पत्रिकाः भारत को धर्म प्रधान देश कहा जाता है, धर्म क्या है?
दादाजीः भारत को धर्म प्रधान देश नहीं कहते हैं, लेकिन यहां समन्वय है। नागरिकों के यहां अधिकार हैं। उनमें भी समन्वय है। शुद्ध मानवता के सिद्धांतों का भारतीयकरण है।
पत्रिकाः क्या मंदिर में जाना, नमाज पढ़ना, चर्च में जाना धर्म है? दादाजीः ये तो अपनी-अपनी आस्था है और आस्था पर कोई सवाल नहीं करते हैं। मैं स्वयं आस्था में विश्वास रखता हूं। जो भी आस्था रखता है, मुझे उसके प्रति सहानुभूति है।
पत्रिकाः जहां तक आस्था की बात है तो अयोध्या में राम मंदिर को लेकर एक वर्ग की आस्था है और दूसरे की नहीं है, इसमें क्या होना चाहिए? दादाजीः जो उसकी आस्था है, वो अपनी आस्था पर रहे। इन सब बातों का कोई महत्व नहीं है। एक आस्था बहुत पुराने समय से चली आ रही है। भारत की आस्था को चोट पहुंची है।
पत्रिकाः भारत की आस्था पर चोट क्या अंग्रेजों ने पहुंचाई है?
दादाजीः विदेशियों ने चोट पहुंचाई है।
यह भी पढ़ें बारात की बस पर गिरा तार, विधायक के रिश्तेदार समेत दो जिन्दा जले, 34 झुलसे, पथराव, पुलिस के वाहन तोड़े पत्रिकाः धर्म के नाम पर ढकोसला बहुत हो रहा है। इसका खंडन किस तरह से करना चाहिए? दादाजीः इसके लिए बहुत बहुत धार्मिक सुधार हुए हैं। ये सुधार जन-जन तक जाने चाहिए। 19वीं शताब्दी में सामाजिक सुधार और धार्मिक सुधार हुए हैं। उसको लोग भूल रहे हैं। हमने कभी कट्टरता नहीं दिखाई। कट्टरता का सामना जरूर किया है।
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दादाजीः नहीं। विदेशी आक्रमणकारियों का आतंक है। उन्होंने हमारे उदारवादी रवैया का लाभ उठाया। उस समय के राजा एक नहीं हो पाए। वे सोच भी नहीं पाए कि इस तरह का कोई आक्रमण हो सकता है।