-शास्त्रीपुरम की केशव शाखा पर मनाया गया विजयादशमी उत्सव
-भगवान राम से शालीनता और मानवीय व्यवहार सीखने की जरूरत
-जब हमारी विनती से काम न चले, वहां हमें क्रोध भी दिखाना चाहिए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्थापना दिवस पर शस्त्र पूजन किया।,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्थापना दिवस पर शस्त्र पूजन किया।,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्थापना दिवस पर शस्त्र पूजन किया।
आगरा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में हुई थी। इसलिए संघ विजयादशमी उत्सव को धूमधाम से मनाता है। आगरा विभाग के शास्त्रीपुरम नगर (सिकंदरा) की केशव शाखा पर विजयादशमी उत्सव की धूम रही। इस मौके पर कहा गया कि शक्ति का प्रदर्शन जरूरी है। साफ शब्दों में कहा गया- जो तोकूं काटे बोवे ताहि बोय तू भाला, वो भी ***** क्या सोचेगा, पड़ा किसी से पाला।
भगवान राम से सीखें सबका सम्मान करना समारोह के मुख्य वक्ता और सेवा प्रसून पत्रिका के सम्पादक अवधेश उपाध्याय ने कहा कि भगवान राम ने वन में दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का संहार किया। बड़ी शालीनता के साथ वन में विश्वामित्र के साथ रहे। ऋषियों से ज्ञान अर्जित किया। सीता स्वयंवर में शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया। बड़ी शालीनता के साथ भाग लिया। विश्वामित्र ने कहा तब धनुष उठाया। शालीनता होनी चाहिए और अपनी शक्ति का व्यर्थ प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। विवाह के बाद भगवान राम अयोध्या में आए। राज्याभिषेक की तैयारियों के समय विघ्न आ जाता है। वनवास के आदेश के बाद मां कौशल्या के पास जाते हैं। कौशल्या पूछती है तो भगवान राम बिना किसी शिकायत और विद्रोह के कहते हैं कि पिता ने मुझे वन का राजा बना दिया है। कहां राम को राजा बनना था और कहां वनवास आ गया। सीता हरण के बाद जटायु पक्षी के साथ आत्मीयता के साथ मानवीय व्यहार किया। यह दिखाया कि व्यक्ति कितना ही दीन-हीन हो, सबका सम्मान करना चाहिए।
यह भी पढ़ेंVijayadashami पर RSS ने इस तरह किया शस्त्र पूजन, देखें वीडियोजब विनती से काम न चले तो क्रोध करें भगवान राम सेना को लेकर राम समुद्र के किनारे पहुंचे। तीन दिन तक समुद्र से लंका जाने के लिए रास्ता देने की प्रार्थना की। समुद्र पर कोई असर नहीं हुआ। जब वह नहीं माना तो धनुष बाण निकाला। धनुष चलाने को हुए तो समुद्र प्रकट हो गया। उसे लगा कि मेरा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। तुलसीदास ने लिखा है-
विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीत। कहने का मतलब यह है कि जब हमारी विनती से काम न चले, वहां हमें क्रोध भी दिखाना चाहिए। क्षमा अच्छा गुण है, लेकिन क्षमा की सीमा होनी चाहिए। जहां सीमा को उल्लंघन होता हो, वहां क्षमा को छोड़ देना चाहिए। क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है। क्षमा उसे शोभायमान होती है, जिसके पास शक्ति होती है। अपने शौर्य का समय-समय पर सदुपयोग करना चाहिए।
उल्लेखनीय उपस्थिति इस मौके नगर कार्यवाह लक्ष्मण प्रसाद, योग प्रमुख राजकिशोर परमार, नवीन अग्रवाल, सेवा भारती के जिला मंत्री सुरेन्द्र कुमार, विश्वजीत, नानक चंद, अमित पांडे, दीपक चंदेल, मोहित तिवारी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।