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दिनेश अगरियाः एक ऐसे राजनीतिक कवि, जो ‘लिफाफा’ नहीं लेते, अटल जी की तरह प्रसिद्ध होने की तमन्ना, देखें वीडियो

locationआगराPublished: Jan 06, 2020 05:00:40 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap

-कवि का काम सामाजिक बदलाव लाना, लोगों में राष्ट्रीय चेतना का जागरण करना
-ओज का कवि होने के नाते युवाओं को सामाजिक उत्थान के लिए जाग्रत करना है
-राजनीतिक विसंगतियों से देश की युवा पीढ़ी को अवगत कराना भी मेरी जिम्मेदारी
-कोई माने या न माने, मैंने कविता पढ़ने का कोई लिफाफा आज तक नहीं लिया

Dinesh agariya

Dinesh agariya

आगरा। कविवर गोपालदास नीरज ने कहा है- आत्म के सौंदर्य का शब्दरूप है काव्य, मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य। कवि संवेदनशील होता है। अगर राजनीतिक कार्यकर्ता कवि है तो कहने ही क्या। राजनीति में जैसा वह भोगता और जिस पार्टी की विचारधारा का पोषक होता है, उसी के अनुसार कविता प्रस्फुटित होने लगती है। ऐसे ही राजनीतिक कार्यकर्ता हैं दिनेश अगरिया। वे भाजपा कार्यकर्ता हैं। मूलतः ओज के कवि हैं। भारत और राष्ट्रभक्ति उनकी कविताओं के मुख्य विषय हैं। कश्मीर पर खूब लिख रहे हैं। नववर्ष के स्वागत में हुए कवि सम्मेलनों में खूब शिरकत की है। वे भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और आप नेता व कवि कुमार विश्वास की तरह कविता और राजनीति के क्षेत्र में प्रसिद्ध होना चाहते हैं। दिनेश अगरिया संभवतः ऐसे एकमात्र मंचीय कवि हैं, जो ‘लिफाफा’ नहीं लेते है। उनका प्रण है कि आगे भी नहीं लेंगे। कविता को व्यवसाय बनाने पर उन्हें घोर आपत्ति है। पत्रिका के विशेष कार्यक्रम Person of the week में हमने बातचीत की दिनेश अगरिया से।
राष्ट्रीय चेतना का जागरण है उद्देश्य

दिनेश अगरिया ने वर्ष 2000 में आकाशवाणी आगरा से कविता की शुरुआत की। फिर ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि आज तक चल रहा है। स्थानीय टीवी चैनलों पर अनेक कार्यक्रम कर चुके हैं। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य कविता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों और समस्याओं का निवारण कराना भी है। मंच पर कविता पाठ करके तालियां पिटवाना और वाह-वाह सुनना उद्देश्य नहीं है। उनका कहना है कि आजकल कवि मंच पर कविता के स्थान पर चुटकुले सुनाते फिरते हैं। कवि का काम सामाजिक बदलाव भी है। लोगों में राष्ट्रीय चेतना का जागरण करना भी है। यह काम वही कर सकता है, जिसे मंच से प्रसिद्धि पाने की तमन्ना न हो। इसीलिए बिना लिफाफा लिए स्वांतः सुखाय कविता पाठ करते हैं। यूं तो भारतीय जनता पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हैं, लेकिन कवि कुमार विश्वास से प्रेरणा पाते हैं।
मोटीवेशनल स्पीकर

दिनेश अगरिया ने 2003 से 2010 तक मोटीवेशनल स्पीकर के रूप में आगरा, इटावा, अलीगढ़, औरैया में व्याख्या दिए। स्कूलों के साथ एमएनसी (मल्टी नेशनल कम्पनी) और बीमा कंपनियों के कर्मचारियों को मोटीवेट किया। एक साल पहले उनकी मोटीवेशनल पुस्तक “दस कदम मंजिल की ओर” प्रकाशित हुई। इसकी ऑनलाइन एक हजार प्रतियां बिक चुकी हैं।
Dinesh agariya
पत्रिकाः कविता का ‘रोग’ कैसे लगा?

