देशी दवाई का वितरण 1971 से संत बाबा साधू सिंह मोनी के समय से किया जा रहा है। इसका निर्वहन मौजूदा मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह कर रहे हैं। गाय के दूध में विशेष प्रकार के चावल से खीर बनाई जाती है। रात भर खीर और दवाई को चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। सुबह सूरज निकलने से पहले दवाई खाने को कहा जाता है। बाहर के रोगियों को गुरुद्वारा में ही दवा खाने को कहा जाता है। दवा खाने के बाद उन्हें भ्रमण के लिए कहा जाता है। आगरा के रोगी घर जाकर भी दवा का सेवन कर सकते हैं। साथ में उन्हें एक पर्चा दिया जाता है, जिस पर सेवन विधि अंकित होती है।
आज शाम छह बजे से होगा वितरण गुरुद्वारा गुरु का ताल के मीडिया प्रभारी मास्टर गुरनाम सिंह एवं समन्वयक बंटी ग्रोवर ने बताया कि दवा वितरण 13 अक्टूबर को शाम छह बजे से किया जाएगा। मिट्टी के सकोरे में दवा दी जाती है। गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी के साथ दवा दी जाती है। दवा के साथ दुआ भी की जाती है। 48 साल से यह क्रम सतत रूप से चल रहा है। दवा का अनुपात मरीज की उम्र एवं मर्ज की स्थिति को देखकर निर्धारित होता है।
दवा ग्रहण करने के बाद 40 दिन तक परहेज करना होगा। पेट खराब करने वाली वस्तुओं के अलावा खट्टी, तली हुई और ठंडी वस्तुओं के सेवन करना वर्जित है। दवा देशी जड़ी बूटियों से बनी है। संत बाबा प्रीतम सिंह अपनी देख-रेख में तैयार करवाते हैं। हर साल हजारों लोग ठीक हो रहे हैं। संत बाबा प्रीतम सिंह का कहना है कि जो रोगी बदपरहेजी करते हैं, उन्हें लाभ होने की संभावना घट जाती है। परहेज करने वाले मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता हैं।