिलेगा। इस कारण किसान घबरा गया था। सवाल यह है कि जब सरकार के नाम जमीन हो गई तो किसान के नाम दोबारा क्यों की गई? बैनामा कराने में स्टाम्प चोरी की गई। 938.8975 हेक्टेअऱ जमीन छलेसर से लेकर रोहता और जखोदा गांव तक है। कुल 24 गांव हैं। इनरिंग रोड, लैंड पार्सल, इंटरचेंज के लिए एक साथ बसपा के समय जमीन का अधिग्रहण किया गया।
दोषी अधिकारियों के नाम खोले जाएं

उचित मुआवजे के लिए किसान जनवरी, 2019 में घुटनों के बल चलकर सर्किट हाउस में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा के पास गए। जनवरी में ही घुटनों के बल चलकर जिलाधिकारी के पास गए। जांच जल्दी कराने की मांग की क्योंकि जो भी अधिकारी जांच शुरू करता, उसी का ट्रांसफर हो जाता था। 8 जून, 2019 की पहली रिपोर्ट आई कि एडीए, एसएलओ (विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी), तहसील एत्मापुर और तहसील सदर के चपरासी लेकर उच्चाधिकारी तक दोषी हैं। रिपोर्ट में नाम किसी का नहीं था। हमने कहा कि नाम खोलो। एडीएम प्रशासन ने कहा कि आप कोर्ट चले जाएं। कई दोषी अधिकारी मेरे घर पर कथित किसान नेताओं को लेकर। मुझे दबाव में लेने का प्रयास किया। मेरे साथियों को लालच दिया। मुझे 2 करोड़ रुपये का ऑफर दिया गया। मैने कहा- मरना मंजूर है लेकिन झुकना नहीं। दिलाना ही है तो एडीए से मुआवजा दिलवाओ। हमारे कुछ साथी सेटिंग में आ गए। इसके बाद मजबूरन होकर कठोर कदम उठाना पड़ा।
सड़क पर लेटकर प्रदर्शन, अस्पताल में भूख हड़ताल
9 सितम्बर, 2019 को हमने रावली से कलक्ट्रेट तक लेटकर प्रदर्शन किया। डीएम ने ज्ञापन लिया। दोषियों के नाम खोलने की मांग रखी। प्रदर्शन के बाद मेरे साथी सात किसान बुरी तरह से बीमार हो गए। हमें नहीं पता क्या हुआ, होश आया तो जिला अस्पताल में थे। 10 सितम्बर को घोषणा की कि या तो दोषियों के नामों का खुलासा करो नहीं तो अस्पताल में ही भूख हड़ताल करेंगे। एडीएम सिटी केपी सिंह और सिटी मजिस्ट्रेट प्रभाकर अवस्थी हमारे पास आए। गोपनीय रिपोर्ट दी। मैंने शर्त रखी कि रिपोर्ट जनता के सामने रखें। प्रशासन ने कहा कि शासन से रिपोर्ट सार्वजनिक करने की अनुमति नहीं मिली है। इसे लेकर 15 सितम्बर को कमिश्नरी का घेराव किया। गेट पर ताला लगाया। तब अपर आयुक्त साहब सिंह वर्मा ने कहा कि रिपोर्ट सार्वनजिक नहीं करेंगे लेकिन दोषी बचेगा नहीं। मेरे पास दोनों सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल और राजकुमार चाहर तथा यूपी के राज्यमंत्री डॉत जीएस धर्मेश आए कि भूख हड़ताल समाप्त करो। आश्वासन दिया कि जांच करवाएंगे। डीएम ने कहा कि मेरे स्तर का मामला नहीं है। पूर्व सांसद चौधरी बाबूलाल ने फोन पर पर मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा से बात की। मेरा रक्तचाप (बीपी) 55/75 था। जबरन भूख हड़ताल तुड़वाई। हमने भी शर्त रखी कि किसानों की मुलाकात डॉ. दिनेश शर्मा से कराओ। इसके बाद मुख्यमंत्री से मिलवाओ।
सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट जाएंगे
श्याम सिंह चाहर ने बताया कि 18 सितम्बर, 2018 को आगरा के सर्किट हाउस में डॉ. दिनेश शर्मा से मिले। हमने सीबीआई जांच की मांग की है। क्योंकि यह 800 करोड़ रुपये का घोटाला है। उच्चस्तरीय जांच का आश्वासन दिया है। अगर प्रशासन ने एक माह के अंदर सकारात्मक कदम नहीं उठाया तो सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट जाएंगे। हर हाल में दोषियों के नाम सार्वजनिक कराएंगे, जेल भिजवाएंगे, किसानों को सर्किल रेट का चार गुना मुआवजा दिलाएंगे। उनका यह भी कहना है कि हर राजनीतिक दल किसानों की बात करता है, लेकिन कोई करता कुछ नहीं है। मुझे भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाया गया था। जब मैंने घोटाले खोलने शुरू किए तो यूनियन के कुछ नेता अधिकारियों के पक्ष में दबाव डालने लगे। इस कारण पद छोड़ दिया।

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