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Big News राम मंदिर विवाद में नया मोड़, जयपुर राजघराना भी सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में, अब बाबरी मस्जिद समर्थक टिक नहीं सकते

-अयोध्या में मंदिर की भूमि के स्वामी सवाईं राजा जय सिंह, दस्तावेज सिटी पैलेस आर्काइव जयपुर में रखे हुए हैं।
-प्रो. आर नाथ ने तथ्यों से अवगत कराया, मौका मिले तो सुप्रीम कोर्ट में भी पक्ष रखने को तैयार हैं

आगराFeb 24, 2019 / 05:18 pm

अमित शर्मा

Ram Mandir

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डॉ. भानु प्रताप सिंह

आगरा। अयोध्या में कारसेवकों ने छह दिसम्बर, 1992 को विवादित ढांचा ढहा दिया था, जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था। अब वहां रामलला विराजमान हैं। उस स्थान पर राम मंदिर बने या नहीं, यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और सुन्नी वक्फ बोर्ड मंदिर की भूमि को अपनी बता रहे हैं। बाकी पक्ष मंदिर निर्माण की बात कह रहे हैं। कुरान और हदीस के अध्ययन के बाद ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि बाबरी मस्जिद के समर्थक कोर्ट में टिक नहीं सकते हैं। यह भी प्रमाणित है कि मंदिर की भूमि संवाई राजा जय सिंह की है। उन्होंने अंतिम बार राम मंदिर बनवाया था। हिन्दू मान्यता के अनुसार भूमि का मालिक मंदिर में विराजमान देवता होता है।
समस्या इतिहास से संबंधित

राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के इतिहास एवं भारतीय संस्कृति के पूर्व विभागाध्यक्ष और पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर आर नाथ ने अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद पर पुस्तक लिखी है। वे लम्बे समय तक आगरा में रहे। अब अजमेर में निवासरत हैं। उन्होंने पत्रिका को फोन पर बताया कि अयोध्या का राम मंदिर विवाद इस समय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है। यह वास्तव में इतिहास से संबंधित समस्या है। इतिहास संबंधी तथ्यों पर गौर किए बिना इस समस्या का समाधान संभव नहीं है। दुर्भाग्य से राम मंदिर के संबंध में केस लड़ने वाली किसी भी पार्टी ने इन तथ्यों को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है।
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मस्जिद के लिए भूमि लेने का इस्लामिक कानून

प्रो. नाथ ने बताया- सबसे पहले हमें समझना होगा कि मस्जिद के लिए भूमि लेने का इस्लामिक कानून क्या है। इस्लाम का उदय सातवीं शताब्दी में अरब के हिजाज क्षेत्र में हुआ था। मोहम्मद साहब (570-632 एडी) ने अल्लाह के निर्देशों को कुरान के रूप में प्रस्तुत किया। यही कुरान इस्लामिक कानून है, जिसमें सामाजिक, धार्मिक और अन्य बातों का उल्लेख है। तमाम मामलों में कुरान के साथ हदीस को भी प्रामाणिक माना जाता है। इस्लामिक कानून में कुरान और हदीस मिलकर शरिया (अरेबिक) और शरीयत (उर्दू) कहलाते हैं। कुरान अल्लाह के वचन है और हदीस मोहम्मद साहब की कहावते हैं। अल बुखारी (810-870 एडी) ने सहीह-उल-बुखारी और अल-मुस्लिम ने सहीह-उल-मुस्लिम में हदीस का संकलन किया है। एक हदीस इस प्रकार है- मोहम्मद साहब 622 एडी में मक्का से मदीना की ओर गए। उन्होंने मदीना में मस्जिद बनाने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने एक रिक्त भूमि को चुना। यह भूमि सहल और सुहैल नामक दो अनाथों की थी। दोनों ने मस्जिद के लिए भूमि दान में देने की बात कही। मोहम्मद साहब ने साफ कहा कि मस्जिद के लिए भूमि दान में नहीं ली जाएगी। कुछ न कुछ कीमत लेनी होगी। अंत में 10 दीनार भूमि की कीमत चुकाई गई। इसके बाद इस्लाम की पहली मस्जिद बनाई गई, जिसे मस्जिद-उल नबी कहा जाता है। इससे प्रमाणित है कि मस्जिद के लिए भूमि निःशुल्क, जबरिया और अवैध रूप से नहीं ली जा सकती है। भूमि के मालिक को कीमत अदा करके मस्जिद के लिए भूमि ली जा सकती है। युगों से यही नियम सभी इस्लामिक राज्यों में चल रहा है। प्रोफेसर आर नाथ की पुस्तक मॉस्क आर्कीटेक्टर (622-1654),जयपुर, 1992 द्वितीय संस्करण पेज 9-12 पर इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। मौलाना वहीदुद्दीन खान ने सात फरवरी, 1993 को प्रकाशित एक आलेख में यही बात कही है।
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सवाईं राजा जय सिंह की भूमि पर बना है मंदिर

