scriptभगवान शिव के मंदिर में ‘राष्ट्र मंदिर’ बनाने वाले पहले महंत योगेश पुरी | Person of the week Mankameshwar mandir mahant yogesh puri agra story | Patrika News

भगवान शिव के मंदिर में ‘राष्ट्र मंदिर’ बनाने वाले पहले महंत योगेश पुरी

locationआगराPublished: Nov 18, 2019 02:52:40 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap

-मंदिर में सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र प्रेम की भी सीख
-मंदिर में अन्नक्षेत्र और चिकित्सालय, ग्रामीण क्षेत्र में गौशाला व स्कूल चला रहे
-सिख, ईसाई, मुस्लिम धर्मगुरुओं से तालमेल, साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिए सक्रिय
-संदेशः ब्रह्म को प्राप्त करना है तो जिज्ञासा होनी चाहिए, स्वयं से प्रेम करें

Mahant yogesh puri

Mahant yogesh puri

आगरा। ताजमहल के लिए प्रसिद्ध आगरा शहर के चार कोनों पर चार शिव मंदिर हैं। मध्य में है श्रीमनकामेश्वर मंदिर। आज भी सैकड़ों लोगों की सुबह बाबा मनकामेश्वर के दर्शन के साथ होती है। मंदिर के महंत हैं श्री योगेश पुरी। वे 28वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। मंहत योगेश पुरी सिर्फ महंत नहीं है। वे आगरा शहर में सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र प्रेम की अलख भी जगाते हैं। पत्रिका के विशेष कार्यक्रम परसन ऑफ द वीक में हम बात आपको बता रहे हैं कि मंहत योगेश पुरी के बारे में।
राष्ट्रप्रेम की ज्योति

मनकामेश्वर मंदिर सिर्फ धर्म और आस्था का केन्द्र नहीं है। यह मंदिर सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रप्रेम की अलख भी जगा रहा है। शायद यह विश्व का ऐसा पहला मंदिर है, जहां भारत की आजादी में अप्रतिम योगदान देने वाले महापुरुषों की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में महात्मा गांधी, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, अशफाक उल्ला खां, गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, एनी बेलेंट की मूर्तियां हैं। साथ में गांधी जी के तीन बंदर भी हैं। इस मंदिर के दर्शन के लिए प्रतिदिन 15-20 विदेशी पर्यटक भी आते हैं। यह मंदिर रावतपाड़ा में जामा मस्जिद के निकट है। मंहत योगेश पुरी बताते हैं कि राष्ट्र मंदिर बनाने के पीछे उद्देश्य लोगों में राष्ट्रप्रेम की ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित करते रहना है। साथ ही उन शहीदों का स्मरण दिलाना है, जिनके बलिदान के कारण हम आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं।
Mahant yogesh puri
सामाजिक कार्य

महंत योगेश पुरी को आप किसी सामान्य मंदिर का पुजारी मत समझिए। उन्हें हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा पर समान अधिकार है। भागवत कथा के मर्मज्ञ हैं। मंदिर के माध्यम से तमाम तरह के सेवा कार्य भी चलाते हैं। आगरा के दिगनेर में शिक्षा के लिए अंग्रेजी माध्यम से सीबीएसई स्कूल चलाया जा रहा है। 10वीं तक की मान्यता है। दिगनेर में ही गौशाला है। इसमें 100 गायें हैं। अधिकांश वृद्ध और बीमार हैं। गौशाला से सिर्फ चार लीटर दूध मिलता है। मंदिर परिसर में ही होम्योपैथिक चिकित्सालय चलता है। 11 से 2 बजे तक अन्न सेवा चलती है। करीब 100 लोग निःशुल्क भोजन ग्रहण करते हैं। महंत योगेशपुरी आगरा के चतुर्दिक विकास की चिन्ता करते हैं। समय-समय पर जनप्रतिनिधियों को चेतावनी भी देते रहते हैं। सिख, ईसाई और मुस्लिम धर्मगुरुओं से उनका गजब का तालमेल है। शहर में अगर कोई ऐसी घटना हो जाए जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ने की आशंका हो तो तत्काल सक्रिय हो जाते हैं। शांति दूत बंटी ग्रोवर की मदद से अन्य धर्मगुरुओं के साथ मौके पर पहुंचते हैं। शांति की अपील करते हैं और इसका प्रभाव भी दिखाई देता है।
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पत्रिकाः शिव मंदिर में महापुरुषों की प्रतिमाएं, कुछ अटपटा नहीं है क्या?

महंत योगेश पुरीः अटपटा कुछ नहीं है। आज के समय में राष्ट्रवाद की ज्यादा आवश्यकता है। जातिवाद, सम्प्रदायवाद, मतवाद के चलते राष्ट्र के प्रति संवेदनाएं समाप्त हो रही हैं। इसी कारण राष्ट्र देवो भवः के तहत मंदिर बनाया है।
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पत्रिकाः कहीं आप महात्मा गांधी और भगत सिंह को भगवान तो नहीं बनाने चाहते हैं?

महंत योगेश पुरीः नहीं, ऐसा नहीं है। हमारा भारत देश चार धर्मों के लिए जाना जाता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई। चारों धर्मों का प्रतिनिधित्व यहां पर है।
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पत्रिकाः आप बड़े-बड़े भंडारे करते हैं, इसके पीछे कोई खास उद्देश्य?