दिनेश अगरियाः छात्र जीवन से काव्ययात्रा का शुभारंभ किया। आगरा और देश की जनता के बीच कविता के माध्यम से अपनी बात कहने का प्रयास किया। राजनीतिक और सामाजिक विसंगितयों को दूर करने के लिए कविता को हथियार बनाया। छात्रों को अपने जीवन को जीने का संदेश दिया।
पत्रिकाः राजनीतिक करने वालों में काव्यभाव जाग्रत नहीं होता है, आपमें कैसे हुआ?
दिनेश अगरियाः कविता हर व्यक्ति के मन में कहीं न तहीं छिपी होती है। हर व्यक्ति दिल से कवि होता है, उसे जाग्रत करने की जरूरत होती है।
पत्रिकाः आप ओज के कवि हैं, आपकी कविताओं का मुख्य विषय क्या होता है?
दिनेश अगरियाः ओज का कवि होने के नाते मेरी जिम्मेदारी बन जाती है कि राजनीतिक विसंगतियों से देश की युवा पीढ़ी को अवगत कराना। सामाजिक उत्थान के लिए उन्हें जाग्रत करना। यह भी बताना कि इस संसार को हम अपने जीवन का क्या दे सकते हैं।
पत्रिकाः आप भाजपा से जुड़े हुए हैं। तो क्या मंचों पर अपनी कविता में भाजपा को ढालते हैं?

दिनेश अगरियाः श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में होते हुए भी मंच पर कविताओं की प्रस्तुति दी। उनके जीवन से प्रभावित होकर मैं भारतीय जनता पार्टी में आया। मेरी कविताओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पुट जरूर रहता है।
पत्रिकाः अपनी कोई ओज की कविता सुनाइए

दिनेश अगरियाः

बेगुनाह भारत मां को इतिहासों के दंश मिले

जयचंद और शकुनि जैसे कोख से कुरुवंश मिले

सूपनखा जैसी नारी हर युग में पैदा होती है
काश्मीर के अंदर ही रावण के जैसे अंश मिले

जब कश्मीर दो राज्यों में विभाजित हो गया तब वहां की जनता क्या महसूस करती है, चार लाइनों में प्रस्तुत कर रहा हूं-

आवाम खुशी से नाच रही मातम में बैठी होलिका
बंद कर दिया खेल जो तुमने आतंकों की गोली का

जो कहते थे हाथ लगाओ जिस्म जलाकर रख देंगे

जान चुकी घाटी की जनता मतलब इनकी बोली का

Dinesh agariya
पत्रिकाः राजनीतिक कवि के रूप में आप अपना आदर्श किसे मानते हैं अटल जी, उदयप्रताप सिंह, ओमपाल सिंह निडर, कुमार विश्वास या किसी और को?
दिनेश अगरियाः कुमार विश्वास से मेरी मुलाकात 2001 में हुई। तब से लेकर आज तक वे युवा हैं। मैं उनके काव्ययात्रा से प्रभावित हुआ और उन्हीं से प्रेरणा मिली। अटल बिहारी वाजपेयी को जब मैंने सुना तो लगा कि मुझे कवि के रूप में अपनी बात कहनी चाहिए।
पत्रिकाः मोटीवेटर के रूप में क्या काम चल रहा है?

दिनेश अगरियाः 2003 से मल्टीनेशनल कंपनियों से जुड़ने का मौका मिला। मोटीवेशनल स्पीकर होते हुए दस कदम मंजिल की ओर किताब लिखी। एक साल हो गया है। मुझे लगता है इस किताब को एक बार जरूर पढ़ना चाहिए।
पत्रिकाः मंच पर कविता के नाम पर विद्रूपता आ गई है, इस बारे में क्या सोचते हैं?

दिनेश अगरियाः मंच पहले जैसे नहीं रहे। पहले कवि बिना किसी लालच और आर्थिक सहयोग के कविता पढ़ते थे। आज कविता को व्यवसाय बना दिया है, इस बात का दुख है।
पत्रिकाः क्या आप लिफाफा नहीं लेते कविता पढ़ने का?

दिनेश अगरियाः कोई माने या न माने, मैंने कविता पढ़ने का कोई लिफाफा आज तक नहीं लिया है और शायद लूंगा भी नहीं।

Dinesh agariya
दिनेश अगरिया के तीन मुक्तक
(1)

नवयुग का आगाज हुआ है, पांचजन्य का घोष करो

रण में सेना उतर चुकी है, बस तुम एक आदेश करो

युगों-युगों तक इतिहासों में पन्ने पलटे जाएंगे

खंड-खंड भारत भूमि को फिर से तुम अखंड करो
(2)

पुलवामा का शोक देश में फिर क्यों सियासत करते

सीने में क्या दिल नहीं इनके आंसू नहीं छलकते

ये जो सियासत करने वाले रोते और चिल्लाते

अगर लिपट तिरंगे में इनके बेटे घर भी आते..
(3)

ढूंढे नहीं मिले पाक विश्व के मानचित्र पर

ऐसा कोई कानून अब संसद में लाइए

70 वर्षों का रोग मिनटों में होगा खत्म

लाल किले से एक बार आदेश तो सुनाइए
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