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मुसीबतों से लड़कर खुशबू बनी इंटरनेशनल प्लेयर

locationआगराPublished: Sep 02, 2017 04:28:00 pm

खुशबू कहती है कि शुरूआती दिनों में इस खेल को खेलने के लिए उनके पास जूते खरीदने के रूपए नहीं थे क्योंकि इस खेल को खेलने के लिए ब्रेकर शूज पहने जाते हैं

Khushboo Kanojiya
बरेली। अगर आपके मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना है तो संसार की कोई भी विषम परस्थिति आपका रास्ता नहीं रोक सकती। प्रसिद्ध कवि सोहन लाल की पंक्तियां लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती भी इसी ओर इशारा करती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कैंट सदर बाजार की रहने वाली खुशबू कन्नौजिया ने। बेहद गरीब परिवार में जन्म लेने वाली खुशबू ने कभी भी हालात से समझौता नहीं किया और अपनी मेहनत और लगन के दम पर आज सेपक टाकरा गेम में भारत का प्रतिनिधित्व करती है। खुशबू भारत की तरफ से साउथ कोरिया, थाईलैंड और फ्रांस में हुई इंटरनेशल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी है।
आर्थिक तंगी बनी सबसे बड़ी बाधा

कैंट सदर बाजार के रहने वाले गोपाल छोटा मोटा काम कर अपने परिवार का गुजारा करते हैं। उनकी बड़ी बेटी खुशबू मौजूदा समय में सेपक टाकरा खेल की इंटरनेशनल खिलाड़ी है। 24 जून 1995 में जन्मी खुशबू बताती है कि स्कूल के दिनों में उनके स्कूल के सामने स्टेडियम में ये खेल खेला जाता था जिसको देख उनके मन में भी इस खेल को खेलने और इस खेल में अपना और अपने परिवार का नाम रोशन करने की इच्छा हुई। जिसके बाद 2007 में इन्होंने इस खेल को खेलना शुरू किया तो उनके सामने आर्थिक तंगी सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ी हो गयी। खुशबू कहती है कि शुरूआती दिनों में इस खेल को खेलने के लिए उनके पास जूते खरीदने के रूपए नहीं थे क्योंकि इस खेल को खेलने के लिए ब्रेकर शूज पहने जाते हैं जो कि थाईलैंड से मंगाए जाते हैं। अपनी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए उनके पिता ने किसी तरह से पाई पाई जोड़ कर रूपए जोड़े और अपनी बेटी के लिए जूतों की व्यवस्था की।
एशियन गेम में मैडल लाना है लक्ष्य

खुशबू ने भी अपने परिजनों को निराश नहीं किया और कोच बीए शर्मा की देख रेख में इस खेल को खेलना शुरू किया और इसमें महारत हासिल की। शुरूआती दौर में खुशबू ने अपनी टीम के साथ देश में होने वाली तमाम प्रतियोगिताओं में तमाम मेडल जीते। जिसके बाद उनका चयन 2015 में थाईलैंड में हुई वर्ड चैम्पियनशिप के लिए हुआ जहां पर उनकी टीम एक कैटेगरी में सेकेण्ड आई तो दूसरी में थर्ड। इसके बाद 2017 में फ्रांस में आयोजित हुई प्रतियोगिता के लिए भी खुशबू का चयन हुआ और उनकी टीम ने यहां पर ब्रांज मैडल हासिल किया। इसी साल उन्होंने साउथ कोरिया में आयोजित हुई स्लो सिटी कप प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया। अब उनका टारगेट आने वाले समय में होने वाले एशियन गेम में मैडल लाने का है।
खुशबू ने जीते कई राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय पुरुस्कार

खुशबू इस खेल के साथ ही बीकॉम फाइनल ईयर की स्टूडेंट भी है। खुशबू ने तमाम नेशनल, स्टेट और इंटरनेशनल लेवल के पुरुस्कार जीते हैं। खुशबू का कहना है कि इस खेल को खेलने में उनका फेडरेशन काफी मदद करता है लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें अभी तक कोई प्रोहत्सान नहीं मिल पाया है जबकि अखिलेश सरकार में इस खेल में हिस्सा लेने वाली दो खिलाड़ियों को सरकार ने सम्मानित किया था। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि कहीं भी जाने के लिए उन्हें टिकट का इंतजाम खुद ही करना होता है।
सेपक टाकरा की बढ़ रही है लोकप्रियता

सेपक टाकरा खेल मलेशिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड में ख़ासा लोकप्रिय है और अब ये खेल भारत में भी लोकप्रिय हो रहा है। सेपक टाकरा फेडरेशन का मुख्यालय नागपुर में 1982 में स्थापित हुआ था। इस खेल में खिलाड़ी सर्विस करने के बाद गेंद को हाथ से नहीं छू सकता है प्वाइंट हासिल करने के लिए उसे पैर, सर , घुटनों का प्रयोग करना होता है।
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