क्या है मोक्षदायिनी सर्वपितृ अमावस्या
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पितृपक्ष का आरंभ शुक्ल पक्ष की भाद्रपद पूर्णिमा से हो जाता है। आश्विन माह का प्रथम पखवाड़ा जो कि माह का कृष्ण पक्ष भी होता है पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। इन दिनों में हिंदू धर्म के अनुयायी अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करते हैं। उन्हें याद करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए स्नान, दान, तर्पण आदि किया जाता है। पूर्वज़ों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के कारण ही इन दिनों को श्राद्ध भी कहा जाता है। हालांकि विद्वान ब्राह्मणों द्वारा कहा जाता है कि जिस तिथि को दिवंगत आत्मा संसार से गमन करके गई थी। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की उसी तिथि को पितृ शांति के लिये श्राद्ध कर्म किया जाता है। लेकिन, समय के साथ कभी-कभी जाने-अंजाने में हम उन तिथियों को भूल जाते हैं जिन तिथियों को हमारे प्रियजन हमें छोड़ कर चले जाते हैं। दूसरा वर्तमान में जीवन भागदौड़ भरा है। हर कोई व्यस्त है, फिर विभिन्न परिजनों की तिथियां अलग-अलग होने से हर रोज समय निकाल कर श्राद्ध करना बड़ा ही कठिन है। लेकिन, विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने कुछ ऐसे भी उपाय निकाले हैं जिनसे आप अपने पूर्वजों को याद भी कर सकें और जो आपके समय के महत्व को भी समझे। इसलिए अपने पितरों का अलग-अलग श्राद्ध करने की बजाय सभी पितरों के लिए एक ही दिन श्राद्ध करने का विधान बताया गया। इसके लिए कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पितृपक्ष का आरंभ शुक्ल पक्ष की भाद्रपद पूर्णिमा से हो जाता है। आश्विन माह का प्रथम पखवाड़ा जो कि माह का कृष्ण पक्ष भी होता है पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। इन दिनों में हिंदू धर्म के अनुयायी अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करते हैं। उन्हें याद करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए स्नान, दान, तर्पण आदि किया जाता है। पूर्वज़ों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के कारण ही इन दिनों को श्राद्ध भी कहा जाता है। हालांकि विद्वान ब्राह्मणों द्वारा कहा जाता है कि जिस तिथि को दिवंगत आत्मा संसार से गमन करके गई थी। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की उसी तिथि को पितृ शांति के लिये श्राद्ध कर्म किया जाता है। लेकिन, समय के साथ कभी-कभी जाने-अंजाने में हम उन तिथियों को भूल जाते हैं जिन तिथियों को हमारे प्रियजन हमें छोड़ कर चले जाते हैं। दूसरा वर्तमान में जीवन भागदौड़ भरा है। हर कोई व्यस्त है, फिर विभिन्न परिजनों की तिथियां अलग-अलग होने से हर रोज समय निकाल कर श्राद्ध करना बड़ा ही कठिन है। लेकिन, विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने कुछ ऐसे भी उपाय निकाले हैं जिनसे आप अपने पूर्वजों को याद भी कर सकें और जो आपके समय के महत्व को भी समझे। इसलिए अपने पितरों का अलग-अलग श्राद्ध करने की बजाय सभी पितरों के लिए एक ही दिन श्राद्ध करने का विधान बताया गया। इसके लिए कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सर्वपितृ अमावस्या की तिथि इसीलिए अहम व महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। वहीं इस अमावस्या को श्राद्ध करने के पीछे वैदिक हिन्दू शास्त्रों में मान्यता है कि इस दिन पितरों के नाम की धूप, दीप देने से मानसिक और शारीरिक तौर पर संतुष्टि व शांति प्राप्त होती ही है साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि आती रहती है। सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। हालांकि प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को पिंडदान किया जा सकता है लेकिन, आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी मानी जाती है। पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान न मिले तो शाप देकर चले जाते हैं जिसके फलस्वरूप घरेलू कलह बढ़ जाती है व सुख-समृद्धि में कमी आने लगती है और कार्य भी बिगड़ने लगते हैं। इसलिए श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सर्वपितृ अमावस्या की तिथि इसीलिए अहम व महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। वहीं इस अमावस्या को श्राद्ध करने के पीछे वैदिक हिन्दू शास्त्रों में मान्यता है कि इस दिन पितरों के नाम की धूप, दीप देने से मानसिक और शारीरिक तौर पर संतुष्टि व शांति प्राप्त होती ही है साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि आती रहती है। सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। हालांकि प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को पिंडदान किया जा सकता है लेकिन, आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी मानी जाती है। पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान न मिले तो शाप देकर चले जाते हैं जिसके फलस्वरूप घरेलू कलह बढ़ जाती है व सुख-समृद्धि में कमी आने लगती है और कार्य भी बिगड़ने लगते हैं। इसलिए श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।
पितृ अमावस्या को श्राद्ध करने की विधि
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए। इसके बाद घर में श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव और चीटिंयों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए। इसके बाद श्रद्धापूर्वक पितरों से मंगल की कामना करनी चाहिये। ब्राह्मण या किसी गरीब जरूरतमंद को भोजन करवाना चाहिए और सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा भी देनी चाहिए। संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप भी प्रज्जवलित करने चाहिए।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए। इसके बाद घर में श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव और चीटिंयों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए। इसके बाद श्रद्धापूर्वक पितरों से मंगल की कामना करनी चाहिये। ब्राह्मण या किसी गरीब जरूरतमंद को भोजन करवाना चाहिए और सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा भी देनी चाहिए। संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप भी प्रज्जवलित करने चाहिए।
सर्वपितृ अमावस्या तिथि और श्राद्ध कर्म मुहूर्त सर्वपितृ अमावस्या तिथि– 8 अक्तूबर 2018, सोमवार कुतुप मुहूर्त– 11:45 से 12:31 रौहिण मुहूर्त– 12:31 से 13:17 अपराह्न काल– 13:17 से 15:36 अमावस्या तिथि आरंभ– पूर्वाह्न 11:33 बजे (8 अक्टूबर 2018)
अमावस्या तिथि समाप्त – सुबह 09:16 बजे (9 अक्तूबर 2018)