उन्होंने बताया कि इसमें कोई शक नहीं है कि अयोध्या में मंदिर था, जो बार-बार बनाया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने उत्खनन में भी इसे प्रमाणित किया है। यह भी तथ्य है कि अयोध्या में जहां राम मंदिर है, वह भूमि आमेर-जयपुर के सवाईं राजा जय सिंह की है। उन्होंने ही अंतिम मंदिर बनवाया था। इस ग्रांट को 18वीं शताब्दी तक मान्यता दी गई। इतना ही नहीं, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी इसे स्वीकार किया था। औरंगजेब ने मथुरा, वृंदावन, प्रयागराज (इलाहाबाद), बनारस, उज्जैन, गया में मंदिर तोड़े थे। अयोध्या में बाबर के सेनापति ने मंदिर तोड़ा था। इन मंदिरों और आसपास की भूमि को सवाई राजा जय सिंह ने लिया, मंदिर बनवाए। इन स्थानों को जयसिंह पुरा नाम दिया। 1717 की बात है ये। 1818 में ट्रीटी की थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजा जयसिंह की जागीर के रूप में मान्यता दी थी। राजा जयसिंह ने भारत ही नहीं, काबुल, मुल्तान, पेशावर, मुल्तान में भी जयसिंह पुरा बनाया था। दिल्ली में भी भूमि है। इस बारे में सभी दस्तावेज सिटी पैलेस आर्काइव जयपुर में रखे हुए हैं।
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1990 में किया था अयोध्या दौरा

प्रोफेसर आर नाथ ने बताया- मैंने विवादित स्थल का दौरा नवम्बर 1990 में किया था। मैंने वहां काले पत्थर के 12 मंदिर स्तंभ पाए थे। करीब छह फीट ऊंचे थे। इनका उपयोग मस्जिद में किया गया था। मंदिर की जमीन ही नहीं, मंदिर की सामग्री भी मस्जिद बनाने में लगाई थी। इसका कोई मूल्य भूमि मालिक को नहीं दिया गया। इस्लामिक सभ्यता के अनुसार ऐसा करना बर्बरता है। यह जान लेना जरूरी है कि एक बार जहां मंदिर बन गया, वह मंदिर की जमीन भी मंदिर के देवता की हो जाती है। उसे नहीं छीना जा सकता है।
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उलेमा, मौलवी, मुल्ला अपनी चुप्पी तोड़ें

उन्होंने कहा- हमारा विश्वास है कि इस्लाम एक सभ्यता का नाम है। इस्लाम रूल ऑफ लॉ है। इस्लाम का जंगल कानून नहीं है, इस्लाम बर्बरता नहीं है। यह सही समय है जब उलेमा, मौलवी, मुल्ला अपनी चुप्पी तोड़ें और या कहें – नहीं, कोई हदीस नहीं है। हम हदीस को नहीं मानते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि इस्लाम जंगल का कानून है और इस्लाम सभ्यता का नाम नहीं है। अगर ऐसा नहीं है तो हिम्मत के साथ खड़े हों और अल्लाह के नाम पर कहें- अल बुखारी और अल मुस्लिम द्वारा प्रमाणित हदीस सही है। हम हदीस को मानते हैं। यह भी मानते हैं कि अयोध्या में जहां मस्जिद है, उस भूमि का कोई मूल्य अदा नहीं किया गया है। हमारा इस मंदिर की भूमि पर कोई स्वामित्व नहीं है। इस आधार पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय सही समझौता करा सकता है।
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जयपुर राजघराना भी जा सकता है सुप्रीम कोर्ट

प्रोफेसर आरनाथ ने बताया कि जयपुर राजघराना ने मुझे बुलाया था। जिया कुमारी से भेंट हुई है। रामू रामदेव और उनके वकीलों से बात हुई है। सबको बता दिया है। वीडियो दिया है 20 मिनट का, जिसमें सारे तथ्य हैं। यह वीडियो अगर सुप्रीम कोर्ट देख लेता है तो फैसला होने में तनिक भी विलम्ब नहीं होगा। मैं भी सुप्रीम कोर्ट को सबकुछ बताने को तैयार हूं। जयपुर राजघराना भी सुप्रीम कोर्ट जाने पर विचार कर रहा है। जयपुर राजघराना अगर सुप्रीम कोर्ट में खड़ा होता है तो वह भी मंदिर के लिए खड़ा होगा। सिर्फ मस्जिद के पक्षधर जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि अन्य पक्ष मंदिर की। शरीयत के मुताबिक भूमि मस्जिद की नहीं है। इसलिए मुस्लिम पक्ष का कोई अधिकार नहीं है।
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