महंत योगेश पुरीः 364 दिन भगवान का भंडार चलता है। 365वें दिन जन-जन तक मनकामेश्वर का प्रसाद हर व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते हैं। प्रसाद से बुद्धि में शुद्धि आती है।
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पत्रिकाः धर्म के नाम पर लूटपाट हो रही है। इस बारे में क्या कहना है?

महंत योगेश पुरीः इस लोकतंत्र में धर्म की स्थिति ब्रांड की तरह हो गई है। हर व्यक्ति अपना-अपना ब्रांड बेचने में लगा है। ऐसे में लूट-खसोट हो रही है तो अतिश्योक्ति नहीं है।
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पत्रिकाः इसे कैसे रोक सकते हैं?

महंत योगेश पुरीः आप लोगों को ही आगे आना होगा। आज हम कहते हैं कि कथाएं बिक रही हैं। मैं बेच रहा हूं तो आप खरीद रहे हैं। हिस्सेदारी बराबर है। अगर लूट खसोट रोकनी है तो आप आगे आइए। कथाओं को बिकने और खरीदने से रोकिए, हम आपके साथ हैं।
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पत्रिकाः संवेदनशील आगरा में साम्प्रदायिक सद्भाव बना रहे, इसके लिए कोई स्थाई इंतजाम कर सकते हैं क्या?

महंत योगेशपुरीः जहां कहीं आवश्यकता पड़ती है, हम सभी धर्मगुरु एक मंच पर एकत्रित होते हैं। अगर हम सब धर्मगुरु एक साथ बैठ सकते हैं तो धर्म के जानने वाले क्यों नहीं।
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पत्रिकाः लोग मंदिर तो आ रहे हैं, लेकिन दुराचार भी कर रहे हैं। भ्रष्टाचार कर रहे हैं। मतलब भगवान का कोई डर नहीं रह गया है?

महंत योगेशपुरीः व्यक्ति ने भगवान को कहीं न कहीं एक भगवान से जोड़ दिया है। व्यक्ति को लगता है कि मैंने कुछ अधर्म किया तो कुछ हिस्सा भगवान के कार्य में लगा दूंगा तो शुद्ध हो जाएगा। वस्तुतः ऐसा नहीं है। आप अधर्म की कितनी भी कमाई धर्म में लगाएं, वह रहेगी अधर्म की ही। उससे धर्म का कोई कार्य सार्थक नहीं होगा।
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पत्रिकाः आपका मन जींस पहनने और सड़क पर खड़े होकर गोलगप्पे खाने का करता है क्या?

महंत योगेशपुरीः बिलकुल करता है । मैं मिशनरी स्कूल में पढ़ा हूं, दिल्ली विश्वविद्यालय से पास आउट हूं। व्यक्तिगत रूप से आज मुझे ऐसा नहीं लगता है, क्योंकि मेरा ड्रेस कोड मुझे पहचान दे रहा है। इस ड्रेस कोड ने मुझे देश ही नहीं, विदेश में भी पहचान दी है, तो मुझे इसका मान सम्मान रखना चाहिए। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में मुझसे पूछा था कि आप ऐसे कपड़ों में क्यों रहते हैं तो मैंने कहा कि अगर यह कपड़ा मुझे शराब, सिगरेट और किसी लड़की पर बुरी नजर डालने से बचा रहा है तो पहनने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए।
पत्रिकाः लेकिन यह कपड़ा पहनने वाले साधु लोग जेल में हैं, उन्हें क्यों नहीं बचाया?

महंत योगेश पुरीः धर्मो रक्षति रक्षितः यानी आप धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। जो लोग जेल में हैं, वे अपने आपको धर्म से बहुत ऊपर समझने लगे थे। इन लोगों ने खुद को भगवान मानने और भगवान बताने की चेष्टा अपने शिष्यों में की। जो साधु जेल में हैं, इसमें उन्हें मानने वालों का भी अपराध है कि उन्होंने भगवान की श्रेणी में लाने का प्रयास किया।
पत्रिकाः आप 28वीं पीढ़ी के महंत हैं। आपने अपने बचपन और अब की स्थिति में क्या अंतर पाया है?

महंत योगेश पुरीः मनकामेश्वर मंदिर के महंत के रूप में 17 वर्ष पूरे हुए हैं। धर्म के कार्य में युवा वर्ग आगे आ रहा है। अंतर यह है कि युवा यह जानना चाहता है कि भगवान है तो कैसे है। आरती और टीका के पाछे तर्क क्या है, यह युवा जानना चाहता है। आज धर्म को बेचने का प्रयास किया जा रहा है। हर व्यक्ति अपनी-अपनी दुकान सजाकर बैठा हुआ है। आवश्यकता इस बात की है कि हम युवाओं को सही मार्गदर्शन दें।
पत्रिकाः अंत में कोई संदेश देना चाहेंगे क्या?

महंत योगेशपुरीः हर व्यक्ति अपने-अपने धर्म के प्रति जागरूक हो। कट्टर नहीं हो। कट्टरता हमें हिंसा की ओर लेकर जाती है। जब धर्म के प्रति जिज्ञासा रखते हैं, तभी हमको भगवान मिलते हैं। स्वयं से प्यार करें। स्वयं से प्यार करने वाला ही सबसे प्यार कर पाएगा। भारत हमारा बहुत अच्छा देश है। जो भारत में है, वह विश्व में कही नहीं है।
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