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प्रदूषण दूर करने के लिए करना होगा ऐसा, शोध संस्थानों ने दी महत्वपूर्ण जानकारी

locationआगराPublished: Nov 29, 2018 06:15:30 pm

लगाने होंगे अश्वगंधा व मदार के पेड़, प्रदूषण की समस्या खत्म करने को सम्बंधित विभाग व उद्योग विवि के शोध संस्थानों के सहयोग के लिए आगे आएं

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आगरा। ताजनगरी के उद्योग मिट्टी में लेड, क्रोमियम और आर्सेनिक जैसे भारी तत्वों का प्रदूषण घोल रहे हैं। जिन्हें मदार, अश्वगंधा और भ्रंगराज जैसे पेड़ दूर कर सकते हैं, बशर्ते सम्बंधिक सरकारी विभागों और उद्योगपतियों का सहयोग विश्वविद्यालय के उन विभागों को मिले जहां बेहतर शोध किए जा रहे हैं। ताजनगरी में नुनिहाई (इंडस्ट्रीयल एरिया) रोड साइड जैसे क्षेत्रों की मिट्टी में हेवी मैटल का प्रदूषण अधिक है। यह बात सेंट जॉन्स कॉलेज के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित रीसेन्ट एडवान्स इन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला में सेंट जॉन्स बनस्पति विज्ञान डॉ. रोहित डिसूजा ने अपने शोध पत्र के जरिए प्रस्तुत की।
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शोध में दी गई जानकारी
उनका यह शोध यूएस के एनवायरमेंट साइंस एंड पोल्यूशन रिसर्च व जनरल ऑफ हजार्डेड जैसे टॉप जनरल में पब्लिश हो चुका है। बताया कि फिरोजाबाद की ग्लास इंडस्ट्री, जूता, चांदी व पेठा उद्योग शहर की मिट्टी व पानी दोनों को खराब कर रहे हैं। फतेहपुर सीकरी, सिकन्दरा, इंडस्ट्रीयल क्षेत्र (नुनिहाई, फिरोजाबाद, दयालबाग क्षेत्र से मिट्टी के सैंपल में मानकों से अधिक लेड क्रोमियम और र्सेनिक जैसे हैवी मैटल पाए गए। मदार, अश्वगंधा, व भ्रंगराज जैसे पौधों की जड़ों व पत्तियों में इस पैवी मैटिल को सोखने की क्षमता होती है। जिन्हें वहां लगाकर दोबारा रीडिंग ली गई। यदि सरकारी विभाग व उद्योग विवि के शोध संस्थानों के साथ मिलकर शहर का प्रदूषण दूर करने पर काम करें तो काफी हद तक सफलता पाई जा सती है। लेकिन यह सोध मात्र किताबों तक ही सीमित रह जाते हैं।
बबूल व नीम की गोंद से बनेंगे सैनेटरी नेपकिन
बबूल व नींम की गोंद (हाइड्रोजेल) से सैनेटीरी नेपकिंग व बेबी नेपी बनाने की तैयारी चल रही है। सिन्थेटिक के बजाय नमी को सोखने की अधिक क्षमता के साथ यह प्राकृतिक रूप से एंटीबेक्टीरियल भी होंगे। जामिया मिलिया की डॉ. साइका इकराम ने बताया कि इस पर हम शोध कर रहे हैं, जिसमें जल्दी सफलता मिलेगी। इसके साथ ही सिन्थेटिक के बजाय प्राकृतिक पॉलीमर बनाने पर भी काम चल रहा है। जिससे नॉन डिग्रेडेबिल पॉलीमर को रिप्लेस कर पाने से प्रदूषण की समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है।
एक मिनट में दस लाख पॉलिथिन बैग का प्रयोग
डॉ. साइका ने बताया कि दुनिया में एक मिनिट में 10 लाख बिलियम पॉलीथिन बैग का प्रयोग किया जा रहा है। पैकेजिंग इंडस्ट्री में यह सबसे अधिक प्रयोग हो रही है। हम सेल्यूलोज (पेड़ों से प्राप्त) व काइटोसिन से प्राकृतिक पॉलीमर के नतीजे पर जल्दी ही पहुंचने वाले हैं। जिससे दुनिया को सिन्थेटिक पॉलीमर से मुक्ति मिलने के साथ प्रदूषण की भी समस्या का समाधान हो सकेगा।
समापन सम्रारोह में स्मृति चिन्ह देकर किया पुरस्कृत
सेंट जॉन्स कॉलेज के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित रीसेन्ट एडवान्स इन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह कॉलेज के सेंट्रल हॉल में आयोजित किया गया। जिसमें विजेता प्रतिभागियों को कार्यशाला के चेयरमैन हेमन्त कुलश्रेष्ठ व समन्वयक डॉ. आरपी सिंह ने सम्माननित किया। जिसमें बेस्ट पेपर प्रिजेन्टेसन के लिए डीईआई के रोहित सिंह, अमेबेडकर विवि रसायन विज्ञान विभाग की प्रियंका अग्रवाल, जंतु विज्ञान सेंट जॉन्स कॉलेज की अनुष्का चोकर, बनस्पति विज्ञान विभाग सेंट जॉन्स कॉलेज की शुमालिका, बेस्ट पोस्टर प्रिजेन्टेसन के लिए ज्योतिका बंसल, मोनिका साहनी, अनुष्ठा भारद्धाज, पायल, गुप्ता, आरती सोनी व फौजिया को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यशाला में भाग लेने वाले 200 विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए। इस अवसर पर मुख्य रूप से कार्यक्रम में मुख्य रूप से आयोजन समिति के चेयरपर्सन डॉ. हेमन्त कुलश्रेष्ठ, समन्वयक डॉ. आरपी सिंह, डॉ. सुजन वर्गीज, डॉ. राजू वी जॉन, डॉ. मौहम्मद अनीस, डॉ. शालिनी, डॉ. अनीता आनंद, डॉ. प्रवीन त्यागी, डॉ. राजकुमार सारस्वत, डॉ. पद्मामलिका हाजरा, डॉ. डेविड मसीह आदि उपस्थित थे।

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